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कोरोना से फेफड़ों में बड़ा डैमेज, 11 प्रतिशत मरीजों के लंग्स में हुए घाव! स्टडी में खुलासा

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कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया में जमकर कहर बरपाया है. कई देशों में तो अब भी कोरोना के मामले अभी भी बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं.

दुनियाभर में कोरोना की वजह से लाखों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है. कोविड वायरस का सबसे ज्यादा असर मरीज के फेफड़ों पर देखा गया है, इसके साथ ही मरीजों में कई तरह के लक्षण इस वायरस की चपेट में आने के बाद नज़र आए. हाल ही में यूएस में हुई एक स्टडी में ये बात सामने आई है कि कोरोना से पीड़ित मरीजों में से अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति वाले लगभग 11 प्रतिशत मरीजों के फेफड़े डैमेज हुए थे और उनमें घाव मिले थे. स्टडी के मुताबिक ये इर्रिवसेबल होने के साथ ही समय के साथ और भी खराब हालत में पहुंच सकते हैं.

अस्पताल से डिस्चार्ज के बाद भी केयर की जरूरत

कोविड-19 मरीजों को लेकर की गई ये स्टडी अमेरिकन जरनल ऑफ रेस्पिरेटरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन में पब्लिश हुई है. स्टडी में कहा गया है कि कोविड मरीज जिनमें अलग-अलग स्थिति में बीमारी की गंभीरता पाई गई थी और उनमें फाइब्रोटिक लंग डेमेज पाया गया था, जिसे इंटरस्टिशियल लंग डिजीज भी कहा जाता है, अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद उन्हें फॉलोअप केयर की काफी जरूरत है.

क्या होती है इंटरस्टिशियल लंग डिजीज

इंटरस्टिशियल लंग डिजीज में कई तरह की बीमारियां शामिल हैं जिसे आम तौर पर फेफड़ों के घाव से जाना जाता है. इसमें आइडोपेथिक लंग फाइब्रोसिस भी है. ये घाव होने से मरीजों को सांस लेने में काफी दिक्कत महसूस होती है और ब्लडस्ट्रीम से ऑक्सीजन ली जाती है. आइडोपेथिक लंग फाइब्रोसिस की वजह से फेफड़ों में होने वाला घाव इर्रिवसेबल होने के साथ ही समय के साथ और भी खराब हो जाता है.

माग्रेट टर्नर वारविक सेंटर फॉर फाइब्रोसिंग लंग डिजीज और नेशनल हार्ट एंड लंग इंस्टीट्यूट, इंपीरियल कॉलेज लंदन के एडवांस रिसर्च फैलो (रायन फाउंडेशन) और करसपॉंडिंग ऑथर लाइन स्टीवर्ट ( Iain Stewart) कहते हैं कि ‘हमने ये अनुमान लगाया है कि हॉस्पिटल में भर्ती होने वाले 11 प्रतिशत तक मरीजों में बीमारी से रिकवर होने के बाद फाइब्रोटिक पैटर्निंग मिली है. इसके साथ ही मरीजों में लंबे समय तक सांस लेने में दिक्कत और सांस फूलने जैसी समस्याएं देखी गई हैं.’

लंबे समय तक रह सकती है परेशानी

इस स्टडी में शामिल लाइन स्टीवर्ट आगे कहते हैं कि ‘इस स्टडी में बड़ी बात सामने आई है कि जो मरीज अस्पताल से डिस्चार्ज हुए हैं उनमें से कई मरीजों के फेफड़ों में फाइब्रोटिक एब्नॉर्मलिटीज देखने को मिल सकती हैं.’ बता दें कि इस स्टडी में शामिल मरीजों को मार्च 2021 में अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी और इनसे जुड़ी स्टडी का डेटा अक्टूबर 2021 तक कलेक्ट किया गया था. अब स्टडी के अगले चरण का एनालिसिस भी शुरू हो चुका है और साल 2023 की शुरुआत में इसके नतीजे मिल सकते हैं.