मोदी सरकार कह रही है कि आर्थिक मंदी का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर नहीं पड़ा है। लेकिन जो आंकड़े बता रहे हैं उससे तो यही लगता है कि मंदी का असर थोड़ा नहीं बहुत ही ज्यादा पड़ा है। आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले एक साल में जीडीपी ग्रोथ रेट में 25 फीसदी की गिरावट आई है। वहीं इंटरनेशनल क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भी जीडीपी ग्रोथ रेट के अनुमानों को घटा दिया है। एजेंसी ने शुक्रवार (23 अगस्त) को साल 2019 के जीडीपी ग्रोथ रेट के अनुमानों को घटाते हुए 6.2% रहने का अनुमान जताया है। साथ ही कहा है कि साल 2020 में जीडीपी ग्रोथ रेट 6.7 फीसदी रह सकता है। पहले के अनुमानों में यह 0.6 फीसदी की गिरावट है।
वहीं बात करें साल 2018-19 के पहली तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट 8.1 फीसदी थी जो इस साल (2019-20) की पहली तिमाही में गिरकर 5.8 फीसदी रह गई है। इस तरह एक साल में करीब 25 फीसदी की गिरावट जीडीपी ग्रोथ रेट में रही है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक इस साल जनवरी से मार्च तक भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट पिछले पांच साल में सबसे कम 5.8 फीसदी रही।
अर्थव्यवस्था की स्थिति पर कई जानकार चिंता जता चुके हैं। वहीं मशहूर उद्योगपति आदि गोदरेज ने गिरती जीडीपी रेट और देश की खराब होती वित्तीय स्थिति पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर तंज कसा है। गोदरेज ने रॉयटर्स से कहा है कि कश्मीर जैसे संवेदनशील और राजनीतिक मुद्दों पर मोदी सरकार फटाफट फैसले ले रही है, जबकि देश की बिगड़ती आर्थिक सेहत पर कोई फैसला नहीं ले पा रही है। गोदरेज ने आरोप लगाया कि वित्तीय मामलों में फैसले लेने में मोदी सरकार सुस्त है।
मंदी की आहट के बीच कंपनियां नौकरियों में कटौती कर रही हैं। देश में ऑटो सेक्टर ने अकेले करीब साढ़े तीन लाख नौकरियों में कटौती की है। आम आदमी के इस्तेमाल वाली सस्ती बिस्किट बनाने वाली कंपनी पारले जी में भी 10,000 नौकरियों पर संकट मंडरा रहा है। कंपनी ने कम मांग का हवाला दे नौकरियां खत्म करने की बात कही है। रॉयटर्स के मुताबिक देश में कंज्यूमर डिमांड में गिरावट की वजह से कंज्यूमर इंडेक्स भी लड़खड़ा रहा है। मार्च 2018 में कंज्यूमर कन्फिडेंस इंडेक्स 104.6 फीसदी था जो सवा साल बाद घटकर जुलाई 2019 में 95.7 फीसदी रह गया है।