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35 साल, 36 दोषी, 35 गवाह… जब 6 हजार लोगों ने रोक दी थी बारात, यूपी का चर्चित पनवारी कांड, कोर्ट ने ठहराया दोषी

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आगरा – उत्तर प्रदेश के आगरा के बहुचर्चित पनवारी कांड में 36 अभियुक्तों को कोर्ट ने बुधवार को 34 साल बाद दोषी करार दिया है. 1990 से एससी-एसटी कोर्ट में सुनवाई चल रही थी. 34 वर्ष तक चली इस सुनवाई में 78 अभियुक्तों में से 36 अभियुक्तों को कोर्ट ने दोषी करार दिया है. वहीं 16 अभियुक्तों को बरी कर दिया है. साथ ही 27 अभियुक्तों की मौत हो चुकी है. धारा 147, 148, 149, 310 में दोषी पाया गया है. 30 मई को दोषियों को सजा सुनाई जाएगी. 21 जून 1990 में पनवारी कांड हुआ था. दलित की शादी को लेकर पूरा बवाल शुरू हुआ था. पनवारी कांड की आग अकोला तक पहुंची थी. सभी अभियुक्त अकोला के रहने वाले हैं. मामले में अब तक 34 वर्षों में 35 गवाहों के बयान दर्ज हो चुके हैं. आगरा थाना कागारौल में तत्कालीन एसओ ओमपाल सिंह ने 24 जून 1990 को राहगीर की सूचना पर मुकदमा दर्ज किया था.

क्या है पनवारी कांड

पनवारी कांड जाटव और जाट समुदाय के बीच बारात चढ़ाने को लेकर हुआ था. इस पूरे कांड में दोनों समुदाय के बीच खूनी संघर्ष हुआ था. पनवारी कांड आगरा का पहला ऐसा कांड था, जिसमें सेना को मोर्चा संभालना पड़ गया था. पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के पसीने तक छूट गए थे. दंगे में आगरा के साथ-साथ आसपास के जिलों से जाट और जाटव समुदाय के लोग शामिल हो गए थे. दंगे में सबसे ज्यादा नुकसान जाटव समाज को हुआ था. दर्जनों लोगों की मौत हो गई थी. करीब 10 दिन तक कर्फ्यू लगा रहा.

नहीं चढ़ सकी थी बारात

आगरा के सिकंदरा थाना क्षेत्र में 1990 में 21 जून को उनकी बहन मुंद्रा की बारात आगरा के ग्वालियर रोड नगला पदमा से आनी थी. लेकिन जाट समाज के लोगों ने दलितों की बारात चढ़ाने का विरोध कर दिया था. उस दौरान श्रम कल्याण मंत्री रहे रामजीलाल सुमन और जाटव समुदाय के प्रबुद्धजनों ने प्रशासनिक अधिकारियों को मामले से अवगत कराया था. तत्कालीन जिलाधिकारी अमल कुमार वर्मा और एसएसपी कर्मवीर सिंह ने बारात चढ़वाने की जिम्मेदारी ली. लेकिन इससे पहले ही दंगा भड़क गया और फिर जमकर बवाल हुआ था.