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असम पुलिस पर लगे 171 फर्जी एनकाउंटर के आरोप, सुप्रीम कोर्ट का ये आदेश आया सामने

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नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट ने असम पर 171 कथित फर्जी पुलिस एनकाउंटर के मामलों की जांच का आदेश दिया है। कोर्ट ने असम मानवाधिकार आयोग को इन मामलों की निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच करने का निर्देश दिया है। जिससे पीड़ितों को अपनी बात रखने का पूरा मौका मिले। इस फैसले ने असम पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए रहें हैं। और मानवाधिकारों के उल्लंघन के गंभीर आरोपों को उजागर कर रहा है।
क्या है पुरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में वकील आरिफ मोहम्मद यासीन ने आरोप लगाया था कि असम पुलिस ने इन 171 एनकाउंटरों में गैर-कानूनी तरीके से कार्रवाई की, जिसमें 56 लोगों की मौत हुई और 145 लोग घायल हुए। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2014 में पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र मामले में जारी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया। इन दिशा-निर्देशों में स्वतंत्र जांच, एफआईआर दर्ज करना, पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी, और सबूतों को सुरक्षित रखने जैसे प्रावधान शामिल हैं।
कोर्ट ने जारी किया निर्देश
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि फर्जी एनकाउंटर के आरोप गंभीर हैं और इनकी गहन जांच जरूरी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह इन मामलों के गुण-दोष पर फैसला नहीं दे रहा। बल्कि यह सुनिश्चित करना चाहता है कि जांच निष्पक्ष हो और पीड़ितों को न्याय मिले। कोर्ट ने असम मानवाधिकार आयोग से सभी 171 मामलों की विस्तृत जांच करने और जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा।
असम सरकार का पक्ष
असम सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सभी एनकाउंटरों में 2014 के दिशा-निर्देशों का पालन किया गया है। उन्होंने याचिकाकर्ता के इरादों पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसी याचिकाएं सुरक्षा बलों का मनोबल तोड़ने का प्रयास हैं। मेहता ने यह भी बताया कि असम में उग्रवाद और आतंकी गतिविधियों से निपटने के लिए पुलिस को कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश असम पुलिस की जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। जांच के परिणामों पर सभी की नजरें टिकी हैं। जो न केवल असम बल्कि पूरे देश में पुलिस सुधारों के लिए मिसाल बन सकते हैं।