जज ने जैसे ही आदेश दिया, हर-हर महादेव के नारे लगने लगे। इस मामले में याचिकाकर्ता महिलाओं का कोर्ट परिसर में स्वागत किया गया। सभी पक्षकार और वकील कोर्ट रूम में मौजूद रहे। जज का फैसला करीब 15 से 17 पेज का है। अदालत परिसर से लेकर काशी विश्वनाथ मंदिर तक बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मी मौजूद रहे। यह आदेश ऑर्डर 7 रूल नंबर 11 के आधार पर दिया गया। इसको यदि आसान भाषा में समझा जाए, तो इसके तहत कोर्ट किसी केस में तथ्यों की मेरिट पर विचार करने के बजाए सबसे पहले ये तय किया जाता है कि क्या याचिका सुनवाई करने लायक है भी या नहीं।
ज्ञानवापी प्रकरण के मद्देनजर वाराणसी पुलिस कमिश्नर ए. सतीश गणेश के आदेश के बाद कमिश्नरेट क्षेत्र में धारा-144 लागू है। पुलिस और प्रशासनिक अमला हाई अलर्ट पर है। सभी थानेदार, एसीपी, एडीसीपी और डीसीपी को अतिरिक्त सतर्कता के साथ ड्यूटी कर रहे हैं। सोशल मीडिया की निगरानी की जा रही है। पुलिस धर्मगुरुओं के लगातार संपर्क में
वाराणसी की जिला जज की अदालत में 26 मई से सुनवाई शुरू होने पर पहले 4 दिन मुस्लिम पक्ष और बाद में वादी हिंदू पक्ष की ओर से दलीलें पेश की गईं। इसके बाद दोनों पक्षों ने जवाबी बहस की और लिखित बहस भी दाखिल की। मुस्लिम पक्ष का कहना था कि ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है। आजादी के पहले से वक्फ ऐक्ट में दर्ज है। इससे संबंधित दस्तावेज भी पेश किए गए। वहीं मस्जिद के संबंध में 1936 में दीन मोहम्मद केस में सिविल कोर्ट और 1942 में हाई कोर्ट के उस फैसले का हवाला देते हुए कहा गया कि यह मुकदमा सीपीसी ऑर्डर-7 रूल 11 के तहत सुनवाई योग्य नहीं है।
ज्ञानवापी पर फैसला, वाराणसी से लखनऊ तक पुलिस अलर्ट
उधर, हिंदू पक्ष की ओर से वक्फ संबंधी दस्तावेजों को फर्जी बताने के साथ कहा गया कि ज्ञानवापी में नीचे आदि विश्वेश्वर का मंदिर है। ऊपर का स्ट्रक्चर अलग है। जब तक किसी स्थल का धार्मिक स्वरूप तय नहीं हो जाता तब तक प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट-1991 प्रभावी नहीं माना जाएगा। जिला जज ने 24 अगस्त को सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे आज सुनाया गया।
वाराणसी की जिला जज की अदालत में 26 मई से सुनवाई शुरू होने पर पहले 4 दिन मुस्लिम पक्ष और बाद में वादी हिंदू पक्ष की ओर से दलीलें पेश की गईं। इसके बाद दोनों पक्षों ने जवाबी बहस की और लिखित बहस भी दाखिल की। मुस्लिम पक्ष का कहना था कि ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है। आजादी के पहले से वक्फ ऐक्ट में दर्ज है। इससे संबंधित दस्तावेज भी पेश किए गए। वहीं मस्जिद के संबंध में 1936 में दीन मोहम्मद केस में सिविल कोर्ट और 1942 में हाई कोर्ट के उस फैसले का हवाला देते हुए कहा गया कि यह मुकदमा सीपीसी ऑर्डर-7 रूल 11 के तहत सुनवाई योग्य नहीं है।