उस हफ्ते में, जब भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्र की कीमती ज़मीन हासिल कर ली, उसी हफ्ते में उसने बिहार में कुछ ज़मीन गंवा भी दी.
पटना – राष्ट्रीय जनता दल, यानी RJD के प्रमुख तेजस्वी यादव 29 जून को अपनी SUV ड्राइव करते हुए बिहार विधानसभा पहुंचे, और उनके साथ सवार थे बिहार में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के पांच में से चार विधायक. यह अपनी गाड़ी में यूं ही दी गई लिफ्ट नहीं थी, क्योंकि उन चार का कहना था, वे तेजस्वी की पार्टी में शामिल हो रहे हैं.
विधायकों को कब्ज़ाने की इस घटना को बिहार के सच्चे ‘बाहुबली’ स्टाइल में दिखाया गया, और इन लोगों के जुड़ जाने के बाद अब तेजस्वी की पार्टी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बन गई है – RJD के पास अब 80 विधायक हैं, BJP की कुल तादाद से तीन ज़्यादा.
AIMIM के सदन में नेता अख्तरुल ईमान, बिहार विधानसभा में अब AIMIM के एकमात्र सदस्य, प्रेस कॉन्फ्रेंस में तल्ख लफ़्ज़ों में बरस रहे थे, तेजस्वी पर हमलावर होने के लिए असंसदीय भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे, और दावा कर रहे थे कि RJD को मुस्लिमों की नहीं, सिर्फ वोटों की परवाह है, और इसीलिए उन्होंने मुस्लिम हितों की बात करने वाली इकलौती पार्टी का गला घोंट दिया है. ओवैसी पर बहुत-सी चुनावी जंगों में ‘वोट कटवा’ के तौर पर BJP की ‘बी टीम’ होने का आरोप लगता रहा है, जो चुनावों का ध्रुवीकरण कर डालती है और जिससे BJP को मदद मिलती है – क्योंकि कहा जाता है कि BJP-विरोधी वोट छितरा जाते हैं, बंट जाते हैं, और हिन्दू वोट BJP के पक्ष में एकजुट हो जाते हैं.
तेजस्वी द्वारा अपनी पार्टी को बढ़ाने की कोशिशों और निर्विवाद रूप से सर्वेसर्वा होने के संकेत देने के पीछे पार्टी की हालिया जीत का योगदान है. पिछले विधानसभा चुनाव में RJD ने 75 सीटें जीती थीं, और हाल ही में विधानसभा उपचुनाव में उन्होंने एक त्रिकोणीय मुकाबला जीता, और BJP और विकासशील इन्सान पार्टी को पराजित किया.
बिहार की आबादी में लगभग 17 फीसदी मुस्लिम हैं. तेजस्वी यादव कह चुके हैं कि वह बिहार के सभी धर्मनिरपेक्ष दलों को मज़बूत होते देखना चाहते हैं, और उनके पिता लालू प्रसाद यादव की अध्यक्षता में कई दशकों से उनकी पार्टी साम्प्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई में अहम भूमिका निभाती आ रही है. तेजस्वी ने कहा, “हमारी ही वजह से BJP आज तक इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाई कि बिहार में अपने बूते कई चुनाव लड़ ले…”
RJD के आगे बढ़ने के बारे में स्पष्ट संकेत देते हुए 32-वर्षीय तेजस्वी सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी संकेत भेज रहे हैं, राजनेता के रूप में जिनका मन पढ़ना देश में संभवतः सबसे ज़्यादा मुश्किल काम है. पिछले 20 साल में नीतीश कुमार रिकॉर्ड सात बार मुख्यमंत्री रहे हैं. मौजूदा कार्यकाल को मिलाकर इनमें से छह कार्यकाल BJP के साथ गठबंधन में चले हैं, और सातवां कार्यकाल नीतीश ने कांग्रेस और तेजस्वी के साथ मिलकर चलाया था, लेकिन बीच में ही अधूरा छोड़कर वह वापस BJP के साथ चले गए थे.
नीतीश कुमार इस तथ्य से कभी तारतम्य नहीं बिठा पाए कि नरेंद्र मोदी, जिनके लिए मुख्यमंत्री के तौर पर नापसंदगी वह ज़ाहिर करते रहे, आज देश के अग्रणी राजनेता हैं. जब से नरेंद्र मोदी और अमित शाह राष्ट्रीय नेता बने हैं, BJP के साथ नीतीश कुमार के समीकरण जटिल बने रहे हैं. मिलकर सूबा चलाने के बावजूद दोनों पार्टियां मतभेदों को सार्वजनिक करती रही हैं, और वह भी इतनी नियमितता के साथ कि अब तो गठबंधन के टूट जाने की अटकलें लगनी भी बंद हो गई हैं. लेकिन हाल ही में नीतीश कुमार उस समय एक कदम आगे निकल गए, जब मोदी सरकार के मना कर देने के बावजूद नीतीश ने कहा कि जातिगत जनगणना अनिवार्य होनी चाहिए. बिहार विधानसभा में मुख्यमंत्री ने तेजस्वी के साथ मिलकर घोषणा की कि बिहार जातिगत-जनगणना शुरू करेगा. तेजस्वी यादव प्रशंसा किए जाने को लेकर अपने ‘चाचा’ की कमज़ोरी जानते हैं, और लगातार उनकी तारीफों के पुल बांधते रहे हैं.
हालिया वक्त में नीतीश कुमार अपने बयानों से BJP के शीर्ष नेताओं तक का उपहास करते महसूस हुए हैं – याद करें, इतिहास की पुस्तकों को दोबारा लिखे जाने को लेकर अमित शाह के बयान से उलट नीतीश ने कहा, “कोई भी इतिहास नहीं बदल सकता…” BJP की बात काटने का सबसे बड़ा उदाहरण तब सामने आया, जब उन्होंने केंद्र की सेना भर्ती की नई ‘अग्निपथ’ योजना के विरोध में बिहार में उभरे हिंसक प्रदर्शनों पर त्वरित या निर्णायक टिप्पणी करने से इंकार कर दिया.
नीतीश कुमार अपने सहयोगियों से सार्वजनिक रूप से प्रेम प्रदर्शन किया जाना पसंद करते हैं. एक ओर जहां अटल बिहारी वाजपेयी के वक्त की BJP ऐसा करती रही, अमित शाह और नरेंद्र मोदी कतई रूखे रहे हैं. प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से बिहार को ‘विशेष आर्थिक पैकेज’ दिए जाने की उनकी मांग को ठुकरा चुके हैं.
BJP ने अब देश के राष्ट्रपति पद के लिए द्रौपदी मुर्मू के रूप में चतुर चुनाव किया है, जो जनजातीय महिला नेता हैं, जिससे नीतीश कुमार सहित अधिकतर नेताओं के लिए उन्हें इंकार करना मुश्लि हो गया है.
अब नीतीश कुमार की स्थिति ऐसी है कि वह BJP की तुलना में ज़्यादा मुद्दों पर तेजस्वी यादव की RJD से सहमत हैं. लेकिन उन्होंने हमेशा विचारधार की तुलना में सत्ता को चुना है, और अब अपनी पार्टी की बढ़ी हुई ताकत के साथ तेजस्वी इसी बात का फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं.