नई दिल्ली – जजों को चुनने वाले कॉलेजियम सिस्टम में बदलाव की मांग हो रही है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयानों से यह मांग और तेज हो गई है। भारत के चीफ जस्टिस (CJI) बीआर गवई ने कहा है कि कॉलेजियम सिस्टम में कोई भी सुधार ‘न्यायिक स्वतंत्रता की कीमत पर’ नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में नियुक्तियों में न्यायपालिका की प्रधानता बनी रहनी चाहिए। CJI गवई ने मंगलवार शाम यूके सुप्रीम कोर्ट में एक गोलमेज सम्मेलन में यह बात कही। उन्होंने कहा कि कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना हो सकती है, लेकिन न्यायाधीशों को बाहरी नियंत्रण से मुक्त होना चाहिए।
जजों की नियुक्ति में देश में कैसे विकसित हुआ कॉलेजियम सिस्टम
CJI ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को रद्द कर दिया था। क्योंकि इस कानून ने अदालत की नियुक्तियों में कार्यपालिका को प्रधानता देकर न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कम करने की कोशिश की थी। CJI ने 1993 और 1998 में SC के दो फैसलों के माध्यम से कॉलेजियम सिस्टम के विकास के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि 1993 तक सुप्रीम कोर्ट (SC) और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका की अंतिम बात मानी जाती थी। उस सिस्टम में SC के दो सबसे वरिष्ठ जजों को CJI की नियुक्ति में पीछे कर दिया गया था। ऐसा इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने स्थापित परंपराओं को तोड़कर किया था।