Home देश डॉ मनमोहन सिंह – मेरे मित्र….को तहे दिल से मेरी शब्दांजलि

डॉ मनमोहन सिंह – मेरे मित्र….को तहे दिल से मेरी शब्दांजलि

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डॉ धर्मेन्द्र भंडारी

यह कहानी है एक महान व्यक्तित्व के साथ मेरी मित्रता की। हम दोनों के बीच बहुत अधिक समानताएं नहीं थी। हमारे कुछ दोस्त जरूर कॉमन थे। इनमें थे-नानी पालकीवाला और आर.के. लक्ष्मण, जो मेरे भी बैस्ट फ्रैंड थे।

छात्र के रूप में हुई थी पहली मुलाकात
डॉ. मनमोहन सिंह के साथ मेरी पहली मुलाकात 1982 के आसपास हुई थी, जब वे रिजर्व बैंक के गवर्नर थे। उस समय मैं वहां रिसर्च स्कॉलर था और ‘टैक्सेशन ऑफ नॉन रेजीडेंट इन इंडिया’ विषय पर पीएचडी कर रहा था। तब मैंने उनसे मिलने का समय मांगा। समय मिलने पर मैंने उनसे आग्रह किया कि वे मेरे कुछ अध्यायों को चैक करें। उन्होने वे अध्याय पढ़े और उनके बारे में कुछ टिप्पणियां भी कीं।

राजस्थान विश्वविद्यालय में लैक्चरर बनने के बाद मैं उनसे निरंतर मिलता रहा। वे इतने उदारमना थे कि व्यस्तता के बावजूद मुझे समय देते थे। चूंकि मैं सीए भी था तो अक्सर हमारे बीच आर्थिक नीतियों को लेकर भी चर्चा होती। इन चर्चाओं में मुझे उन्हें यह बताने का भी अवसर मिला कि कागजों पर बनी नीति को सीए कैसे क्रियान्वित करते हैं। इन चर्चाओं में वे गहरी रुचि लेते।

परीक्षा की घड़ी
मेरे लिए 1992 की वह घड़ी सर्वाधिक कठिन परीक्षा की घड़ी थी,जब मुझे संयुक्त संसदीय समिति द्वारा हर्षद मेहता घोटाले की जांच के लिए बुलाया गया। उस वक्त मैं वहां एकमात्र परामर्शदाता था,जिसे विश्वविद्यालय द्वारा प्रतिनियुक्ति पर वहां भेजा गया था। उस वक्त मुझे कहा गया कि मैं वित मंत्रालय पर एक अध्याय लिखूं और डॉ. मनमोहन सिंह जी ही उस समय वित्त मंत्री थे। उन्होंने तब कहा था-‘अगर किसी दिन स्टॉक मार्केट चढ़ जाता है और अगले दिन गिर जाता है तो इसका असर मेरी नींद पर नहीं पड़ता’। 1994-95 में जब वे वित मंत्री थे,उन्होंने मुझे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में प्रतिनियुक्ति पर ओएसडी बना कर भेजा था।

1999-लोक सभा चुनाव
इन चुनावों में मैंने देखा कि मनमोहन सिंह जी किसी भी रैली को संबोधित करने ठीक समय पर,बल्कि पांच मिनट पहले ही पहुंच जाते। कुछ रैलियों के लिए मैं भी उनके साथ उनकी कार में बैठ कर गया। तब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। नानी पालकीवाला वाजपेयी और बीजेपी के घनिष्ठ मित्र थे। तब भी उन्होंने मनमोहन सिंह को मेरे आग्रह करने पर चुनाव के लिए समर्थन पत्र दिया।

कैर-सांगरी की सब्जी आई पसंद
90 के दशक के अंतिम दिनों और 2000 में जब कभी डॉ.सिंह जयपुर आते,हमारे घर जरूर आते थे। उन्हें मेरी मां के हाथ के बने कुछ व्यंजन पसंद आते थे। 1991 में जब वे जयपुर आए तो उन्हें हमारे घर पर बनी कैर सांगरी की सब्जी बेहद पसंद आई, जो मेरी पत्नी ने बनाई थी।

उन्होंने स्वयं को समाजवादी से पूंजीवादी विचारधारा वाला बनाने में संकोच नहीं किया। मुझे तब यह समझ नहीं आया था, हालांकि उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में इसे समझाने की कोशिश की थी। करीब 7 साल बाद मुझे यह समझ आया कि वे जो कर रहे थे वह जरूरी था ओर वही सही था। उनके कार्यकाल में मैंने बैंकिंग पर आधारित कुछ किताबें लिखी, उनमें से एक थी-‘टर्न अराउंड ऑफ बैंक्सःएन ऑप्टिकल इल्युजन’(मार्च 1996)। इसमें मनमोहन सिंह की नीतियों व उपलब्धियों पर भी चर्चा की गई है।

दोस्त की कृति पर ओबामा का ऑटोग्राफ लिया

नवम्बर 2010 में जब अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत आए थे। प्रधानमंत्री आवास पर उनके रात्रि भोज का आयोजन था। मैंने मनमोहन सिंह जी के परिवार से आग्रह किया कि वे आर.के लक्ष्मण की बनाई एक कृति पर ओबामा के ऑटोग्राफ लें। तब उन्होंने डिनर के बाद की भेंट में ओबामा को देश के आम आदमी को अभिव्यक्ति देने वाले जाने-माने कार्टूनिस्ट आर.के.लक्ष्मण के बारे में बताया और मेरा भेजा गया आर.के लक्ष्मण का कैरिकेचर दिखाया। ओबामा आर.केलक्ष्मण के उस कार्टून को देखकर काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने उस पर ऑटोग्राफ भी दिया।

मेरी किताब का लोकार्पण
2009 में आर.के. लक्ष्मण पर आई मेरी किताब का लोकार्पण करने के लिए मैंने डॉ.मनोहन सिंह की धर्मपत्नी गुरशरण कौर से आग्रह किया। उन्होंने ताज मानसिंह में न केवल पुस्तक का लोकार्पण किया बल्कि सार्वजनिक मंच से संबोधन भी दिया।
अपनी पुस्तक चेंजिंग इंडिया की पहली प्रति भेंट की।

2019 में डॉ.मनमोहन सिंह ने अपनी पुस्तक चेंजिंग इंडिया की पहली प्रति धर्मेंद्र भंडारी को भेंट की।खास खबर से साभार