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1 रुपए सैलरी लेने वाला वाराणसी का पहला सांसद, जिसने मंत्री बनने से किया था इंकार, यहां से PM मोदी तीसरी बार मैदान में

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पिछले दो लोकसभा चुनावों में भारी-भरकम जीत के बाद आज पीएम मोदी ने तीसरी बार वाराणसी सीट से परचा भर दिया है. वाराणसी शहर की तरह यहां की लोकसभा सीट भी काफ़ी महत्त्वपूर्ण रही है. आज़ादी के बाद से ही यहां से जीते सांसदों ने केंद्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. शुरुआत से यहां से लगातार तीन बार सांसद रहे रघुनाथ सिंह केंद्र में मोरार जी देसाई के करीबी थे.

आज विक्रमी संवत 2081 की बैशाख शुक्ल सप्तमी है. ईस्वी सन की तारीख़ 14 मई 2024 है. लोक मान्यता में इस सप्तमी को गंगा का जन्म दिन बताया गया है. कहा जाता है, कि आज के ही दिन ब्रह्मा के कमंडल से गंगा की धार निकली और हरहरा कर नीचे गिरती हुई सीधे शिव जी की जटाओं में उलझ गईं. गंगा की अपनी धारा के रास्ते में पड़ने वाले सभी शहरों में काशी को सर्वाधिक पवित्र माना गया है. शायद इसीलिए 2014 में नरेंद्र मोदी ने काशी को अपने निर्वाचन के लिए इसी सीट को निश्चित किया होगा.

पिछले दो लोकसभा चुनावों में भारी-भरकम जीत के बाद आज उन्होंने तीसरी बार काशी या वाराणसी सीट से परचा भर दिया है. परचा भरने के एक दिन पहले शाम को उन्होंने वाराणसी में रोड शो किया था. उसमें जुटी भीड़ से उत्साहित प्रधानमंत्री फिर से 400 पार के नारे को जनता का संकल्प बता रहे हैं.

रघुनाथ सिंह लगातार तीन आम चुनाव जीते थे

वाराणसी शहर की तरह यहां की लोकसभा सीट भी काफ़ी महत्त्वपूर्ण रही है. आज़ादी के बाद से ही यहां से जीते सांसदों ने केंद्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. शुरुआत से यहां से लगातार तीन बार सांसद रहे रघुनाथ सिंह (1952, 1957 और 1962) केंद्र में मोरार जी देसाई के करीबी थे. कहा जाता है कि जब उन्हें केंद्र में मंत्री पद ऑफर किया गया तो उन्होंने मना कर दिया था.वे कभी मंत्री तो नहीं रहे मगर कांग्रेस संसदीय दल के सचिव रहे. 1967 में वे CPM के सत्य नारायण सिंह से पराजित हुए और बाद में मोरार जी के साथ कांग्रेस (ओ) में चले गए. जब जनता पार्टी सरकार बनी तब प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई ने उन्हें शिपिंग कॉर्पोरेशन का चेयरमैन बनाया. इसके पूर्व 1968 में वे जिंक लिमिटेड के भी चेयरमैन भी रहे थे. उस समय में इस पद हेतु वे महज़ एक रुपया वेतन लेते थे. रघुनाथ सिंह इसी ज़िले की खेवली गांव में एक भूमिहार परिवार में पैदा हुए थे. कवि सुदामा प्रसाद धूमिल भी इसी गांव के थे.

वाराणसी से जीतते रहे दिग्गज

वाराणसी से लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव जीतने वालों में शंकर प्रसाद जायसवाल थे जो 1996, 1998 और 1999 में यहां से भाजपा की टिकट पर चुने गए. 1998 और 1999 के चुनाव लोकसभा भंग होने के कारण हुए थे. यहीं से 1980 में कमलापति त्रिपाठी भी सांसद रहे. जो उस समय की इंदिरा गांधी सरकार में रेल मंत्री बने.

2009 में मुरली मनोहर जोशी भी यहीं से लोकसभा का चुनाव जीते. भाजपा, कांग्रेस के लिए यह सीट गढ़ रही है. लेकिन 1989 में यहां से वीपी सिंह के जनता दल से अनिल शास्त्री सांसद बने और 1977 में जनता पार्टी जीती थी. इसके पहले 1967 में CPM. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां आकर इतिहास रच दिया. 2014 में वे 371784 वोटों के अंतर से जीते थे और 2019 में यह अंतर पौने पांच लाख मतों से अधिक था. वाराणसी में उनके प्रति दीवानगी तो कल के रोड शो में भी खूब दिखी.

काशी में धार्मिकता तो है किंतु सांप्रदायिकता नहीं

काशी एक धार्मिक शहर भले हो लेकिन यहां के धर्म में सांप्रदायिकता लेशमात्र नहीं है. यह वही काशी है, जिसने आदि शंकराचार्य को संन्यासी और चांडाल में एक ही आत्मा का वास बताया. काशी में स्वामी रामानंद ने ब्राह्मण और शूद्र सभी को भक्ति का मंत्र दिया. यहां तुलसी जैसे वर्णाश्रम धर्म के हामी भी हुए और कबीर व रविदास जैसे वर्णाश्रम विरोधी धारा के महापुरुष भी. धूत-अवधूत, रजपूत, जुलाहा, हिंदू-मुसलमान सब को यहां शरण मिली और सब ने यहां पर खुल कर अपनी बात रखी.

किसी का डर नहीं और कोई यहां सबसे ऊपर नहीं. सिवाय शिव शंकर विश्वनाथ के सब यहां कॉमनमैन हैं. किसी पर भी टिप्पणी की जा सकती है, खुले आम गरियाया जा सकता है. काशीनाथ सिंह ने लिखा है, भगवान विश्वनाथ और काशी नरेश को छोड़ कर यहां के गरिहा (गाली देने वालों) ने किसी को नहीं बख्शा.

सबका चहेता बन जाना एक चमत्कार है

एक ऐसे समाज में कोई सबका प्रिय बन जाए, यह चमत्कार ही होगा. नरेंद्र मोदी ने जब 2014 में यहां आकर वाराणसी से लड़ने की घोषणा की तब सबको आश्चर्य हुआ कि आख़िर वाराणसी ही क्यों! जबकि भाजपा उसके पहले 30 वर्षों से अयोध्या को चुनावी मुद्दा बनाए थी. किंतु वाराणसी जैसे मस्त मिज़ाज वाले शहर में उनका क्या काम! किंतु वे यहां से लड़े और सबको पराजित कर सांसद चुने गए. तब कांग्रेस के अजय राय के अलावा आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल उनके विरुद्ध लड़े.

अरविंद केजरीवाल को तब सिर्फ़ 209238 वोट ही मिल सके और कांग्रेस के अजय राय 75614 वोट पर सिमट गए. 2019 में नम्बर दो पर रहीं सपा की शालिनी यादव को 195159 वोट मिले और रहीं और अजय राय फिर तीसरे स्थान पर रहे. उन्हें 152548 मत मिले. उस बार सपा और कांग्रेस मिल कर लड़ रहे हैं.

विपक्ष के साझा वोटों से भी ऊपर रहे मोदी

वाराणसी में यदि पिछले दोनों चुनावों पर नज़र डाली जाए तो पता चलता है, कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां पर विपक्ष को मिले सारे वोटों से अधिक वोट पा कर जीतते रहे हैं. इसलिए 2024 भी उनके लिए कोई मुश्किल नहीं दिख रहा. किंतु 2024 में डस वर्ष के कामकाज की समीक्षा भी एक मुद्दा होगा और साथ ही हर सीट पर वहां से जीते हुए प्रतिनिधि की भी समीक्षा एक मुद्दा रहेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तो अपनी सीट से बहुत लगाव रहा है. वे पिछले दस वर्षों में 45 बार यहां आए हैं, डेरा डाला है और लोगों से मिले हैं. इसलिए उनके प्रति यहां की जनता में पर्याप्त आस्था है. नरेंद्र मोदी यहां आते हैं तो कुछ देर के लिए वे प्रधानमंत्री का ताम-झाम भूल जाते हैं. विश्वनाथ मंदिर में वे एक आस्थावान हिंदू की तरह पूजा करते हैं, मनौती मानते हैं. यहां आने पर वे काशी के कोतवाल के यहां हाज़िरी देना नहीं भूलते.

काशी कोतवाल के यहां हाज़िरी

आज भी उन्होंने परचा भरने के पूर्व काशी के कोतवाल (काल भैरव) मंदिर में हाज़िरी लगाई. इसके बाद दोपहर 11.55 पर उन्होंने परचा दाखिल किया. आज का शुभ मुहूर्त 11.40 के बाद का था. उनके साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी रहे. इसके अतिरिक्त भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री तथा सहयोगी दलों के मुख्यमंत्री भी उपस्थित थे. सिर्फ़ नीतीश कुमार नहीं थे.

कड़ी धूप और भयंकर गर्मी के बीच प्रधानमंत्री ने वाराणसी से परचा दाखिल किया है. उनके चेहरे और उनके व्यवहार में कोई खीज या हड़बड़ी नहीं थी. संभवतः उनको अपनी जीत पुख़्ता नज़र आ रही होगी. वाराणसी के लोगों में जो फक्कड़पन है, उसका अहसास प्रधानमंत्री को रहा होगा, इसीलिए उन्होंने खुद को भी कई बार बनारसिया कहा.

मोदी-3 का लक्ष्य पाने के लिए बड़ी चुनौती

गंगा सप्तमी का मुहूर्त चुनने के लिए कड़ी मशक़्क़त की गई. इसी तरह काशी के कोतवाल के यहां हाज़िरी लगाने की और 11.40 के बाद मुहूर्त लगने के लिए भी. आज यह भी दिखाया गया कि मोदी अकेले नहीं बल्कि उनके साथ पूरा भारत जुटा हुआ है. उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम हर क्षेत्र के नेता, मुख्यमंत्री उपस्थित थे.

इस मुहूर्त में यह भी कहा गया कि मोदी सरकार देश के संविधान पर अडिग है. नरेंद्र मोदी के नामांकन से यह दिख गया कि मोदी-3 के लिए भाजपा पूरी ताक़त से जुटी हुई है. ग़ैर कांग्रेसी राजनीति के लिए 2024 का चुनाव जीतना नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है. अभी तक के इतिहास में सिर्फ़ जवाहर लाल नेहरू को ही यह सौभाग्य हासिल है. आज़ादी के बाद वे 1952, 1957 और 1962 तल लगातार जीते थे. इसलिए इस लक्ष्य को भेदना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कड़ी चुनौती है.