बंगाल में 23 फीसदी मुस्लिम वोट बैंक को लेकर ममता बनर्जी का बड़ा बयाम सामने आया हैं. जिसके बाद सियासी फिजाओं में इस बात की चर्चा तेज है कि क्या मुस्लिम वोट बैंक बिखरने का ममता बनर्जी को सता रहा डर हैं?
नई दिल्ली – आगामी 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर बंगाल की CM ममता बनर्जी राज्य का लगातार दौरा कर रही हैं. बीते दिनों उन्होंने अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया था. जिसके बाद बीते कुछ दिनों से TMC और कांग्रेस के रिशतों के बीच तल्खी देखने को मिल रही है. ममता बनर्जी बंगाल में कांग्रेस पार्टी के सियासी वजूद पर सवाल उठाते हुए लगातार हमलावर हैं. बंगाल की सियासत में ममता की छवि धर्मनिरपेक्ष नेता के तौर पर रही है. वो लगातार सार्वजनिक मंचों से सभी धर्म को साथ लेने की बात कहती रही हैं लेकिन बंगाल की मुख्य विपक्षी दल बीजेपी उन पर मुसलमानों के तुष्टीकरण का आरोप लगाती रही है.
अन्य राज्यों की तरह बंगाल में 23 फिसदी मुस्लिम वोट बैंक बंगाल की सियासी मिजाज की कड़वी हकीकत है. कांग्रेस हो या वाम दल चाहें TMC, सबकी कोशिश मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने की है. यह बात सीसे की तरह साफ है कि ममता बनर्जी मुस्लिम समाज को अपना कोर वोट बैंक मानती हैं. ममता की अभी तक की राजनीति का बारीकी से अध्ययन किया जाएं तो वह इस समाज की रहनुमाई का बड़ा दावा करती रही हैं. TMC के प्रति मुस्लिम मतदाताओं का स्वभाविक रुझान ममता को सत्ता की कुर्सी दिलाता रहा है. ऐसे में इस वोट बैंक को वह 2024 लोकसभा चुनाव में भी बरकरार रखना चाहेगी. जिसकी झलक उनके बयानों में साफ तौर पर देखने को मिला.
हम जैसे सेक्युलर दल क्या करेंगे?
कोलकाता में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए ममता ने कहा, “मैंने कांग्रेस से 300 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने और बाकी सीटों को इंडिया गठबंधन के लिए छोड़ने को कहा, लेकिन वे नहीं माने. अब वे राज्य में मुस्लिम मतदाताओं के बीच हलचल पैदा चाहते है. बीजेपी हिंदू वोटरों में हलचल पैदा करने की कोशिश कर रही है. हम जैसे सेक्युलर दल क्या करेंगे? मुझे नहीं पता कि कांग्रेस अगर 300 सीटों पर चुनाव लड़ेगी तो 40 सीटें भी जीत पाएगी या नहीं”
मुस्लिम मतदाताओं का ममता के प्रति स्वाभाविक रुझान
कांग्रेस के खिलाफ ममता ने यह बयान देकर साप संकेत दिया कि टीएमसी अल्पसंख्यक वोटों का विभाजन नहीं चाहती है, जिस पर उनकी पार्टी ने 2011 में बंगाल में सत्ता में आने के बाद से कब्जा कर लिया है. बीते 22 जनवरी को टीएमसी की सर्व-विश्वास रैली में ममता ने मुस्लिम मतदाताओं से टीएमसी के अलावा किसी अन्य पार्टी का समर्थन करके अपना वोट बर्बाद न करने की बात कही थी.
दरअसल राज्य की सत्ता में लंबे समय तक वाम दल की सरकार रही, जिसकी वजह मुस्लिम समाज का सीपीएम के साथ जुड़ा रहना था. ममता जब कांग्रेस से अलग होकर अपनी अलग सियासी राह पकड़ी तो उन्होंने वाम दल को चुनौती देना शुरू कर दिया. लंबे सियासी संघर्ष के बाद 2011 में वो वाम दल की सरकार को सूबे की सत्ता से बेदखल करने में कामयाब रही. 2006 और 2008 के बीच नंदीग्राम और सिंगूर भूमि आंदोलन वाम मोर्चे के खिलाफ टीएमसी के उदय का सबसे बड़ा कारण बना.