सोमालिया में समोसा बनाने, खरीदने और खाने पर सजा का प्रावधान है. सोमालिया का एक चरमपंथी समूह मानता है कि समोसे का त्रिकोणीय रूप क्रिश्चियन कम्यूनिटी के बेहद करीब होता है.
सोमालिया – समोसे और चाय का कॉम्बिनेशन भला किसे पसंद नहीं होता है. भारतीय लोगों को तो सबसे ज्यादा अच्छे लगने वाले कुछ स्नैक्स में समोसा शुमार है. देश के हर कोने में आपको बाज़ार और गलियों में छनते हुए समोसे दिख जाएंगे. जगह के हिसाब से इसका रेट भले ही बदलता रहे लेकिन इसका लाजवाब स्वाद एक जैसा ही होता है.
समोसे की इतनी बड़ाई हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि भारत में लोगों को ये खूब पसंद है लेकिन एक देश ऐसा भी है, जहां यही समोसा खाने के लिए लोगों को तरसना पड़ता है. हमारे यहां मेहमानों को समोसा बेझिझक परोसा जाता है और वो भी स्वाद ले-लेकर खाते हैं लेकिन एक अफ्रीकन देश में इसे बनाने और खाने पर पूरी तरह से पाबंदी है. अगर इस नियम को तोड़ने की कोशिश की तो यहां सज़ा तक मिलती है.
यहां दुर्लभ हैं समोसे के दर्शन
एक तरफ एशियन देशों से निकलकर समोसा यूरोप तक में पहुंच रहा है तो दूसरी तरफ अफ्रीकन देश सोमालिया में समोसे खाने पर पाबंदी लगी हुई है. इस देश में समोसे को बनाने, खरीदने और खाने पर रोक है और इसका उल्लंघन करने पर लोगों को सज़ा भी दी जाती है. आप सोच रहे होंगे कि आखिर इसकी वजह क्या हो सकती है? तो समोसा बैन होने के लिए इसका तिकोना आकार ज़िम्मेदार है. सोमालिया के एक चरमपंथी समूह का मानना है कि समोसे का आकार क्रिश्चियन समुदाय के एक चिह्न से मिलता है. वैसे इसकी एक वजह ये भी बताई जा रही है कि समोसे में सड़े-गले मीट भरने की वजह से इस पर पाबंदी लगी है.
कहां से आया निराला समोसा?
कहा जाता है कि 10वीं सदी में समोसा मध्य एशिया से आए एक अरबी सौदागर के साथ आया. ईरानी इतिहासकार अबोलफाजी बेहाकी ने “तारीख ए बेहाकी” में इस बात का जिक्र किया. मानते हैं कि समोसे का जन्म मिस्र में हुआ. यहां से ये लीबिया और फिर मध्य पूर्व में पहुंचा. ईरान में ये 16वीं सदी तक बहुत पसंद किया जाता था. अमीर खुसरो के मुताबिक 13वीं सदी में ये मुगल दरबार की पसंदीदा डिश थी. हालांकि आलू वाले समोसे 16वीं सदी में बने, जब पुर्तगाली आलू लेकर भारत आए. तब से तो लोग इसके प्यार में पड़ गए.