छठ महापर्व का आज तीसरा दिन
आज यानी 19 नवंबर को छठ महापर्व का तीसरा दिन है। आज के दिन संध्या अर्घ्य यानी डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। चार दिवसीय छठ पर्व में तीसरा दिन सबसे खास होता है। इस दिन लोग अपने परिवार के साथ घाट पर जाते हैं और कमर तक पानी में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। मान्यता है कि जो लोग पूरी श्रद्धा के साथ छठ माता और सूर्य देव की पूजा-अर्चना करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं छठ मैया पूरी करती हैं। आइए आपको बताते हैं छठ पूजा के तीसरे दिन संध्या अर्घ्य कब दिया जाएगा, इसके लिए शुभ मुहूर्त और पूजा की विधि क्या है…
छठ पूजा 2023 पर संध्या अर्घ्य का समय
छठ पूजा का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य का होता है। इस दिन छठ पर्व की मुख्य पूजा की जाती है। इस दिन व्रती घाट पर आते हैं और डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। आज यानी 19 नवंबर को सूर्यास्त शाम 05 बजकर 26 मिनट पर होगा। इस समय लोग सूर्य को अर्घ्य देंगे।
सूर्य देव को कैसे दें अर्घ्य?
छठ पूजा में सूर्यदेव की पूजा और उन्हें अर्घ्य देने का विशेष महत्व होता है। इस दिन सभी पूजन सामग्री को बांस की टोकरी में रख लें। नदी, तालाब या जल में प्रवेश करके सबसे पहले मन ही मन सूर्य देव और छठी मैया को प्रणाम करें। इसके बाद सूर्य देव और अर्घ्य दें। सूर्य को अर्घ्य देते समय “एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते, अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर” इस मंत्र का उच्चारण करें।
छठ पूजा के तीसरे दिन का महत्व
छठ महापर्व का तीसरा दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर मनाया जाता है। यह छठ पूजा का सबसे प्रमुख दिन होता है। इस दिन शाम के समय लोग नए वस्त्र पहन कर परिवार के साथ घाट पर आते हैं और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। महिलाएं दूध और पानी से सूर्य भगवान को अर्घ्य देती हैं और संतान की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
परिवार और संतान की लंबी उम्र की कामना
इस दिन व्रत रखने वाले लोग अपने परिवार और बच्चों की लंबी उम्र की प्रार्थना करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से छठी माता व्रत करने वाले लोगों के परिवार और संतान को लंबी आयु और सुख समृद्धि का वरदान देती हैं।
नहाय-खाय के साथ होती है पूजा की शुरुआत
चार दिवसीय छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय के साथ होती है। फिर अगले दिन खरना होता है। खरना का अर्थ है मन तन और वातावरण की शुद्धता। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन अंतर मन की स्वच्छता पर जोर दिया जाता है। खरना महापर्व के दौरान की जाने वाली महत्वपूर्ण पूजा है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन छठी मैया का आगमन होता है, जिसके बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है। खरना पूजा के दिन व्रती महिलाएं नहाने के बाद भगवान सूर्य की पूजा करती हैं। शाम के समय मिट्टी के चूल्हे पर साठी के चावल, गुड़ और दूध की खीर बनाती हैं, ठेकुआ बनाती हैं, जिसे भोग के रूप में सबसे पहले छठी मैया को अर्पित करते हैं। व्रती उपवास रखकर रात में खरना पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करती हैं। फिर घर के सदस्यों को प्रसाद बांटा जाता है।
देश के चार महानगरों समेत सभी राज्यों में मनता है छठ पर्व
छठ महापर्व मुख्य रूप से बिहार और यूपी के पूर्वांचल में मनाया जाता है। वहीं देश के सभी प्रदेशों में रहने वाले उत्तर भारतीय समाज के लोग धूमधाम से मनाते हैं। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई समेत देश के कई महानगरों में इस पर्व की धूम रहती है।
छठ पूजा का इतिहास
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस पूजा की शुरुआत महाभारत काल से मानी जाती है। दौपदी और पांडवों ने छठ पूजा का व्रत रखा था। उन्होंने अपने राज्य को वापस पाने के लिए यह व्रत रखा था। जब पांडव सारा राजपाठ जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया, इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की पूजा फलदायी माना जाता है। इसके अलावा यदि नि: संतान महिलाएं यह पूजा करती हैं, तो उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। इस बात बात का प्रमाण है कि छठ पूजा की शुरुआत बिहार के मुंगेर जिले से हुई थी।