Home छत्तीसगढ़ जन्माष्टमी पर कृष्ण को लगाएं 56 भोग, जानें छप्पन पकवान की लिस्ट

जन्माष्टमी पर कृष्ण को लगाएं 56 भोग, जानें छप्पन पकवान की लिस्ट

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जन्माष्टमी 18 और 19 अगस्त 2022 दोनों दिन मनाई जाएगी. बाल गोपाल के जन्मोत्सव पर उन्हें छप्पन भोग अर्पित करने की भी परंपरा है.

जानते हैं 56 भोग में कौन से पकवान होते हैं.

मथुरा – भाद्रपद की अष्टमी तिथि पर भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया था. कान्हा विष्णु जी के 8वें अवतार माने गए है. इस साल जन्माष्टमी 18 और 19 अगस्त 2022 दोनों दिन मनाई जाएगी. बाल गोपाल के जन्मोत्सव पर उनका विशेष श्रृंगार किया जाता है. उनके प्रिय प्रसाद माखन-मिश्री के साथ उन्हें छप्पन भोग अर्पित करने की भी परंपरा है. 56 भोग में लड्‌डू गोपाल के लिए कई प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं. आइए जानते हैं 56 भोग में कौन से पकवान होते हैं और ये परंपरा कैसे शुरु हुई.

56 भोग के पकवान

  • चोला, जलेबी, दही, मक्खन, मलाई, मेसू, रसगुल्ला, पगी, महारायता
  • सिखरन, शरबत, बालका (बाटी), इक्षु, बटक, मोहन भोग, लवण, कषाय, मधुर, तिक्त, मठरी
  • फेनी, पूड़ी, खजला, घेवर, मालपुआ, थूली, लौंगपुरी, खुरमा, दलिया, परिखा, सौंफ युक्त बिलसारू
  • लड्डू, साग, अधौना अचार, मोठ, खीर, भात, सूप, चटनी, कढ़ी, दही शाक की कढ़ी, रबड़ी, पापड़
  • गाय का घी, सीरा, लस्सी, सुवत, मोहन, सुपारी, इलायची, फल, तांबूल, कटु, अम्ल, तांबूल, लसिका

कैसे शुरु हुई 56 भोग लगाने की परंपरा ?

पौराणिक कथा के अनुसार मां यशोदा कान्हा को बचपन में दिन में 8 बार भोजन कराती थीं. एक बार गांव में अच्छी बारिश की इच्छा पूर्ति के लिए नंदबाबा और सभी मिलकर इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए बड़ा आयोजन कर रहे थे. कान्हा को जब इस आयोजन का ज्ञात हुआ तो उन्होंने कहा कि बारिश के लिए पूजा करनी है तो इंद्रदेव की नहीं बल्कि गोवर्धन पर्वत की आराधना करें, इससे फल-सब्जियां प्राप्त होती हैं और पशुओं को चारा मिलेगा.

कान्हा बिना भोजन के सात दिन तक रहे

सभी मिलकर इंद्रदेव की बजाय गोवर्धन पर्वत को पूजन लगे. क्रोध में आकर इंद्रदेव में बारिश कर दी. चारों तरफ पानी ही पानी हो गया, तब कृष्ण जी ने अपनी एक उंगली पर पूरे गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सभी की रक्षा की. सात दिन तक कान्हा बिना खाए इसी अवस्था में रहे. इसके बाद माता यशोदा और सभी गांववालों ने बाल गोपाल के लिए सात दिन और आठ प्रहर के हिसाब से छप्पन में कई पकवान बनाकर उन्हें खिलाए. बस तब से ही ये परंपरा चली आ रही है.