Home साहित्य महामारी की त्रासदी: कोरोना से चरमराती स्वास्थ व्यवस्था और घुटती सांसें

महामारी की त्रासदी: कोरोना से चरमराती स्वास्थ व्यवस्था और घुटती सांसें

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6 साल की बेटी पूरी रात अपने पिता के शव के साथ लिपट कर सोई रही। सुबह उठी तो बिस्किट खाकर पिता के मोबाइल पर वीडियो गेम खेलने लगी। उस बच्ची को यह भी नहीं पता था कि उसके पिता की रात में ही कोरोना से मौत हो गई है। यह खबर बिहार के पटना से आई। उससे पहले उत्तर प्रदेश के जौनपुर से भी खबर आई की एक वृद्ध को अपनी पत्नी की लाश को साइकिल पर ले कर जाना पड़ा, कहीं कोई बेटी रात भर लाइन में लग कर अपनी बीमार मां के लिए ऑक्सीजन भरवाने आई, लेकिन जब तक उसका नंबर आता उससे पहले ही उसकी मां की मौत की खबर आ गई। यह सब खबरें दिल को झकझोरने वाली हैं। गंभीर सवाल करती है सरकार से, फिर चाहे वह राज्य की हो या केंद्र की।

बाकि राज्य या गांव की तो बात छोड़िए, अगर आप देश की राजधानी दिल्ली में एक ऑक्सीजन सिलिंडर पाना चाहें या किसी अस्पताल में एडमिट होना, तो चाहे आपके पास कितना भी पैसा हो, जो भी रसूख हो, कितनी भी ऊंची पहुंच हो, आप सिर्फ इस अस्पताल से उस अस्पताल तक की ठोकर ही खाएंगे। अगर यह दिल्ली के हालत हैं तो आप और शहरों और गांव के हालत का अंदाजा लगा सकते हैं की कितने बदतर हालत होंगे।

दिल्ली हो, मेरठ हो, लखनऊ हो, नागपुर हो या नासिक हर तरह जमीनी स्तर पर सिर्फ और सिर्फ कोरोना मरीजों की घुटती सांसें हैं और उनके तीमारदारों की चीख पुकार और अपनों को बचाने की जद्दोजहद। आज अगर कोई मदद चाहिए हो, तो चाहे फेसबुक हो, ट्विटर हो या व्हाट्सप्प, बस यही एक जरिया बचा हुआ है।

ऑक्सीजन लेने की मची होड़, हर जगह यही हाल है1 – फोटो : अमर उजाला
अभी महीने भर पहले की बात है, जब हम विश्व पटल में भारत को एक बड़ी शक्ति के तौर पर देख रहे थे, चर्चे इस बात के थे की हम सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, पूरे विश्व को वैक्सीन भेज रहे थे, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की नई गाथा लिख रहे थे। लेकिन आज हम अपने लोगों के इलाज के लिए ऑक्सीजन तक नही दे पा रहे, जो दवाइयां वैक्सीन बाहर भेज रहे थे, आज वही मंगवानी पड़ रही है। जो राज्य और सरकारें पहली लहर के बाद अपनी सफलता को बढ़-चढ़ कर बता रही थी आज ना तो वह सरकारें कहीं दिख रही है और ना ही उनके मुखिया।

लेकिन ऐसा हुआ क्यों, एक दम से जीती हुई लड़ाई कैसे हार गए हम, अगर पीछे मुड़ के देखा जाए तो इसकी वजह भी हम खुद है। कोरोना वैक्सीन आने के बाद जो लापरवाही हमने दिखाई, जिस तरीके से सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क और इस महामारी के लिए तय किए गए हर प्रोटोकॉल को हमने तोडा, उसका परिणाम तो हमें ही भुगतना था। चाहे वो सरोजनी नगर मार्किट की भीड़ हो या दादर की सब्जी मंडी की।

जिस समय में हमें सावधानी और सरकार को स्वास्थ सेवाओं के विस्तार और मजबूती में लगाना था, उस वक्त हम गोवा और किसी पहाड़ी हिल में जाने के प्लान बना रहे थे, बाहर निकल के स्ट्रीट फ़ूड का जायका उठा रहे थे तो सरकारें भी अपनी जिम्मेदारी को भूल कर चुनाव और पहली लहर में मिली सफलता के कसीदे पढ़ने लगे। और जो कोरोना अभी शहरों तक रुका था वह बढ़ते बढ़ते दूर दराज के गांव तक पहुंच गया। अब चाहे इसका ठीकरा किसी सरकार पर फोड़े या किसी राज्य पर लेकिन ये हमारे पूरे सिस्टम का फेलियर है।

अगर हमने लापरवाही की सारी हदों को पार कर दिया, तो हमारे साथ-साथ सरकारों ने भी वही नजरिया अपनाया और दूसरे देशों में आ रही दूसरी और तीसरी लहर पार किसी का ध्यान नहीं गया। जहां पहले लॉकडाउन से हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था को खुद को चुस्त-दुरुस्त करने का वक्त मिल गया था, तो इस बार तो लॉकडाउन का भी सहारा ना था और दूसरी लहर, लहर नहीं सुनामी की रफ्तार से आई। हमारी स्वास्थ व्यवस्था की जो पोल पिछली बार खुलने से बच गई थी, जिस तरह की केसों और मौतों के आकंड़ों की अनुमान दुनिया पहली लहर के समय भारत में लगा रही थी और जिससे हम बाल-बाल बच गए थे। इस बार की लहर ने उन सभी आकंड़ों की तोड़ दिया।

सच्चाई यह है की हम आज एक जीती हुई लड़ाई को हार कर उस मुकाम पर आ खड़े हैं, जहां डॉक्टर सीमित है, अस्पताल में जगह नहीं है और ना ही ऑक्सीजन है। अब हमारे पास ज्यादा विकल्प हैं नहीं, अब जल्दी से ज्यादा से ज्यादा लोगो का वैक्सीनेशन करना ही होगा, और जब तक वैक्सीन नहीं लगे, हमें कोरोना को लेकर बनाए गए सारे प्रोटोकॉल्स को सही से मानना होगा। और अभी तो यह दूसरी लहर है, आगे तीसरी और चौथी लहर के भी आने की संभावना है। लेकिन इस बीमारी की एक खासियत है की, जब तक हम खुद किसी संक्रमित के पास जा कर इसको अपने घर तक नहीं लाएंगे, तब तक यह खुद से कभी नहीं आएगी। घर पर रहे और अपने परिवार का ख्याल रखें।

सजग रहे, स्वस्थ रहें और दूसरों को भी स्वस्थ रखें।

Mr. ARVIND MASKHARE