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पाकिस्तान की जीवन रेखा कपास पर संकट से बिखर रही

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जून माह के उत्तरार्ध में जब ईरान की तरफ से टिड्डियों का विशाल दल पाकिस्तान की ओर चला, तो पाकिस्तान के सिंध और पंजाब के लाखों किसानों के सिर पर भय और आशंका के बादल मंडराने लगे. पाकिस्तान की सरकार के लिए एक आसन्न संकट दस्तक देने लगा. इसका कारण था कि टिड्डियों के इस हमले ने पंजाब और सिंध में लगभग 2,00,000 एकड़ कपास की फसल पर संकट उत्पन्न कर दिया. पाकिस्तान में टिड्डियों के आखिरी बड़े हमले 1993 और 1997 में हुए थे. उल्लेखनीय है कि इस वर्ष जनवरी में सूडान और इरिट्रिया से लगे लाल सागर के तट से टिड्डियों का यह काफिला रवाना हुआ और पाकिस्तान के बलूचिस्तान में प्रवेश करने से पूर्व सऊदी अरब और ईरान को अपनी चपेट में लिया. बलूचिस्तान में टिड्डियों के इस प्रकोप से वहां अनार, तरबूज और कपास जैसी फसलों को नुकसान उठाना पड़ा है. पाकिस्तान के कृषि विभाग से जुड़े अधिकारियों का मानना है कि इस हमले से बहुत ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है. हालांकि नुकसान की सही सीमा का खुलासा होना बाकी है. कपास पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है जो प्राथमिक और द्वितीयक दोनों ही क्षेत्रों में एक बड़ा भाग रखती है. साथ ही साथ, यह एक बहुत बड़े वर्ग की जीविका का आधार है. ऐसी स्थिति में पाकिस्तान कपास की फसल को खोने का जोखिम नहीं उठा सकता है. खासकर ऐसे समय में जब उसने अपनी लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से बेलआउट पैकेज हासिल किया है.

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में कपास का महत्व
कपास जो पाकिस्तान की सबसे बड़ी नगदी फसल है, देश के आधे से अधिक जिलों में पैदा होती है. इसके उत्पादन क्षेत्र बलूचिस्तान के अंदरूनी इलाकों से लेकर मरदान घाटी के ऊंचाई वाले इलाकों तक फैले हुए हैं. इसका सर्वप्रमुख उत्पादन क्षेत्र पाकिस्तान का पंजाब प्रांत है जहां इस देश के कुल कपास उत्पादन का लगभग 70 प्रतिशत पैदा किया जाता है. इसमें से लगभग 95 प्रतिशत का योगदान इस प्रान्त के सिर्फ 14 जिलों से आता है.

पंजाब के कपास बेल्ट के रूप में पहचाने जाने वाले इस क्षेत्र में कपास, चावल और गन्ने की प्रतिस्पर्धा वाली फसलों को पीछे छोड़कर सबसे बड़ी खरीफ फसल बन गई है. पाकिस्तान में कपास उत्पादन का यह ‘हार्टलैंड’ भौगोलिक रूप से सिंधु बेसिन के मध्य में स्थित है, जो पंजाब की पश्चिमी सीमा के पास मियांवाली और भाक्कर से शुरू होकर दक्षिण-पूर्व में साहीवाल और बहावलनगर तक और दक्षिण में राजनपुर तक फैला हुआ है.

पाकिस्तान दुनिया में कपास का पांचवां सबसे बड़ा उत्पादक है और कच्चे कपास का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है. यह विश्व में कपास का चौथा सबसे बड़ा उपभोक्ता और सूती धागे का सबसे बड़ा निर्यातक है. पाकिस्तान में लगभग 13 लाख किसान 30 लाख हेक्टेयर भूमि में कपास की खेती करते हैं, जो देश की कुल कृषि योग्य भूमि का 15 प्रतिशत है. कपास और कपास के उत्पादों का पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 10 प्रतिशत और देश की कुल विदेशी मुद्रा आय में 55 प्रतिशत योगदान है. पाकिस्तान में उत्पादित कपास और उसके उत्पादों की 30 से 40 प्रतिशत तक की घरेलू खपत होती है. शेष को कच्चे कपास, यार्न, कपड़े और तैयार कपड़ों के रूप में निर्यात कर दिया जाता है.कपास उत्पादन पाकिस्तान के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र का आधार है. पाकिस्तान में कपास के संसाधन से लेकर इसके विविध उत्पादों के निर्माण हेतु बड़ी संख्या में उद्योगों का नेटवर्क स्थापित किया गया है. आज पाकिस्तान में लगभग 400 कपड़ा मिलें, 70 लाख स्पिंडल, मिल क्षेत्र में 27,000 करघे (15,000 शटल रहित करघे सहित), गैर-मिल क्षेत्र में 2,50,000 करघे, 700 निटवेयर इकाइयां, 4,000 परिधान निर्माण इकाइयां, 650 रंगाई और परिष्करण इकाइयां (जिनकी परिष्करण क्षमता प्रति वर्ष 12 करोड़ वर्ग मीटर की है), लगभग 1,000 जिनिग इकाइयां, कपास के बीजों से तेल निकालने हेतु लगभग 300 इकाइयां और इसके साथ-साथ असंगठित क्षेत्र में 15,000 से 20,000 स्वदेशी, छोटे पैमाने पर तेल निकालने वाले संयत्र अस्तित्व में हैं. यह आंकड़े दर्शाते हैं कि यह क्षेत्र पाकिस्तान के किसी भी अन्य आर्थिक क्षेत्र की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण है.

पाकिस्तान का बहुत बड़ा कपास उत्पादक क्षेत्र बहुत कम वर्षा (155 से 755 मिमी) वाले क्ष्रेत्र में आता है, जिसके कारण कपास की फसल सिंचाई पर निर्भर है. इसमें पानी की अत्यधिक मात्रा खर्च होती है जो गन्ने और चावल की तुलना में सिंचाई का तीसरा सबसे बड़ा भाग है. पानी की कमी दक्षिणी पंजाब और सिंध में कपास की फसल के लिए संकट का सबसे कारण बन चुकी है.

एक ओर जहां पाकिस्तान दुनिया के सबसे बड़े कपास उत्पादक क्षेत्रों मे से एक है, वहीं दूसरी ओर यह क्षेत्र सतत होने वाले पर्यावरण परिवर्तन के लिए सबसे अधिक असुरक्षित है. पाकिस्तान में कपास उत्पादन, मुख्य रूप से हिमालय की नदियों और उनके फीडर के माध्यम से पानी पर पूरी तरह से निर्भर रहता है. आमतौर पर जून और जुलाई के महीने में तापमान अधिक होने पर तिब्बती और हिमालयी पहाड़ों पर बर्फ के पिघलने के कारण इन नदियों में पानी की प्रचुरता होती है. लेकिन पाकिस्तान में बांधों की समुचित व्यवस्था न होने के कारण इस जाल का बहुत बड़ा हिस्सा बहकर समुद्र में चला जाता है.

पाकिस्तान में घटते जलस्तर और पानी की लगातार बढ़ती कमी कपास उत्पादन के लिए संकट बनती जा रही है. पाकिस्तान के कृषि भूमि उपयोग के आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान का अधिकतर कपास उत्पादन छोटी जोतों से उत्पादित होता है, जिनमें से 85 फीसदी खेत दस हेक्टेयर से भी बहुत छोटे होते हैं. छोटे किसान लागत लगाने की दृष्टि से कमजोर होते हैं, जिसका एक महत्वपूर्ण नकारात्मक प्रभाव उत्पादन की अस्थिरता में दिखाई देता है.

जलवायु परिवर्तन भी पाकिस्तान के कपास उत्पादन के लिए खतरे का संकेत दे रहा है, जिसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण है तापमान में भारी वृद्धि. वर्षा में कमी के साथ यह एक घातक समिश्र बनाती है. आमतौर पर कपास के विकास के लिए अधिकतम तापमान 28.5 से 35 डिग्री का तापमान उपयुक्त होता है परन्तु कपास की फसल के चरम समय पर पाकिस्तान के इन क्षेत्रों का तापमान 41 डिग्री से 47 डिग्री के बीच होता है. नवाबशाह जैसी जगहों पर यह 50 डिग्री तक देखा गया है जो न केवल फसल बल्कि मानव के अस्तित्व के लिए घातक है.

पाकिस्तान अपने कपड़ा उद्योग के लिए मुख्यत: घर में उगने वाली कपास पर निर्भर है. परन्तु इसमें भारत से आयातित कपास की भी महत्वपूर्ण भूमिका है. पाकिस्तान के कपड़ा उद्योग की वृद्धि और भारत के साथ भौगोलिक निकटता और कीमतों में अपेक्षाकृत कमी के कारण पाकिस्तान द्वारा भारत से कपास की खरीद हाल के वर्षों में बढ़ी है. इस बार फसल के ख़राब हो जाने के कारण इसके उत्पादन में गिरावट आई है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार जून से जून में उत्पादन 18 प्रतिशत घटकर 9.86 मिलियन गांठ रह गया है, जो कम से कम 17 वर्षों में सबसे कम है. इसकी कमी की सबसे बड़ी आपूर्ति भारत से होने वाला आयात से ही की जानी है.

परन्तु पुलवामा के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सम्बन्धों में आए तनाव के कारण इन सौदों पर शंका के बादल मंडरा रहे हैं. भारत द्वारा पाकिस्तान को MFN दर्जे की समाप्ति के चलते पाकिस्तान को भारत में अपने सूती कपड़े खपाने में बड़ी दिक्कत आने वाली है. वहीं दूसरी ओर भारतीय कपास, जो कीमत में तुलनातमक रूप से सस्ती है, की पाकिस्तान के व्यापार जगत द्वारा उपेक्षा नहीं की जा सकती. अगर भारत से कपास आयात पर पाकिस्तान द्वारा शुल्क में जवाबी वृद्धि की जाती है तो यह पाकिस्तान के लिए ही हानिकारक सिद्ध होगा क्योंकि कपास की कमी से इसके कपड़ा उद्योग की वृद्धि बुरी तरह बाधित हो सकती है.

विगत वर्षों से कपास के बाज़ार में एक नया और विरोधाभाषी ट्रेंड देखा जा रहा है कि कपास उत्पादन में कमी के बावजूद भी अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में कपास की कीमतें नहीं बढ़ रही हैं. इसका एक महत्वपूर्ण कारण अन्य स्थानापन्न संश्लेषित धागों का चलन का बढ़ना है. विशेषकर कम कीमत वाले क्षेत्र में. परन्तु कपास की कीमतों में गिरावट जहां पाकिस्तान द्वारा कच्चे कपास के निर्यात में मुनाफे की मात्रा में कटौती कर रही है, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के कपड़े के निर्यात को उसका परम मित्र चीन ही गहरा आघात पहुंचा रहा है.

चीन का शिनजियांग चीन का कपास उत्पादन का प्रमुख केंद्र बन चुका है जहां इस देश का 60 प्रतिशत कपास पैदा किया जाता है. साथ ही साथ चीन ने यहां इसके संसाधन और वस्त्र निर्माण की विशाल इकाइयां स्थापित की हैं. चीन का निर्यात न केवल बाहर के देशों में बल्कि पाकिस्तान के अन्दर भी, उसके स्वदेशी उत्पादन को प्रतिस्पर्धा से बाहर करने में जुटा हुआ है. प्रकृति और प्रतिस्पर्धा के ताने-बाने के बीच उलझा पाकिस्तान कैसे अपने इस महत्वपूर्ण संसाधन को जीवनक्षम बनाये रख पाता है यह भविष्य के गर्भ में निहित है.