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5 रुपए के लिए फिल्मों में भीड़ का हिस्सा बनता था ये एक्टर, एक दिन खुद ही बन गया स्टार

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कई नौकरियों में हाथ आजमाने के बाद आखिर में जॉनी को सिफारिश से बस कंडक्टर की नौकरी मिल गई. इस नौकरी से वह काफी खुश थे, क्योंकि उन्हें मुफ्त में ही पूरी मुंबई घूमने को मौका मिल जाया करता था.

बदरुद्दीन जमालुद्दीन काजी यानी जॉनी वॉकर अपने मासूम, लेकिन शरारती चेहरे से सबको अपनी ओर खींचने का माद्दा रखते थे. कभी शराब ना पीने वाला ये एक्टर अपने किरदार में ऐसा उतरता था कि लोगों को लगता था कि ये निजी जिंदगी में भी भयंकर पियक्कड़ होंगे, लेकिन असल में वह कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाया करते थे. ऐसे ही कई मजेदार किस्से और स्ट्रगल की कहानियां समेटे जॉनी वॉकर ने आज ही के दिन इस दुनिया को अलविदा कहा था. जॉनी वॉकर का जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में 11 नवंबर, 1926 एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ था. वे बचपन से ही अभिनेता बनने का ख्वाब देखा करते थे. जॉनी वॉकर के पिता इंदौर में एक मिल में नौकरी करते थे. मिल बंद होने के बाद 1942 में पूरा परिवार मुंबई पहुंच गया. पिता के लिए अपने 15 सदस्यीय परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल हो रहा था. तो ऐसे में 10 भाई-बहनों में दूसरे नंबर के जॉनी वाकर पर परिवार की जवाबदारी आ गई.

कई नौकरियों में हाथ आजमाने के बाद आखिर में मुंबई में उनके पिता के एक जानने वाले पुलिस इंस्पेक्टर की सिफारिश पर जॉनी को बस कंडक्टर की नौकरी मिल गई. इस नौकरी को पाकर जॉनी काफी खुश हो गए क्योंकि उन्हें मुफ्त में ही पूरी मुंबई घूमने को मौका मिल जाया करता था. इसके साथ ही उन्हें मुंबई के स्टूडियो में भी जाने का मौका मिल जाया करता था. जॉनी वॉकर का बस कंडक्टरी करने का अंदाज काफी निराला था. वह अपने खास अंदाज मे आवाज लगाते ‘माहिम वाले पेसेन्जर उतरने को रेडी हो जाओ लेडिज लोग पहले.’ इसी दौरान जॉनी वॉकर की मुलाकात फिल्म जगत के मशहूर खलनायक एन.ए.अंसारी और के आसिफ के सचिव रफीक से हुई.

जॉनी को जल्द ही फिल्मों में भीड़ वाले सीन में खड़े होने का मौका मिल गया. जिसके लिए उन्हें 5 रुपए मिला करते थे. लंबे संघर्ष के बाद जॉनी वॉकर को फिल्म ‘आखिरी पैमाने’ में एक छोटा सा रोल मिला. पहली इस फिल्म मे उन्हें फीस के तौर पर 80 रुपये मिले जबकि बतौर बस कंडक्टर उन्हें पूरे महीने के मात्र 26 रुपये ही मिला करते थे. उसी दौरान अभिनेता बलराज साहनी की नजर जॉनी वॉकर पर पड़ी, उन्होंने जॉनी को गुरुदत्त से मिलने की सलाह दी. जॉनी वॉकर ने गुरुदत्त के सामने शराबी की एक्टिंग की थी. उसे देख गुरुदत्त को लगा कि वाकई में वह शराब पीए हुए हैं, इससे वह काफी नाराज भी हुए. उन्हें जब असलियत पता चली तो उन्होंने जॉनी को गले लगा लिया.

गुरुदत्त ने जॉनी वॉकर की प्रतिभा से खुश होकर अपनी फिल्म बाजी में काम करने का अवसर दिया. इसके बाद उन्होंने मुड़कर पीछे नहीं देखा. कहा जाता है कि उन्हें ‘जॉनी वॉकर’ नाम देने वाले गुरुदत्त ही थे. उन्होंने वाकर को यह नाम एक लोकप्रिय व्हिस्की ब्रांड के नाम पर दिया था. हालांकि, फिल्मों में अक्सर शराबी की भूमिका में नजर आने वाले वॉकर असल जिंदगी में शराब को कतई हाथ नहीं लगाते थे.

जॉनी वॉकर ने गुरुदत्त की कई फिल्मों मे काम किया जिनमें आर पार, मिस्टर एंड मिसेज 55, प्यासा, चौदहवी का चांद, कागज के फूल जैसी सुपर हिट फिल्में शामिल हैं. गुरुदत्त की फिल्मों के अलावा जॉनी वॉकर ने टैक्सी ड्राइवर, देवदास, नया अंदाज, चोरी चोरी, मधुमति, मुगल-ए-आजम, मेरे महबूब, बहू बेगम, मेरे हजूर जैसी कई सुपरहिट फिल्मों मे अपने हास्य अभिनय से दर्शको का भरपूर मनोरंजन किया.

जॉनी वॉकर की हर फिल्म मे एक या दो गीत उन पर अवश्य फिल्माए जाते थे जो काफी लोकप्रिय भी हुआ करते थे. वर्ष 1956 मे प्रदर्शित गुरूदत्त की फिल्म सीआईडी में उन पर फिल्माया गाना ‘ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां, जरा हट के जरा बच के ये है बंबई मेरी जान’ ने धूम मचा दी. इसके बाद हर फिल्म में जॉनी वॉकर पर गीत जरूर फिल्माए जाते रहे. यहां तक कि फाइनैंसर और डिस्ट्रीब्यूटर की यह शर्त रहती कि फिल्म में जॉनी वॉकर पर एक गाना होना ही चाहिए.