मंगलयान से लेकर चंद्रयान तक इसरो के अंतरिक्ष यानों को ऊंची उड़ाने देने के पीछे कई महिला वैज्ञानिकों का हाथ है. जानिए अंतरिक्ष विज्ञान में काम करने वाली प्रमुख महिला वैज्ञानिकों के बारे में खास बातें.
चंद्रयान-2 की सफल लॉन्चिंग के पीछे अगर किन्हीं दो महत्वपूर्ण महिलाओं का हाथ है तो उनमें एक वनिता मुथैया हैं. वो अभी चंद्रयान-2 की परियोजना निदेशक हैं. उन्हें इसके अलावा कई मिशनों का अच्छा अनुभव हैं.
वनिता के अलावा चंद्रयान-2 को सफल बनाने के पीछे दूसरा प्रमुख नाम रित करिधाल का है. लखनऊ की निवासी रितु ने 1997 में इसरो ज्वाइन की थी. चंद्रयान के अलावा मंगलयान प्रोजेक्ट की भी वो डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर रहीं.
एन वालारमति उन चंद महिला वैज्ञानिकों में से एक हैं, जो बीते 3 दशकों से इसरो का हिस्सा हैं. रडार इमेजिंग में विशेषज्ञ वालारमति को इनसैट 2A, आईआरएस, आईसी, आईआरएस-आईडी जैसे मिशनों का अनुभव है.
जीसैट-12 और जीसैट-10 की सफल लॉन्चिंग कराने वाली टीके अनुराधा 1982 से इसरो से जुड़ी हुईं हैं. वो कम्युनिकेशन सैटेलाइट क्षेत्र की विशेषज्ञ हैं. फिलहाल इसरो में वो जियोसैट प्रोग्राम निदेशक का पद संभाले हुए हैं.
वीआर ललितांबिका साल 1989 में इसरो का हिस्सा बनीं थीं. इसरो के बहुप्रतीक्षित फ्यूचर प्रोजेक्ट गगनयान की वो मिशन डायरेक्टर भी हैं. उन्होंने ASLV, PSLV, GSLV और RLV जैसे मिशनों का अनुभव है.
इसरो में एक सख्त छवि वाली सीता सोमसुंदरम फिलहाल प्रोग्राम निदेशक के पद पर कार्यरत हैं. सीता के पास मिशन मंगलयान की जिम्मेदारी थी. उन्हें सीवी रमन यंग साइंटिस्ट और बेस्ट वूमन साइंटिस्ट जैसे अवॉर्ड से नवाजा गया है.
मीनल संपत मिशन मार्स परियोजना में उप निदेशक के पद पर कार्यरत हैं. वो अंतरिक्ष यान में लगने वाले उपकरणों में विशेषज्ञ हैं. मिशन मार्स के कलर कैमरा बनाने के पीछे भी मीनल का योगदान था.
मौमिता दत्ता ने साल 2004 में इसरो में ज्वाइन किया था. उन्हें ऑसियन सैट, रिसोर्स सैट, चंद्रयान-1 और मार्स जैसे मिशन का अनुभव है. उन्हें ऑप्टिकल आईआर सेंसर, पेलोड उपकरण में विशेषज्ञता हासिल है.