मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार की ग्रामीण आजीविका संवर्धन की महत्वपूर्ण योजना नरवा, गरुवा, घरुवा और बाड़ी के तहत बनाए जा रहे गौठानों में पशुओं का जमघट देखने को मिलने लगा। रायपुर जिले के 97 गांवों में गौठानों का निर्माण तेजी से जारी है। इसमें जिले की 21 ग्राम पंचायतों में मॉडल गौठान भी बनाए जा रहे हैं। कलेक्टर डॉ. बसवराजु एस. और जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी डॉ. गौरव कुमार सिंह ने सोमवार को जिले के आरंग विकासखण्ड के ग्राम पंचायत बैहार, बनचरौदा और पारागांव में बनाए गए मॉडल गौठान में पहुंचकर वहां पशुओं के लिए किए गए पानी, चारे और छाया आदि व्यवस्थाओं का जायजा लिया। कलेक्टर डॉ. बसवराजु ने कहा कि पशुओं की संख्या के अनुरूप पानी, चारे की पर्याप्त व्यवस्था सुनिश्चित हो। साथ ही पशुओं की संख्या के अनुसार नाडेप ढांका का निर्माण भी किया जाए, ताकि इससे जुड़े समूहों को इससे बेहतर आमदनी प्राप्त हो सके।
पशुओं का स्वास्थ्य परीक्षण जरूरी
कलेक्टर ने गौठानों में आने वाले सभी पशुओं का स्वास्थ्य परीक्षण और आवश्यक टीकाकरण करने के निर्देश पशुधन विकास विभाग के अधिकारियों को दिए। उन्होंने कहा कि गौठानों में आमजनों के सहयोग से पैरा की व्यवस्था की जा रही है। गांव में यह सुनिश्चित किया जाए कि कोई भी पैरा का जलाए नही बल्कि उसे यहां गौठान के लिए प्रदान करें। गौरतलब है कि इन गौठानों के निमाण से जहां से गांवों में पशुओं को एक डे-केयर सेंटर का लाभ मिलने लगा है।ं बनाए जा रहे चारागाह में सालभर चारे की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी। गौठानों में फलदार और छायादार पौधों का रोपण भी किया जाए।
10 मॉडल गौठान पूरी तरह बनकर तैयार
जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी डॉ. गौरव कुमार सिंह ने बताया कि प्रथम चरण में जिले के 97 ग्राम पंचायतों में गौठानों का निर्माण चल रहा है। इसमें 21 ग्राम पंचायतों में मॉडल गौठान बनाए जा रहे हैं, 10 मॉडल गौठान पूरी तरह बनकर तैयार हो गए हैं। ग्राम पंचायत बैहार में पांच एकड़ में गौठान बनाया गया है और 10 एकड़ में चारागाह विकास किया जा रहा है। इस गौठान में 500 पशु आ रहे हैं। इसी तरह बनचरौदा में 4 एकड़ गौठान और 7 एकड़ में चारागाह तथा पारागांव में पांच एकड़ में गौठान और 10 एकड़ में चारागाह बनाया गया है। यहां क्रमशः 650 और 980 पशु आ रहे है। पशुओं के पीने के पानी के लिए ट्यूबवेल और सोलरपंप लगाए जा रहे है। इसी तरह उनके बैठने के स्थान में पारंपरिक तरीके से घासफूस युक्त शेड का निर्माण, पशुओं के लिए पैरा की व्यवस्था में ग्रामीणों का सहयोग भी लिया जा रहा है।