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छत्तीसगढ़ : जब रायपुर लोकसभा सीट से धराशायी हुए बड़े-बड़े दिग्गज, ऐसे समझें…,

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रायपुर संसदीय लोकसभा सीट पर पिछले छह चुनावों से भाजपा काबिज है। प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के बाद बदले राजनीतिक हालातों में रायपुर लोकसभा सीट पर जीत बरकरार रखना आसान नहीं होगा। पिछले दो दशक से केन्द्र में सरकारें भले ही बदलती रही हो परंतु इस लोकसभा सीट पर रमेश बैस लगातार चुनाव जीतते रहे हैं। बैस रायपुर संसदीय सीट से पहली बार 1989 में चुने गए। उन्हें 1991 में शिकस्त का समाना करना पड़ा था लेकिन उसके बाद से वह लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं। रायपुर लोकसभा सीट पर नजर डालें तो 1977 से हुए 11 चुनावों में एक बार जनता दल, तीन बार कांग्रेस और सात बार भाजपा का कब्जा रहा है। यह सीट 1996 से लगातार भाजपा के कब्जे में है। इस सीट से लगातार छह बार से सांसद चुने जा रहे 71 वर्षीय बैस को अविभाजित मध्यप्रदेश के समय भाजपा ने पहली बार 1984 में लोकसभा सीट के लिए मैदान में उतारा था।

उस समय उन्हें कांग्रेस की लहर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और दिग्गज नेता केयर भूषण से शिकस्त का समाना करना पड़ा था। बैस को 1991 में हुए मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता विद्याचरण शुक्ला से शिकस्त का सामना करना पड़ा था। शुक्ला को जीत तो हासिल हुई लेकिन बैस ने उन्हें कड़ी टक्कर दी और महज 959 मतों से वह चुनाव हार गए। कद्दावर नेता विद्या चरण शुक्ला को बड़ी टक्कर देने की वजह से हार के बावजूद वह वे चर्चित हो गए। आपातकाल के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में इस सीट पर जनता दल के टिकट पर पुरूषोत्तमलाल कौशिक निर्वाचित हुए थे। उन्होने आपातकाल में काफी चर्चित रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता विद्याचरण शुक्ला को लगभग 83 हजार मतों से शिकस्त दी थी। समाजवादी नेता कौशिक इस जीत के बाद केन्द्र में मंत्री भी बने। वर्ष 1980 में हुए चुनाव में कांग्रेस के केयरभूषण ने निर्दलीय पवन दीवान को 66 हजार से अधिक मतों से हराया। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निधन के बाद 1984 में हुए चुनाव में कांग्रेस के केयर भूषण ने भाजपा के रमेश बैस को एक लाख से अधिक मतों से शिकस्त दी। बैस ने 1989 में पिछली हार का अपना हिसाब चुकता करते हुए कांग्रेस के केयर भूषण को लगभग 84 हजार मतों से शिकस्त दी।

1991 में हुए मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस के विद्याचरण शुक्ला ने भाजपा के रमेश बैस को कड़े मुकाबले में 959 मतों से शिकस्त दी। बैस ने 1996 में कांग्रेस के धनेन्द्र साहू को 50 हजार से अधिक मतों से हराया। 1998 में हुए चुनाव में बैस ने कांग्रेस के विद्याचरण शुक्ला को 83 हजार से अधिक मतों से शिकस्त दी। बैस ने 1999 में फिर हुए मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस के जुगुलकिशोर को 80 हजार से अधिक मतों से पराजित किया। मध्यप्रदेश के विभाजन के बाद नवंबर 2000 में छत्तीसगढ़ अस्तित्व में आया और 2004 में पहली बार हुए संसदीय चुनाव में  बैस ने कांग्रेस के कद्दावर नेता एवं अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे श्यामाचरण शुक्ला को शिकस्त दी। 2009 में हुए आम चुनाव में बैस ने कांग्रेस उम्मीद्वार भूपेश बघेल को शिकस्त दी। बघेल वर्तमान में राज्य के मुख्यमंत्री हैं। लोकसभा के 2014 में हुए आम चुनाव में भाजपा ने फिर बैस को मैदान में उतारा। बैस ने इस चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज सत्यनारायण शर्मा को लगभग पौने दो लाख मतों से करारी शिकस्त दी। सात बार सांसद रहे और लगातार छह बार से चुनाव जीत रहे बैस को भाजपा लगातार 10वीं बार उम्मीद्वार बनाती है तो यह भी एक रिकॉर्ड होगा।

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