मंगल अभियान और चंद्रमा मिशन के बाद, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने वाले ऊर्जा स्रोत का अध्ययन करने के लिए एक सौर मिशन, आदित्य-एल1 लॉन्च कर रहा है. इसको लेकर सारी दुनिया की निगाहें भारत की ओर लगी हुई हैं. सूर्य को लेकर होने वाले इस अभियान के जरिए कई महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आएंगी.
नई दिल्ली. चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपने कदम अब सूर्य की ओर बढ़ाने की तैयारी की है. इसरो का सूर्य मिशन ‘आदित्य एल-1’ है जो धरती से सूरज की तरफ 15 लाख किलोमीटर तक जाएगा और सूरज का अध्ययन करेगा.’ यह 2 सितंबर को लॉन्च होने जा रहा है. इसके लिए तमाम तैयारियां अपने अंतिम चरण में हैं. इसरो इससे पहले मंगल मिशन और मून मिशन में सफल होकर इतिहास रच चुका है.
सीधे सूर्य को देखेंगे आदित्य-एल1 पर लगे चार पेलोड
आदित्य-एल1 पहला अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन है. अंतरिक्ष यान L1 प्वाइंट के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा की ओर बढ़ेगा क्योंकि वहां रखे गए उपग्रह को बिना किसी रुकावट या ग्रहण के लगातार सूर्य को देखने का लाभ मिलता है. इससे सौर गतिविधियों को लगातार देखने का अधिक लाभ मिलेगा. आदित्य-एल1, विद्युत चुम्बकीय और कण डिटेक्टरों का उपयोग करके प्रकाशमंडल, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों (कोरोना) का निरीक्षण करने के लिए सात पेलोड ले जाएगा.
सीधे सूर्य का अवलोकन, कोरोनल हीटिंग आदि की मिलेगी जानकारी
आदित्य-एल1 पर लगे चार पेलोड सीधे सूर्य को देखेंगे और शेष तीन एल1 पर कणों और क्षेत्रों का यथास्थान अध्ययन करेंगे. पेलोड से कोरोनल हीटिंग, कोरोनल मास इजेक्शन, प्री-फ्लेयर और फ्लेयर गतिविधियों की समस्याओं और उनकी विशेषताओं, अंतरिक्ष मौसम की गतिशीलता, अंतरग्रहीय माध्यम में कणों और क्षेत्रों के प्रसार के अध्ययन के बारे में जानकारी प्रदान करने की उम्मीद है.
आदित्य-एल1 को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित कर फिर भेजेंगे
इसरो के पीएसएलवी-सी57 रॉकेट द्वारा आदित्य-एल1 को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जाएगा. इसके बाद, कक्षा को अधिक अण्डाकार बनाया जाएगा और ऑन-बोर्ड प्रणोदन का उपयोग करके अंतरिक्ष यान को एल1 बिंदु की ओर प्रक्षेपित किया जाएगा. जैसे ही अंतरिक्ष यान L1 की ओर यात्रा करेगा, यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र (SOI) से बाहर निकल जाएगा. एसओआई के बाहर निकलने के बाद, क्रूज़ चरण शुरू हो जाएगा और यान को एल1 के चारों ओर एक बड़ी प्रभामंडल कक्षा में स्थापित किया जाएगा. अंतरिक्ष यान को अपनी मंजिल तक पहुंचने में 4 महीने लगेंगे.