रायपुर – रायपुर में पत्रकारिता के एकमात्र विश्वविद्यालय कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में शिक्षक के पदों पर हुई नियुक्तियों को लेकर जांच की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसमें शिक्षकों की योग्यता पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। यह सवाल न केवल उनकी योग्यता को लेकर उठे थे, बल्कि अनुभव पर आपत्तियां दर्ज कराई गई थी। निरंतर सुर्खियों में बने रहने वाले पत्रकारिता विश्वविद्यालय में लोकायुक्त से लेकर हाईकोर्ट तक सवालिया निशान लगाते हुए सवाल खड़े किए गए। अब अंततः शासन के निर्देश पर और लोकायुक्त की अनुशंसा के आधार पर एक 3 सदस्य जांच समिति ने जांच आरंभ कर दी है। समिति जल्द जांच पूरी कर अपनी रिपोर्ट विश्वविद्यालय प्रबंधन को प्रस्तुत करेगी। विश्वविद्यालय के शिक्षकों में से कई अयोग्य शिक्षकों पर गाज गिरने जा रही है। वर्ष 2008 में हुई नियुक्ति पर अब कहीं जाकर विश्वविद्यालय ने कसावट भरा फैसला लिया है और जांच शुरू की है।
बता दें कि छत्तीसगढ़ लोक आयोग के प्रकरण क्रमांक 24/2009 की अनुशंसा के आधार पर राज्य शासन लगातार विश्वविद्यालय प्रबंधन पर जांच के लिए दबाव और निर्देशित करता रहा। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। और न ही इस पर जांच की जा रही थी। अंततः विश्वविद्यालय प्रबंधन ने अब राज्य शासन के कठिन जवाब सवाल के उपरांत आयोग की अनुशंसा को सर्वोपरि मानते हुए जांच समिति से जांच शुरू कर दी है। एक लंबे समय के बाद शिक्षकों की योग्यता पर जांच आरंभ हुई है। जिसमें कई शिक्षक चपेट में आ सकते हैं। दरअसल 2008 में उच्च विद्यालय में शिक्षकों की नियमित नियुक्ति की प्रक्रिया की गई थी। उस समय मापदंड में अंको का वितरण उचित तरीके से नहीं हो पाया था। यह शिकायतें लगातार की जा रही थी। इसमें एक असंतुष्ट उम्मीदवार ने न्याय पाने के लिए राजभवन और छत्तीसगढ़ लोक आयोग तक आवाज उठाई थी। जिस पर राजभवन ने सचिव सामान्य प्रशा निधि छिब्बर से जांच करवाई। तत्पश्चात छत्तीसगढ़ लोक आयोग ने कार्रवाई की अनुशंसा की। दोनों ही रिपोर्ट में चयनित उम्मीदवारों की योग्यता पर सवाल उठे और अनुचित तरीके से नंबर आवंटित किए जाने की बात सामने आई। जानबूझकर योग्यता को दरकिनार किया गया। कम योग्य व्यक्तियों को अधिक नंबर देकर उपकृत किया गया और वास्तविक उम्मीदवार चयन से वंचित हो गए। ऐसे में लोक आयोग की अनुशंसा में कहा गया था की चयन प्रक्रिया में मेरिट के 80 अंको का योग्यता अनुरूप पुनः वितरण कर साक्षात्कार में प्राप्त अंकों को छोड़कर चयन सूची जारी कर दी गई थी। इस पर सवाल उठे थे और कई योग्य उम्मीदवारों ने गलत तरीके से चयन होने की बात कही थी। अब चुंकि इसमें जांच आरंभ हो गई है तो निश्चित तौर पर यदि कोई पूर्व चयनित शिक्षक योग्यता के अनुरूप स्थान नहीं रख पाता है तो उसके विरुद्ध विधि अनुसार कार्रवाई की अनुशंसा है। ऐसे में स्पष्ट है कि जांच रिपोर्ट पर निर्भर करेगा कि विश्वविद्यालय में काम कर रहे कितने शिक्षक योग्य हैं और कितने अयोग्य हैं। जाहिर सी बात है कि कई अयोग्य शिक्षक अब विश्वविद्यालय से बाहर हो सकते हैं। अरसे के बाद जांच के बाद पूरे विश्वविद्यालय में हड़कंप मचा हुआ है हर तरफ चर्चा का माहौल है और अयोग्य उम्मीदवारों पर डर बन गया है।
10 वर्षों तक क्यों नहीं हुई जांच
जांच समिति के काम करने के आरंभ करने के बाद यह सवाल भी है कि विश्वविद्यालय ने 10 साल तक नियुक्ति पर जांच क्यों नहीं कराई? आखिर ऐसी कौन सी बात थी कि विश्वविद्यालय फैसला नहीं कर पा रहा था। अब ऐसा क्या हो गया कि विश्वविद्यालय को नियुक्ति को पर जांच करानी पड़ रही है। सामान्य सी बात है कि विश्वविद्यालय यह मान गया है कि नियुक्तियां गड़बड़ी है, तभी जांच के लिए समिति बनाकर कार्रवाई शुरू की गई है।
शिक्षकों में बेचैनी
फर्जी तरीके से नियुक्ति पाय शिक्षकों में बेचैनी का माहौल है क्योंकि उन्हें मालूम है कि गाज अवश्य गिरेगी। हालांकि अब रिपोर्ट का इंतजार उन लोगों को है जो वास्तविक हकदार थे और किसी वजह से पद पर नहीं पहुंच पाए। देर ही सही पर वह कहावत सही होती दिखाई दे रही है कि भगवान के घर देर है अंधेर नहीं।
व्याख्याता से लेकर रीडर पद निशाने पर
विश्वविद्यालय में जांच आरंभ होने के बाद व्याख्याता से लेकर सहायक प्राध्यापक और व्याख्याता सहित रीडर पद में जांच आरंभ हुई है। ऐसे में कई अयोग्य निशाने पर हैं जो जल्द बेनकाब होंगे और विश्वविद्यालय को योग्य उम्मीदवार मिल पाएंगे।