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पहली सांस से आखिरी सांस तक जीवन के हर क्षण के लिए उपयोगी है गौ-गोबर

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नई दिल्ली – गाय हिंदू धर्म में मां समान पूजनीय मानी गई है। वेद-पुराण और उपनिषदों तथा रामायण और दूसरे ग्रंथों में इसकी महिमा का गान हुआ है। उसी गाय के गोबर को सभी प्रकार के धार्मिक अवसरों और कर्मकांडों के संपादन के दौरान पवित्रता से भूमि लेपन में प्रयोग करने का विधान है। वातावरण को पवित्र करने, प्रदूषण दूर करने मन को शुद्ध करने में भी गोबर को महत्वपूर्ण माना गया है।

गोबर के महत्व पर चित्रकूट कामदगिरि के प्रमुख महंत मदन गोपाल दास जी महाराज कहते हैं कि हर व्यक्ति को एक गाय पालनी चाहिए। गाय के गोबर से बने कंडे से रोटी बनानी चाहिए। प्राकृतिक और पर्यावरण दृष्टि से गाय के गोबर की बनी रोटी से लकड़ी बचेगी, पेड़ों की रक्षा होगी। पेड़ बचेंगे तो जल बचेगा, जल रहेगा तो पर्यावरण साफ रहेगा। इससे सभी लोग स्वस्थ रहेंगे। होली पर लकड़ी की जगह गाय के गोबर से बने कंडे को होलिका दहन में प्रयोग करने का विधान बताया गया है। महोबा के प्रसिद्ध समाजसेवी मनोज तिवारी कहते हैं कि गांव की खेती किसानी मे गोबर का बहुत महत्व है गोबर में प्राकृतिक घास फूस के गुण हैं, औषधियां हैं। यह एक तरह से निर्जीव होकर भी किसान का मित्र है।

जल ग्राम के संस्थापक और सर्वोदय कार्यकर्ता उमाशंकर पांडेय बताते हैं कि गोबर शब्द का प्रयोग गाय, बैल, भैंस के मल के लिए होता हैं। घास, भूसा, खली, जो चौपाया जानवर खाते हैं, उनके पाचन से निकले रासायनिक प्रक्रिया को गोबर कहते हैं। यह ठोस या पतला होता है। रंग पीला, काला होता है। इसमें घास के टुकड़े, अन्न के कुछ कण होते हैं। सूख जाने के बाद यह कंडे के रूप में जाना जाता है। गाय का गोबर कंडे के लिए ज्यादा अच्छा होता है। गोबर में खनिजों की मात्रा अधिक होती है। इसमें फास्फोरस, नाइट्रोजन, चूना, पोटाश, मैग्नीज, लोहा, सिल्कन, एल्यूमिनियम, कुछ आंशिक मात्रा में गंधक विद्यमान रहते हैं।

आयोडीन की मात्रा भी होती है। इसीलिए गोबर को खेत में डाला जाता है, जिन कारणों से मिट्टी को उपजाऊ बनाने में खेत के लिए मदद मिलती है। गोबर में ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जो मिट्टी को जोड़ते हैं, अंदर हवा देते हैं- जैसे कंपोस्ट खाद, केंचुआ खाद, जैविक खाद, गोबर की खाद से धूप अगरबती तैयार होती है। गोबर के कंडों को ईंधन के रूप में प्रयोग करते हैं, जिससे खाना बनता है, गोबर का महत्व इस बात से लगाया जा सकता है कि सृष्टि के देवता भगवान गणेश, माता गौरी की पूजा की मूर्ति गोबर की होती है।

हर शुभ कार्य में जमीन को गोबर से लीपा जाता है। जीवन का समय हो, मृत्यु का समय हो, श्मशान जाने का समय हो, सुख का समय हो, दुख का समय हो, हरित क्रांति के दौरान अधिक फसल लेने के उद्देश्य खेतों में आता अधिक फर्टिलाइजर डाला गया है। मिट्टी में जैविक तत्व की कमी हो गई है खेत बीमार हो गए हैं उसकी बीमारी दूर करने के लिए केवल गोबर ही इलाज है।

गोबर की खेती से उपजे गेहूं, धान, दाल, दलहन का स्वाद व प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। यह अनाज के साथ दवा है, गोबर के कंडे का धुआं शरीर के लिए फायदेमंद है। कंडे के धुए से देवता प्रसन्न होते हैं ग्रह कलेश शांत होता है, कंडे का धुआं लकड़ी के अपेक्षा अधिक फायदेमंद है गाय के गोबर के कंडे ई-कॉमर्स मार्केटिंग के माध्यम से बेचे जा रहे हैं 12 कंडे 120 रुपए से अधिक में बिकते हैं। एक अध्ययन से सिद्ध हो गया है कि जिस घर में प्रतिदिन गाय के गोबर से नियमित धुआं किया जाता है।

उस घर में देवताओं का वास हो जाता है। बीमारियां उस घर के पास तक नहीं आती हैं। उस घर का वातावरण शुद्ध होता है। परिवार के सभी सदस्य प्रसन्न रहते हैं, कंडे की आग में पका दूध, घी, रोटी, दाल, सब्जी सबके के लिए फायदेमंद है। कंडे की आग में बनाया गया भजन सबसे अधिक पाचक होता है। एकअंतरराष्ट्रीय प्रयोगशाला की 19 सितंबर 2016 को रिपोर्ट के दौरान यह पाया कि गोबर में तथा उसकी राख में सोना चांदी लोहा के साथ अन्य मिनरल पाए जाते हैं और यह शरीर के लिए फायदेमंद है।

इसलिए गोबर के कंडे की राख की रोटी आयुर्वेदिक विधि के अनुसार फायदेमंद है। गोबर से लीपा गया भवन वैदिक महत्त्व से मूल्यवान है। बालू, प्लास्टिक, सीमेंट की अपेक्षा 100 गुना अच्छा है यह वैदिक प्लास्टर है, गोबर में बिजली होती है जिसे सौर ऊर्जा प्लांट कहते हैं। लगभग कई गांव में चल रहे हैं कंडे की आंच से उठने वाले धुए से पुरखे प्रसन्न होते हैं, अतृप्त आत्मा तृप्त हो जाती हैं, मनुष्य का गोबर से तब तक रिश्ता रहता है जब तक वह जीवित रहता है अंतिम समय जिस तरह गोबर का कंडा राख जाता है उसी तरह मनुष्य भी राख हो जाता है। जलयोद्धा उमा शंकर पांडेय के अनुसार बचपन में हमारी अम्मा भोजन करने के बाद राख खाने के लिए दिया करती थी और कहती थी कि इससे खाया गया भोजन पच जाएगा।

पीतल के बर्तन राख से साफ किए जाते थे, गोबर की होली शरीर के लिए इसलिए फायदेमंद है क्योंकि गोबर में वह सारे विटामिन पाए जाते हैं जिनके शरीर में पढ़ते ही रोग ठीक हो जाते हैं। होली का पूरा त्यौहार गोबर के विज्ञान पर आधारित है। होलिका दहन पर हर घर में गोबर के चंद्रमा, सूर्य बनाए जाते हैं गोबर की होली खेली जाती है। यह हमारी परंपरा रही है। हमारे गांव जहां पर प्रकृति ने भोजन बनाने के लिए पूरे गांव में कंडे के बड़े-बड़े भट्टे बनाए, यह प्रकृति की देन है।

आज पशुधन खत्म हो जा रहा है। भविष्य में शायद एक कंडे की भट्टी देखने को ना मिले। गोबर की होली की शुरुआत वृंदावन में भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन उठाकर ग्वाल बालों के साथ शुरू की, क्योंकि सबसे अधिक गाय माता वहीं पर थी। बुंदेलखंड में दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा होती है। गाय के गोबर से लोक देवता बनाए जाते हैं, जिन्हें बासी भोजन कराया जाता है। कई दिनों तक उस गोबर को पूजा के बाद खेतों में डाला जाता है। इससे धन, धान की वृद्धि होती है।

आयुर्वेद के जानकार प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. सचिन उपाध्याय कहते हैं कि गाय के गोबर में वे तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर के लिए उपयोगी है। गोबर में, कंडे में, धुएं मे, आग में, राख में, अलग अलग औषधि गुण है। निरोगी जीवन के लिए गोबर से स्नान करने का बड़ा महत्व है। गोबर एक रहस्य है जिसकी अनुसंधान की बड़ी आवश्यकता है। खेती के लिए, शारीरिक बीमारी के लिए, भोजन बनाने के लिए, हमारे पूर्वज हजारों वर्षों से गोबर के कंडे की आग पर रोटी बना रहे हैं। वे हम से अधिक जानकार थे।