नई दिल्ली – उच्चतम न्यायालय ने माओवादी संबंध मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और अन्य को बरी करने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को शनिवार को निलंबित कर दिया। उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को साईबाबा तथा अन्य को बरी किया था।
उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने साईबाबा के इस अनुरोध को भी खारिज कर दिया कि उनकी शारीरिक अक्षमता और स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए उन्हें घर में नजरबंद किया जाए। पीठ ने गैर-कामकाजी दिन भी इस मामले की सुनवाई की।
पीठ ने मामले में साईबाबा समेत सभी आरोपियों की जेल से रिहाई पर रोक लगा दी। बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने उन्हें जेल से रिहा करने का आदेश दिया था। उच्चतम न्यायालय ने साईबाबा, अन्य से उन्हें बरी करने संबंधी बंबई उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की अपील पर जवाब मांगा है।
बंबई उच्च न्यायालय ने माओवादियों से कथित जुड़ाव के मामले में डीयू के पूर्व प्रोफेसर साईबाबा को गिरफ्तारी के करीब आठ साल बाद शुक्रवार को बरी कर दिया था। अदालत ने कहा कि गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत मामले में आरोपी के खिलाफ अभियोग चलाने की मंजूरी देने का आदेश ‘‘कानून की दृष्टि से गलत एवं अवैध’’ था।
साईबाबा (52) शारीरिक अक्षमता के कारण व्हीलचेयर की मदद लेते हैं। वह अभी नागपुर केंद्रीय कारागार में बंद है। उन्हें फरवरी 2014 में गिरफ्तार किया गया था