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मुस्लिम आक्रांताओं ने कई बार ध्वस्त किया, फिर भी नहीं टूटी आस्था, जानें उज्जैन महाकाल की पूरी कहानी

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उज्जैन – उज्जैन महाकाल मंदिर कॉरिडोर के प्रथम चरण यानी श्री महाकाल लोक का आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकार्पण किया। अब महाकाल लोक को जनता के लिए खोल दिया जाएगा। महाकाल लोक की खूबसूरती देखते ही बनती है। महाकाल परिसर का विस्तार 20 हेक्टेयर में किया जा रहा है। विस्तार के बाद महाकाल मंदिर परिसर उत्तर प्रदेश के काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से चार गुना बड़ा होगा। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर 5 हेक्टेयर में फैला है।

देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में उज्जैन का महाकाल मंदिर अकेला दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। मंदिर का इतिहास भी काफी पुराना है। इसकी कहानी रोचक है। कई बार मंदिर को ध्वस्त करने के लिए आक्रांताओं ने कोशिश की, लेकिन वह असफल रहे। करोड़ों भारतीयों की आस्था आक्रमणकारियों पर भारी पड़ी। आज हम आपको महाकाल मंदिर की पूरी कहानी बताएंगे। कब और कैसे इसकी स्थापना हुई और कब-कब इस पर आक्रमण हुए?

महाकाल मंदिर, उज्जैन

महाकाल मंदिर का इतिहास
महाकाल मंदिर का इतिहास सदियों पुराना है। महाकवि कालिदास और तुलसीदास की रचनाओं में महाकाल मंदिर व उज्जैन का उल्लेख है। कहा जाता है कि महाकाल मंदिर की स्थापना द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के पालनहार नंद जी से आठ पीढ़ी पूर्व हुई थी। शिवपुराण के अनुसार मंदिर के गर्भ गृह में मौजूद ज्योर्तिलिंग की प्रतिष्ठा नन्द से आठ पीढ़ी पूर्व एक गोप बालक द्वारा की गई थी।

जब भगवान श्रीकृष्ण उज्जैन में शिक्षा प्राप्त करने आए, तो उन्होंने महाकाल स्त्रोत का गान किया था। गोस्वामी तुलसीदास ने भी महाकाल मंदिर का उल्लेख किया है। छठी शताब्दी में बुद्धकालीन राजा चंद्रप्रद्योत के समय महाकाल उत्सव हुआ था।

इस मंदिर की महिमा का वर्णन बाणभट्ट, पद्मगुप्त, राजशेखर, राजा हर्षवर्धन, कवि तुलसीदास और रवीन्द्रनाथ की रचनाओं में भी मिलता है। मंदिर द्वापर युग का है लेकिन समय -समय पर इसका जीर्णोंद्धार होता रहा है। मंदिर परिसर से ईसवीं पूर्व द्वितीय शताब्दी के भी अवशेष मिले हैं, जो इस बात का प्रमाण है।

महाकाल मंदिर परिसर की खुदाई में मिले थे हजारों साल पुरानी मूर्तियां।
तीन भागों में बना है महाकाल मंदिर 
महाकाल मंदिर तीन भागों में बना हुआ है। दिव्य ज्योतिर्लिंग मंदिर के सबसे नीचे के भाग में प्रतिष्ठित है। मध्य के भाग में ओंकारेश्वर का शिवलिंग है तथा सबसे ऊपर वाले भाग पर साल में सिर्फ एक बार नागपंचमी पर खुलने वाला नागचंद्रेश्वर मंदिर है। महाकाल मंदिर को पृथ्वी का सेंटर पाइंट या नाभि कहा जाता है। क्योंकि कर्क रेखा शिवलिंग के ठीक ऊपर से गुजरी है।
महाकाल की पुरानी और नई तस्वीर।

महाकाल मंदिर पर कई बार आक्रमण हुए
11वीं सदी में गजनी के सेनापति और 13वीं सदी में दिल्ली के शासक इल्तुतमिश के मंदिर ध्वस्त कराने के बाद कई राजाओं ने इसका दोबारा निर्माण करवाया। इतिहासकार प्रो. वैदिक महेश कहते हैं, उज्जैन में 1107 से 1728 ई. तक यवनों का शासन था। इनके शासनकाल में 4500 वर्षों की हिंदुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराओं-मान्यताओं को नष्ट करने की कई बार कोशिश हुई।

11वीं शताब्दी में गजनी के सेनापति ने मंदिर को काफी नुकसान पहुंचाया था। इसके बाद साल 1234 में दिल्ली के शासक इल्तुतमिश ने भी महाकाल मंदिर पर हमला कर दिया। उस दौरान यहां कई श्रद्धालुओं का कत्ल किया गया। मंदिर में स्थापित मूर्तियों को भी खंडित कर दिया। तब धार के राजा देपालदेव ने भी हमला रोकने की कोशिश की। वह बड़ी संख्या में सेना लेकर उज्जैन के लिए निकल पड़े। हालांकि, इससे पहले ही इल्तुतमिश ने मंदिर तोड़ दिया। इसके बाद देपालदेव ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।

राणोजी शिंदे ने कराया था मंदिर का पुनर्निर्माण

फिर मंदिर का जीर्णोद्धार भी कई बार हुआ
राजा विक्रमादित्य, राजा चंद्रप्रधोत, राजा भोज ने इस मंदिर में निर्माण कार्य करवाया था। लगभग हर कालखंड में हिंदू राजा, जिन्होंने उज्जैन और आसपास राज किया उन्होंने महाकाल के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। महाकाल मंदिर का जो वर्तमान स्वरूप है, उसे वर्ष 1734 से लेकर 1863 के बीच मराठा शासकों ने बनवाया था। इसको लेकर भी एक कहानी है।

कहा जाता है कि मराठा राजाओं ने मालवा पर आक्रमण कर दिया था। 1728 से यहां मराठा राजाओं का राज शुरू हुआ। इसके बाद उज्जैन को भव्य रूप दिया गया। 1731 से 1809 तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही। इस बीच, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को पुनः प्रतिष्ठित किया गया और शिप्रा नदी के तट पर सिंहस्थ पर्व कुंभ को भी आरंभ किया गया।

मंदिर का पुनर्निर्माण ग्वालियर के सिंधिया राजवंश के संस्थापक महाराजा राणोजी सिंधिया ने कराया था। बाद में उन्हीं की प्रेरणा पर यहां सिंहस्थ समागम की भी दोबारा शुरुआत कराई गई। प्रो. वैदिक महेश कहते हैं कि महाकाल के ज्योतिर्लिंग को करीब 500 साल तक मंदिर के भग्नावशेषों में ही पूजा जाता रहा। बाद में मराठा साम्राज्य ने महाकाल का भव्य मंदिर बनवाया।