Home धर्म - ज्योतिष श्रावण मास – आज से शुभ संयोग में सावन शुरू, क्या करें...

श्रावण मास – आज से शुभ संयोग में सावन शुरू, क्या करें और क्या नहीं, करें शिव चालीसा का पाठ

95
0

14 जुलाई से सावन का महीना प्रारंभ हो चुका है। सावन के महीने में शिव पूजा के लिए कुछ नियम बताए गए हैं जिसका पालन जरूर करना चाहिए।

news chhattisgarh.co.in प.अरविन्द मिश्रा रायपुर ,14 जुलाई 2022 आज से सावन का पवित्र महीना आरंभ हो गया है। भगवान शिव की आराधना के लिए सावन का महीना बहुत ही विशेष माना गया है। 14 जुलाई से सावन शुरू होकर 12 अगस्त तक रहेगा। सावन माह में भगवान शिव का जलाभिषेक,पूजा-पाठ और आराधना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस बार सावन माह में कुल मिलाकर 8 दिन रवि योग और 7 दिन सर्वार्थसिद्धि योग बनेगा। वहीं सावन के महीने में इस बार चार सोमवार व्रत रखे जाएंगे।
सावन का महीना हिंदुओं के लिए बहुत ही पवित्र महीना होता है। पूरे सावन के महीने में भगवान शिव के भक्त सच्चे मन और लगन के साथ शिव भक्ति में लीन रहते हैं। सावन के महीने में दिन की शुरुआत भोलेभंडारी के जलाभिषेक और विशेष पूजा-अर्चना के साथ होती है। शिव मंदिरों में भारी संख्या में लोग एकत्रित होकर बोल बम के जयकारे लगाते हुए शिव आराधना करते हैं। इस बार सावन का महीना कुल मिलाकर 29 दिन का रहेगा। 14 जुलाई से शुरू होने वाले सावन महीने के पहले दिन दो शुभ योग भी बन रहा है जिस कारण से पूजा-आराधना का महत्व और भी बढ़ गया है। सावन महीने के पहले दिन विष्कुंभ और प्रीति योग बन रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस योग में सावन की शुरुआत बहुत ही फलदायी है।
सभी शिव भक्तों को सावन महीने का इंतजार बेसब्री से रहता है। इस महीने में शिव आराधना विधि विधान से करने पर भगवान भोलेनाथ जल्दी से प्रसन्न हो जाते हैं और हर तरह की मनोकामना पूरी करते हैं। सावन के महीने में शिव पूजा के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं जिसका पालन जरूर करना चाहिए।

सावन के महीने क्या करें जरूर जानें

सावन के महीने में शिव मंदिर जरूर जाएं और वहां पर भगवान शिव के दर्शन करें और शिवजी का जलाभिषेक अवश्य करें।
  • सावन के महीने में सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद शिवलिंग की पूजा करें और लगातार ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप जरूर करें।
  • सावन माह में पड़ने वाले सोमवार पर व्रत जरूर रखें और सोमवार व्रत का पाठ और कथा सुने।
  • सावन महीने में शिव पूजन में महामृत्युंजय मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करना चाहिए।
  • सावन के महीने में शिवलिंग का रुद्राभिषेक दूध, दही, घी,शहद और गंगाजल से अवश्य करें।
  • सावन के महीने में तामसिक विचारों और भोजन का त्याग करें।
  • सावन के महीने में घर या बाहर किसी से लड़ाई-झगड़ा करने से बचें और किसी का भूल से भी अपमान करें।
  • सावन के महीने में मांस,मदिरा, प्याज-लहसुन,मूली और बैंगन का सेवन न करें।
शिव आरती और शिव चालीसा
सावन के महीने में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-उपासना करने का विशेष महत्व होता है। भगवान शिव को जल्द प्रसन्न करने के लिए इस पूरे माह शिव चालीसा का पाठ और शिव आरती की जाती है।

जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥

 शिव चालीसा:

दोहा

जय गणेश गिरिजा सुवन,मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम,देहु अभय वरदान॥

चौपाई

जय गिरिजा पति दीन दयाला।सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके।कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये।मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।छवि को देखि नाग मन मोहे॥

मैना मातु की हवे दुलारी।बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ।या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा।तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी।देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ।लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा।सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी।पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं।सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई।अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला।जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई।नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा।जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी।कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई।कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी।करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।संकट ते मोहि आन उबारो॥

मात-पिता भ्राता सब होई।संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी।आय हरहु मम संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदा हीं।जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी।क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

शंकर हो संकट के नाशन।मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।शारद नारद शीश नवावैं॥

नमो नमो जय नमः शिवाय।सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई।ता पर होत है शम्भु सहाई॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी।पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई।निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे।ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा।ताके तन नहीं रहै कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे।अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी।जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

दोहा

नित्त नेम उठि प्रातः ही,पाठ करो चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना,पूर्ण करो जगदीश॥

मगसिर छठि हेमन्त ॠतु,संवत चौसठ जान।
स्तुति चालीसा शिवहि,पूर्ण कीन कल्याण॥