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शहादत को याद करने का दिन है मुहर्रम, जानिए क्यों मनाते हैं इस दिन मातम?

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इस्लाम धर्म को मानने वाले लोगों के लिए मुहर्रम एक गम का महीना है। मुहर्रम इस्लाम धर्म के नए साल यानि हिजरी सन का शुरुआती महीना है। इस महीने से इस्लामिक साल शुरू होता है। हजरत इमाम हुसैन की याद में इस महीने के दसवें दिन को बहुत सारे लोग मातम के तौर पर मनाते हैं। इस दिन को ‘आशुरा’ भी कहा जाता है।

क्यों मनाया जाता है मुहर्रम? इस्लाम धर्म की मान्यता है कि हजरत मुहम्मद रसूल के नवासे हजरत इमाम हुसैन को और उनके बेटे, घरवाले और उनके सथियों को इसी दिन कर्बला के मैदान में शहीद कर दिया गया था। मुहर्रम का यह 10वां दिन शहादत और कुर्बानी को याद करने का दिन है। मान्यता है कि इराक में यजीद नाम का जालिम बादशाह था जो इंसानियत का बहुत बड़ा दुश्मन था। यजीद का अल्लाह पर कोई विश्वास नहीं था। वह चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन भी उसके खेमे में शामिल हो जाएं। लेकिन हुसैन को यह मंजूर नहीं था और उन्होंने यजीद के विरुद्ध जंग का एलान कर दिया था। पैगंबर-ए इस्लाम हजरत मुहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था।

कर्बला की जंग
इराक की राजधानी बगदाद से 120 किलोमीटर दूर कर्बला एक शहर है। मक्का -मदिना के बाद कर्बला इस्लाम धर्म के लोगों के लिए एक प्रमुख स्थान है। मान्यताओं के अनुसार हजरत इमाम हुसैन अपने परिवार और साथियों के साथ मुहर्रम के दूसरे दिन कर्बला पहुंचे थे। इमाम हुसैन के काफिले में छोटे-छोटे बच्चे, औरतें और बूढ़े भी थे। यजीद ने हुसैन को मजबूर करने के लिए मुहर्रम के 7वें दिन उनके लिए पानी बंद कर दिया था। मुहर्रम की 9वीं रात को हुसैन ने रोशनी बुझा दी और कहने लगे, ‘यजीद की सेना बड़ी है और उसके पास एक से बढ़कर एक हथियार हैं। ऐसे में बचना मुश्किल है। मैं तुम्हें यहां से चले जाने की इजाजत देता हूं। मुझे कोई आपत्ति नहीं है।’ जब कुछ देर बाद फिर से रोशनी की गई तो सभी साथी वहीं बैठे थे। कोई हुसैन को छोड़कर नहीं गया।

कैसे मनाया जाता है मुहर्रम?
हजरत इमाम हुसैन की शहादत के गम में ये महीना याद किया जाता है। इस महीने में मुस्लिम (शिया) मातम मनाते हैं। बहुत सारे लोग मुहर्रम महीने के दसवें दिन काले कपड़े पहनकर हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद करते हैं। उनकी शहादत को याद करते हुए सड़कों पर जुलूस निकाला जाता है और मातम मनाया जाता है। हालांकि, सुन्नी मुस्लिम इस दिन खुदा की इबादत करते हैं और हजरत इमाम पर फातिहा पहुंचाते हैं। वो जलूस और मातम से दूर रहते हैं।