लोगों को अनियमित जीवनशैली से होने वाले रोगों जैसे डायबिटीज, हाई ब्लडप्रेशरवहार्ट फेल जैसी बीमारियों के बारे में पता होगा, लेकिन बहुत से लोगों ने गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर (पेट की आंतों या पेट के कैंसर) के बारे में नहीं सुना होगा.नयीतकनीकों से इसकाइलाजसरलहो गया है. गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल यानी जीआई कैंसरहिंदुस्तानमें चौथा सबसे अधिक लोगों को होने वाला कैंसर बन गया है.यहस्त्रियोंकी तुलना में पुरुषों को ज्यादा प्रभावित करता है.यह साइलेंटकातिलके रूप में धीरे-धीरे बढ़ता जाता हैवशरीर के आंतरिक अंगों जैसे बड़ी आंत, मलाशय, भोजन नली, पेट, गुर्दे, पित्ताशय की थैली, पैनक्रियाज या पाचक ग्रंथि, छोटी आंत, अपेंडिक्सवगुदा को प्रभावित करता है.इससे पीड़ित लोगों कोप्रारम्भमें पेट दर्द, अपच रहना, मलोत्सर्ग की आदत में गड़बड़ी आदि का सामना करना पड़ता है.इन्हें नजरअंदाज करने से स्थिति गंभीर हो जाती है.
जागरूकता है जरूरी
सबसे बड़ीआवश्यकतालोगों में इसके प्रति जागरूकता उत्पन्न करनावउन्हें स्वस्थ पाचन तंत्र के महत्व को समझाना है.अभी जीआई कैंसर केविषय मेंलोगों में जागरूकता की कमी है.मरीजों की देखभाल का समूचा ईकोसिस्टम बनाने कीआवश्यकताहै.इस ईकोसिस्टम के तहत मरीजों की जल्द से जल्द जांच, आधुनिकउपायोंसे मरीजों काउपचारवउनके दर्द को कम करने वाली बेहतर देखभाल को प्रोत्साहन देना चाहिए.
जीवनशैली मेंपरिवर्तनजरूरी
रोग के प्रारंभिक लक्षणों को नियंत्रित करने के लिएचिकित्सकजीवनशैली मेंपरिवर्तनकी सलाह देते हैं.इसके तहत पोषक आहार लेना, व्यायाम करना आदि शामिल हैं.इसमें मरीजों की समय सेजाँचको कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
समय परजाँचसेठीकउपचार
एक मरीज के तौर पर लक्षणों को गंभीरता से लेना चाहिएवगैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट को समय पर दिखाना चाहिए.जाँचसुविधाओं में फीकल अकल्ट ब्लड टेस्ट, नॉन-इनवेसिव विधियां जैसे पेट की अल्ट्रासोनोग्राफी, सीटी स्कैनवएमआरआई शामिल हैं.इससेइलाजबहुत ज्यादासरलहो जाता है.
जांच के नए-नए तरीके
ये जीआई कैंसर रोग की स्थितिवलक्षणों के आधार परभिन्न-भिन्नहो सकते हैं.इनमें अंतर करने के लिएवकैंसर के खास प्रकार का पता लगाने के लिए मरीजों की जल्द से जल्दजाँचकरना बेहद आवश्यक है.कोलनगियोस्कोपी की मदद सेचिकित्सकपित्ताशय की थैली को देख सकते हैं.इससे उन्हें खास तरह के कैंसर का पता लगाने में मदद मिलती है.इससेइलाजबहुत ज्यादासरलहो जाता है.