छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2018 में सत्तारूढ़ बीजेपी को करारी हार मिली. सूबे में 15 साल सत्ता में रहने वाली बीजेपी महज 15 सीटों पर ही सिमट गई. छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने विधानसभा 2018 का चुनाव तब के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के चेहरे पर लड़ा था. चुनावी सभाओं में डॉ. रमन सिंह कहते थे कि प्रत्याशी नहीं रमन सिंह और कमल को देखकर वोट दीजिए. लिहाजा विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार की जिम्मेदारी खुद डॉ. रमन सिंह ने ली. अब सवाल उठ रहे हैं कि विधानसभा चुनाव के चार महीने बाद हो रहे लोकसभा चुनाव में डॉ. रमन सिंह की छत्तीसगढ़ में भूमिका क्या है?
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2018 में मिली करारी हार के कुछ दिन बाद ही आला कमान ने डॉ. रमन सिंह को बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर ये संदेश दिया कि पार्टी को उनपर अब भी पूरा भरोसा है. विधानसभा चुनाव में विरोधी दल कांग्रेस को मिली बंपर जीत के बाद डॉ. रमन सिंह विपक्ष में भी सक्रिय नजर आए. हर मोर्चे पर मीडिया के सामने आए और अपने निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीतने के बाद भी पार्टी की हार को खुद की हार बताई.
बदलापुर की राजनीति का नया नारा
जब कांग्रेस ने नागरिक आपूर्ति निगम घोटाला और अंतागढ़ टेपकांड में सीधे तौर पर डॉ. रमन और उनके परिवार के लोगों को घेरने की कोशिश की तो वे खुद सामने आए और कांग्रेस द्वारा बदलापुर की राजनीति करने का एक नया नारा प्रदेश में दे दिया. इतना ही नहीं नई सरकार बनने के बाद ताबड़तोड़ हो रहे तबादलों पर भी रमन सिंह ने राज्य सरकार को घेरा और तबादला उद्योग चलाने का एक और नया नारा दे दिया. इसी दौरान चर्चाएं होने लगीं कि डॉ. रमन सिंह को पार्टी लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बना सकती है. अटकलें थीं कि उन्हें सांसद बेटे अभिषेक सिंह की राजनांदगांव सीट से चुनाव लड़ाया जा सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
अभिषेक सिंह को तिलक लगाती डॉ. रमन सिंह की पत्नी वीणा सिंह. फाइल फोटो.
बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में नया प्रयोग किया और मौजूदा सभी सांसदों की टिकट काटकर नये चेहरों को मैदान में उतारा. यानी कि बेटे अभिषेक सिंह की टिकट तो कटी, लेकिन रमन सिंह को भी चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला. माना जाने लगा कि लोकसभा चुनाव में डॉ. रमन सिंह की भूमिका नगण्य हो गई है और अंदरखाने चर्चा शुरू हो गई कि वे चुनाव में ज्यादा सक्रिय नहीं रहने वाले हैं.
रणनीतिकार की भूमिका
लोकसभा चुनाव 2019 के लिए छत्तीसगढ़ में सभी मौजूदा सांसदों की टिकट कटने के बाद विपक्ष के आरोप, मीडिया के सवाल और सांसद समर्थकों की नाराजगी से घिरी बीजेपी का चेहरा डॉ. रमन सिंह बने और उन्होंने आरोपों और सवालों का जवाब भी दिया और पार्टी कार्यालय में कार्यकर्ता और सांसदों से व्यक्तिगत मुलाकात कर उन्हें साधने की कोशिश भी की. नामाकंन प्रक्रिया शुरू होने से पहले सबसे ज्यादा नाराज माने जा रहे रायपुर सांसद रमेश बैस से उनकी गुप्त मुलाकात की चर्चा भी खूब हुई. इसके अलावा चुनाव की रणनीति बनाने में भी अहम भूमिका निभाई है.
राजनांदगांव में चुनावी सभा में अमित शाह और डॉ. रमन सिंह.
हर मंच पर सक्रिय
लोकसभा चुनाव 2019 के लिए बीजेपी ने छत्तीसगढ़ प्रत्याशियों की पहली सूची 21 मार्च को जारी की. इसके बाद शुरू हुए नामांकन दाखिल प्रक्रिया में डॉ. रमन सिंह प्रदेश की लगभग सभी 11 सीटों पर बीजेपी प्रत्याशियों के साथ खुद मौजूद रहे. प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी भी खुद संभाली. अलग सीटों पर अब तक 20 से अधिक सभा और रैलियं कर चुके हैं. लोकसभा चुनाव 2019 में 6 अप्रैल को पीएम नरेन्द्र मोदी की पहली चुनावी सभा से लेकर 16 अप्रैल को भाटापारा में पीएम मोदी की सभा हो या राजनांदगांव में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की सभा डॉ. रमन सिंह मंच पर साथ में नजर आए. इसके अलावा अलग से रैली और सभाएं भी कर रहे हैं.
चेहरे का प्रभाव
बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता श्रीचंद सुंदरानी कहते हैं छत्तीसगढ़ में पार्टी के लिए डॉ. रमन सिंह का चेहरा बहुत महत्वपूर्ण है. लोकसभा चुनाव में न सिर्फ संसदीय क्षेत्र बल्कि विधानसभा व बूथवार कार्यक्रमों की मॉनिटरिंग भी वे खुद कर रहे हैं. प्रचार प्रसार के साथ ही पार्टी की चुनावी रणनीति बनाने में भी वे अहम जिम्मेदारी निभा रहे हैं. विधानसभा चुनाव में पार्टी के हार का कारण कई हो सकते हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में डॉ. रमन सिंह के चेहरे का प्रभाव मतदाताओं पर पड़ेगा, 15 सालों में किए विकास कार्यों को जनता बखूबी जानती है.
पीएम नरेन्द्र मोदी और डॉ. रमन सिंह. फाइल फोटो.
पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने चर्चा में कहा कि पार्टी उन्हें जो भी जिम्मेदारी देती है, उसे पूरी इमानदारी के साथ पूरा करने की कोशिश करता हूं. विधानसभा चुनाव के बाद अब लोकसभा चुनाव में जो जिम्मेदारी मिली है, उसे भी पूरा करने का प्रयास है.