छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद बहुजन समाज पार्टी का जनाधार लगातार कम होता चला गया. वोटो की संख्या भी कम होती चली गई. इसके विपरीत साल 2013 के चुनाव में निर्दलीयों ने प्रदेश में खूब वोट बटोरे थे. नया राज्य बनने के बाद अब तक हुए तीन लोकसभा चुनावों में तकरीबन 80 फीसदी से ज्यादा वोट भाजपा और कांग्रेस के बीच बंटते रहे हैं. तीसरी पार्टियो को बीते तीन चुनाव में 10 फीसदी वोट भी हासिल नहीं हुए हैं. इतना ही नहीं निर्दलीय प्रत्याशियों को संयुक्त रुप से छोटी पार्टियों से ज्यादा वोट मिलते रहे हैं.
साल 1998 के चुनाव में बसपा को 7.34 फीसदी वोट मिले थे. इसके बाद से प्रदेश में उसका वोट शेयर लगातार कम होता रहा है. 1998 से 2014 के चुनाव के बीच बसपा का वोट शेयर घटकर 2.44 फीसदी पर आ गया है. बावजूद इसके बसपा और जोगी कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले होने का साथ ही साथ बसपा के लिए चुनाव के अच्छे परिणाम आने की संभावना है. बसपा के प्रदेश प्रभारी अशोक सिद्धार्थ का कहना है कि छत्तीसगढ़ में इस बार पार्टी का खाता खुलेगा. पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का कहना है कि विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में भी बसपा कुछ सीटें जरूर जीतेगी.
अगर तीन बार के लोकसभा चुनाव पार्टियां के वोट शेयर की बात करें तो साल 2014 में बसपा को 2.44, साल 2009 के चुनाव में 4.52 और 2004 के चुनाव में 4.54 फिसदी वोट मिले थे. यानी की साफ है कि छत्तीसगढ़ में बसपा का जनाधार लगातार कम होता गया है. बहरहाल लोकसभा चुनाव का सियासी ऊंट किस करवट बैठेगा. ये तो आने वाला चुनाव का परिणाम ही तय करेगा, लेकिन कहीं बसपा जो सपनों खुली आंखो से देख रही है. चुनाव के पिछले आंकड़े उस पर पानी फेरते नजर आ रहे हैं.