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पीएम मोदी का सफाई अभियान ‘साफ’, महाराष्ट्र में हकीकत बयां कर रहे पटरियों के किनारे बैठे लोग

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर, 2014 को महात्मा गांधी की याद में देश को साफ-सुथरा बनाने का संकल्प लिया और पूरा सरकारी अमला इस काम में जुट गया। इसके लिए करोड़ों के विज्ञापन दिए गए। यहां तक तो ठीक था, लेकिन उसके बाद यह सरकार आदत के मुताबिक आंकड़ों और तथ्यों की बाजीगरी करते हुए योजना की सफलता के दावे करने लगी। श्रेय लेने की होड़ में राज्यों ने करोड़ों के विज्ञापन देकर कहना शुरू कर दिया कि वे खुले में शौच से मुक्त हो गए हैं। पीएम मोदी की फ्लैगशिप योजनाओं में से एक स्वच्छता अभियान की नवजीवन द्वारा पड़ताल की इस कड़ी में पेश है महाराष्ट्र में इस योजना का जमीनी हाल।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस युवा हैं और वह विकास का कोई भी काम बड़ी तेजी से करने में विश्वास रखते हैं। यह दीगर बात है कि ऐसे में उन्हें अपने अधूरे कामों के बारे में पता भी नहीं चलता है। इसका उदाहरण है स्वच्छ भारत मिशन। पिछले साल अप्रैल में उन्होंने घोषणा कर दी कि महाराष्ट्र खुले में शौच से मुक्त हो गया है। इसके लिए उन्होंने 4 हजार करोड़ रुपये खर्च किए। लेकिन, जमीनी स्थिति कुछऔर कहती है। वैसे, इसकी बानगी कोई भी देख सकता है।

अगर आप मुंबई में रेलवे पटरी के किनारे और झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाकों पर नजर दौड़ाएंगे तो आपको वो दृश्य देखने को मिलेगा जो मुख्यमंत्री के दावे के बाद देखने को नहीं मिलने चाहिए थे। इतना ही नहीं, मुंबई के ट्रांबे इलाके के चीता कैंप (प्रभाग क्रं143) में महापालिका प्रशासन ने दो सार्वजनिक शौचालय को तुड़वा दिया है और अब उस जगह पर व्यायामशाला बनाया जा रहा है। ये शौचालय सांसद निधि से तैयार कराए गए थे।

शौचालय तोड़ देने के बाद स्थानीय लोग शौच के लिए कहां जाएंगे इसकी तो कल्पना की जा सकती है। आरटीआई कार्यकर्ता शकील शेख के प्रयास और स्थानीय लोगों के आंदोलन के बाद व्यायामशाला का महापालिका निधि से निर्माण अस्थायी तौर पर रोक तो दिया गया। मगर लोग खुले में शौच जाने के लिए मजबूर हैं। अब ऐसे में मुख्यमंत्री के दावे का क्या कहा जाए?

मुख्यमंत्री के मुताबिक 2012 के बेसलाइन सर्वे के आधार पर राज्य में सिर्फ 45 फीसदी परिवारों को शौचालय की सुविधा थी और स्वच्छ महाराष्ट्र अभियान के तहत 55 फीसदी परिवारों के लिए शौचालय बनाना था जिसे निर्धारित समय से एक साल पहले ही पूरा कर लिया गया। इसमें साढ़े तीन साल का समय लगा और राज्य की तकरीबन 351 तहसीलों, 27, 667 ग्राम पंचायतोंऔर 40, 500 गांवों में 60 लाख 41 हजार 138 नए शौचालय बनाए गए। इससे इन तहसील, गांवों में खुले में शौच से मुक्ति मिली।

इसमें सार्वजनिक और सामूहिक तौर पर 2, 81,292 शौचालय बनाए गए। इसके लिए मुख्यमंत्री ने अपनी पीठ थपथपाई है। लेकिन मुख्यमंत्री के साथ सरकारी महकमा ने इस पर ध्यान नहीं दिया कि 2012 के बाद जो आबादी बढ़ी, उसके लिए कितने शौचालय की कमी है और उसे कैसे बनाना है। इस नई आबादी का सर्वे कब होगा। एक अनुमान के मुताबिक कम से कम 30-40 लाख परिवारों में और शौचालय बनाना पड़ेगा। शौचालय की यह कमी भी मुख्यमंत्री के दावे की हकीकत बयां करती है।

राज्य के चंद्रपुर जिले में पाटण नामक एक गांव है जो आदिवासी बहुल है। कम शिक्षित होने से इन आदिवासियों को बरगलाना आसान होता है और इन्हें ठगा भी गया। इस गांव में 112 शौचालय बनाए गए और इसे स्मार्ट गांव का प्रमाण पत्र भी दे दिया गया। मजे की बात यह है कि ग्राम पंचायत के सरकारी दस्तावेज में शौचालय है और अनुदान की राशि बांट दी गई है। सच्चाई तब सामने आई जब गांव की महिलाओं ने ग्राम पंचायत में जाकर शौचालय बनवाने की मांग की।

इसी तरह औरंगाबाद जिले में भी एक पोखरी गांव है जिसे एक साल पहले ओडीएफ घोषित कर दिया गया था। लेकिन गांव के लोग खुले में शौच करने को मजबूर हैं। यहां शौचालय बनाने में भेदभाव किया गया। गरीबों को छोड़कर सक्षम लोगों के घरों में शौचालय बनाया गया। गांव के सरपंच अमोल काकड़े शौचालय नहीं बनाने की बात स्वीकार करते हुए सफाई देते हैं कि अतिक्रमण की जमीन पर घर बनाने वालों को शौचालय की सुविधा नहीं दी जा सकती।

सरकारी नियम यह है कि पहले अपने खर्चे से शौचालय बनाओ फिर अनुदान की राशि मिलेगी। लेकिन पैसे न हों तो? लातूर के रामेगांव के लोगों के साथ यही स्थिति है। इसी कारण शौचालय नहीं बनवा रहे थे। बाद में एक सामाजिक संस्था ने मदद की और शौचालय बनवाकर अनुदान की राशि सरकार से ले ली।

इस तरह से राज्य के शहरी और ग्रामीण इलाकों में स्वच्छ भारत मिशन को पूरा करने का काम किया गया। लेकिन यह शत-प्रतिशत पूरा नहीं हुआ, यह बात मुख्यमंत्री सीधे तौर पर स्वीकार नहीं करते हैं। लेकिन इसके बाद वह जिस तरह के कार्यक्रम चला रहे हैं, उससे तो जाहिर है कि राज्य में स्वच्छ भारत मिशन अधूरा है। इसमें पानी की भी भूमिका है जो हर घर में नहीं है। मुख्यमंत्री ने एक अभियान चलाया है जिसके तहत ओडीएफ वॉच प्रणाली इस्तेमाल किया जा रहा है यानी सीटी बजाकर लोगों को शर्मिंदगी महसूस कराना है। फिलहाल सीटी की आवाज भी धीमी पड़ गई है।

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