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जानिए : आखिर क्यों वाघा बॉर्डर पर होती है गुस्से से भरी भारत-पाक परेड?

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वाघा बॉर्डर पर हर शाम भारत और पाकिस्तान के जवान एक दूसरे के साथ गुस्से में हाथ मिलाते हैं. दोनों ओर से सैनिक अपने पैरों को पटकते हुए हवा में काफी ऊपर उठाकर गुस्से का इजहार करते हैं. इसके बाद सूर्यास्त के समय राष्ट्रीय झंडे उतारे जाते हैं. इस मौके पर भारत की ओर से बीएसएफ के जवान खाकी रंग की ड्रेस में रहते हैं, जबकि पाकिस्तानी रेंजर काले रंग की ड्रेस में रहते हैं.

1947 की शुरुआत में भारत के आखिरी ब्रिटिश वायसराय माउंटबेटन ने भारत की आजादी की घोषणा की. इसके बाद ब्रिटेन से 8 जुलाई को सर सिरिल रेडक्लिफ को भारत बुलाया गया और उन्हें धर्म के भारत आधार पर बॉर्डर बनाने का जिम्मा सौंपा गया. वे पहले भारत में कभी नहीं रहे थे. इसे इस बॉर्डर डिसाइड करने के काम में जुटी सारी ही पार्टियों ने एक फायदे की बात माना क्योंकि ये पार्टियां सोचती थीं कि ऐसे में किसी एक पक्ष की तरफ रेडक्लिफ का पूर्वाग्रह नहीं होगा. दो हफ्तों में ही रेडक्लिफ ने अपना काम पूरा कर दिया. उन्होंने एक ओर भारत और पाकिस्तान का बॉर्डर बनाया तो दूसरी ओर भारत और पूर्वी पाकिस्तान (जो अब बांग्लादेश है) का बॉर्डर भी बनाया.

यह समारोह भारत और पाकिस्तान के बीच 1959 से ही लगातार होता आ रहा है. कश्मीर में 1999 में अमन सेतु खुलने से पहले ग्रांड ट्रंक रोड ही भारत और पाकिस्तान के बीच एक मात्र रोड लिंक था. इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बीटिंग रिट्रीट बॉर्डर समारोह के तौर पर माना जाता है. कई विदेशी भी हर शाम होने वाले इस समारोह को देखने के लिए आते हैं.

2010 में पाकिस्तानी रेंजर्स के जनरल याकूब अली खान ने यह तय किया था कि इस समारोह में दोनों पक्षों के बीच रहने वाली गहमागहमी को कम किया जाएगा. इसके बाद अच्छे से सीखे हुए जवान इस मौके पर परफॉर्म करते हैं. उन्हें दाढ़ी और मूंछों को मेन्टेन करने के लिए अलग से भत्ता मिलता है.

 

भारत की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद दो दिन 29 सितंबर और 8 अक्टूबर, 2016 को इस परेड के लिए लोगों को नहीं आने दिया गया था. और न ही दीवाली पर पाकिस्तानी सैनिकों को मिठाईयां दी गई थीं. हालांकि यह एक परंपरा है कि बकरीद, दीवाली और दोनों ही देशों के स्वतंत्रता दिवस के दिन दोनों देश आपस में मिठाईयों को आदान-प्रदान करते हैं.

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