बिलासपुर – भरण पोषण से संबंधित परिवार न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने मनेंदगढ़ परिवार न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि पति की मौत के बाद अनुकंपा नियुक्ति पाने वाली बहू की यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह सास का भरण पोषण करे। डिवीजन बेंच ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति को मृतक की संपत्ति नहीं माना जा सकता। लिहाजा नौकरी से प्राप्त वेतन के बदले सास को भरण पोषण देने के लिए बाध्य नहीं है।
पूरा मामला एसईसीएल के मृत कर्मचारी की पत्नी से जुड़ा है। एसईसीएल हसदेव क्षेत्र में पदस्थ एसईसीएल कर्मी भगवान दास की मृत्यु सेवा में रहते वर्ष 2000 में हो गई थी। उनकी मृत्यु के बाद उनके बड़े बेटे ओंकार को अनुकंपा नियुक्ति मिली। सेवा के दौरान ओंकार की भी मृत्यु हो गई। तब ओंकार की पुत्री मात्र एक वर्ष की थी। इसके चलते उसकी पत्नी को केंद्रीय अस्पताल मनेंद्रगढ़ में सामान्य श्रमिक के पद पर अनुकंपा नियुक्ति दी गई। नौकरी लगने के बाद ससुराल को छोड़कर वह अपने मायके में जाकर रहने लगी|
ओंकार की मां ने परिवार न्यायालय में वाद दायर कर बहू से भरण पोषण की मांग की। ओंकार की मां ने कोर्ट को बताया कि बहू ने 10 जून 2020 को एक शपथ पत्र देखकर नियुक्ति के समय सास को दूसरा आश्रित बताया था और नौकरी मिलने पर सास के भरण पोषण की बात कही थी। नौकरी लगने के बाद वह मुकर गई। सास ने बताया कि वह 68 साल की हो गई है और उसे कई बीमारियां है। इलाज में उसके काफी रुपए खर्च होते हैं, जबकि उसे मात्र 800 रुपए पेंशन मिलता है। लिहाजा हर महीने बहू से 20 हजार रुपए भरण पोषण दिलाई जाए। मुकदमे में खर्च हुई राशि 50 हजार रुपये भी बहू से दिलाने की मांग की। मामले की सुनवाई के बाद परिवार न्यायालय ने बहू को प्रति महीने 10 हजार रुपये भरण पोषण के रुप में सास को देने का आदेश दिया।
परिवार न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए बहू ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की। दायर याचिका में बताया कि सास की देखभाल उनके दूसरे बेटे उमेश द्वारा की जा रही है। उमेश निजी कंपनी में जाब करता है और हर महीने 50 हजार रुपए कमाता है। बहू ने यह भी बताया कि भरण पोषण के लिए सास ने परिवार न्यायालय में झूठी जानकारी दी है। उनको प्रति महीने 800 रुपये नहीं बल्कि तीन हजार रुपये पेंशन मिलता है। खेती से सालाना एक लाख रुपए की आय सास को हो रही है। पति की बीमा राशि का भी सात लाख रुपए सास को मिला है।
याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट को बताया कि उसे प्रति महीने 26 हजार रुपए वेतन प्राप्त होता है। जिसमें वह अपना और अपने 6 वर्षीय बेटी का खर्चा चलाती है। इसके अलावा उसके पास आय का और कोई जरिया नहीं है। मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे और सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि अनुकंपा नियुक्ति मृतक की संपत्ति नहीं होती। इसलिए बहू वेतन से सास को भरण पोषण देने के लिए बाध्य नहीं है। डिवीजन बेंच ने यह भी कहा है कि भरण पोषण के लिए बहू पर दबाव नहीं डाला जा सकता। डिवीजन बेंच ने परिवार न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया है।