ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि मौनी अमावस्या पर हुए हादसे से बिल्कुल बचा जा सकता था। जब पहले से पता था कि हमारे पास इतनी ही जगह है तो पहले से समुचित व्यवस्था क्यों नहीं बनाई गई। यह कहना कि पहले भी भगदड़ होती थी और अब भी हो गई, यह अनुचित है।
संगम की रेती पर अदृश्य सरस्वती के रूप में धर्माचार्य ज्ञान की सरस्वती का पान विश्व समुदाय को करा रहे हैं। संतों के बीच ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने महाकुंभ में अनेक मुद्दों पर अपनी बेबाक राय से सुर्खियां बटोरीं। उन्होंने परमधर्म संसद के जरिए कई मुद्दों पर महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए। इन पर कितना अमल होगा, यह तो आने वाला वक्त बताएगा।
कुंभ है क्या, भारतीय संस्कृति में कुंभ को किस रूप में व्यक्त करेंगे?
असल में कुंभ कलश को कहा जाता है। कुंभ पूर्णता का प्रतीक है। कुंभ दो तरह के होते हैं। एक खाली और एक भरा। हम सब खाली हैं। इसलिए कि हमारे हृदय रूपी कुंभ में बहुत इच्छाएं हैं। जब हमारे भीतर पूर्णता आ जाएगी, तब हमको कुछ नहीं चाहिए। संगम पर लगा कुंभ अनंत तत्वों से भरा है। इसमें डुबकी लगाने से आध्यात्मिकता समाहित हो जाती है।