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12000 संन्यासी बनेंगे नागा साधु, जानें क्या है 3 दिन के तप का रहस्य

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महाकुंभ 2025 में करीब 12 हजार संन्यासी नागा साधु बनेंगे । इससे पहले उन्हें 3 दिन की तपस्या करनी होती है। आइए जानते हैं कि इस तप के दौरान संन्यासी क्या करते हैं और 3 दिन का तप क्यों जरूरी है।

प्रयागराज – महाकुंभ 2025 के दौरान अखाड़ों में 12,000 नए नागा संन्यासियों को दीक्षा दी जाएगी। ये वो संत होंगे जो सांसारिक मोह-माया को त्यागकर माता-पिता और स्वयं का पिंडदान कर संन्यास की राह पर चलेंगे। नागा संन्यासियों के निर्माण का यह अनुष्ठान महाकुंभ के दूसरे अमृत (शाही) स्नान से पहले प्रारंभ किया जाएगा, हालांकि इसकी तैयारियां काफी पहले से शुरू हो चुकी हैं। अखाड़ों में इसके लिए विशेष योजनाएं बनाई जा रही हैं, और 14 जनवरी को पहले शाही स्नान के बाद यह प्रक्रिया और तेज हो जाएगी।

स्नान से पहले काटते हैं शिखा

महाकुंभ 2025 का तीसरा अमृत स्नान, जिसे मौनी अमावस्या कहा जाता है, 29 जनवरी को होगा। इस दिन विशेष पूजा और दीक्षाओं का आयोजन किया जाएगा। 27 जनवरी से अखाड़ों में अनुष्ठान की शुरुआत होगी, जिसमें पहले दिन आधी रात को विशेष पूजा की जाएगी। इस पूजा में दीक्षा प्राप्त करने वाले संतों को गुरु के सामने प्रस्तुत किया जाएगा। संन्यासी मध्य रात्रि गंगा में 108 डुबकी लगाएंगे, और स्नान के बाद उनकी आधी शिखा(चोटी) काट दी जाएगी। इसके बाद उन्हें तपस्या के लिए वन भेजा जाएगा। जब संत अपना शिविर छोड़ देंगे तो उन्हें मनाकर वापस बुलाया जाएगा।

नागा संन्यासी बनने की अंतिम प्रक्रिया

तीसरे दिन, नागा बनने के लिए तैयार संत नागा भेष में लौटेंगे और उन्हें अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर के सामने प्रस्तुत किया जाएगा। गुरु के हाथ में पर्ची होगी, जो यह साबित करेगी कि वह संत नागा बनने के योग्य है। इसके बाद गुरु सुबह चार बजे उनकी पूरी शिखा काट देंगे। जब अखाड़े मौनी अमावस्या स्नान के लिए जाएंगे, तो इन्हें भी अन्य नागाओं के साथ स्नान के लिए भेजा जाएगा, और इस प्रकार वे नागा संन्यासी के रूप में स्वीकार किए जाएंगे।