नई दिल्ली – भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका पर सवाल उठाते हुए बड़ा बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि लोगों का भरोसा सुप्रीम कोर्ट से उठ रहा है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को वीटो पावर नहीं दिया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ये कैसे तय कर सकता है कि भारत के राष्ट्रपति को क्या करना चाहिए. अगर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को सारी शक्ति दे देंगे तो ये खतरनाक साबित हो सकता है.
धनखड़ के इस बयान पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और राज्य सभा के मनोनीत सांसद महेश जेठमलानी का बयान सामने आया है. उन्होंने उपराष्ट्रपति के बयानों का समर्थन किया है. संविधान को बनाए रखने के लिए उपराष्ट्रपति के बातों पर ध्यान देना होगा. जेठमलानी ने कहा कि हाल के दिनों में कई ऐसे मामले सामने आए जिससे यह धारणा बनी कि भारतीय न्यायपालिका में न्यायिक भ्रष्टाचार हैं.
महेश जेठमलानी ने इन मुद्दों का किया जिक्र
इस दौरान महेश जेठमलानी ने जस्टिस यशवंत वर्मा कैश कांड, तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले जैसे मुद्दों का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि इन मुद्दों से न्यायपालिका की साख पर सवाल जरूर उठा है. जस्टिस यशवंत वर्मा केस को लेकर धनखड़ ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के जज के घर से बोरी में भरकर पैसे मिले. क्या उस जज पर कोई कार्रवाई हुई, केवल ट्रांसफर हुआ. यही किसी नेता या किसी और के घर से मिला होता तो क्या होता? हमें खुद से सवाल पूछना होगा कि क्या हमारी न्यायपालिका सही काम कर रही है? वहीं, उपराष्ट्रपति ने तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले का भी जिक्र किया.
हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें. संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है. वहां पांच या उससे अधिक जज होने चाहिए मगर राष्ट्रपति के खिलाफ फैसला दो जजों वाली बेंच ने दिया गया था. धनखड़ ने कहा कि अनुच्छेद 145(3) में संशोधन करने की जरूरत है. इसको लेकर महेश जेठमलानी ने कहा कि संवैधानिक दायित्वों के निर्वहन को लेकर उन्होंने जो कहा उस पर वाकई ध्यान देने की दरकार है.