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जब कुंदरकी में 60 फीसदी मुस्लिम वोटर्स तो कैसे हुई BJP के हिंदू कैंडिडेट की बंपर जीत?

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कुंदरकी विधानसभा सीट – हाल ही में हुए महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों के साथ कई राज्यों में उपचुनाव भी हुए. इमसें उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के कुंदरकी विधानसभा सीट का उपचुनाव भी शामिल है. इन चुनावों के नतीजों में सबसे ज्यादा चर्चा महाराष्ट्र की हो रही है. लेकिन इसके बीच में उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों के उपचुनावों में से कुंदरकी विधानसभा का नतीजा कुछ चौंकाने वाली कहानी बयान कर रहा है.  मुस्लिम बहुल इलाके की सीट पर 2012 से 2022 तक समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा है, लेकिन इस बार यहां से एकमात्र हिंदू प्रत्याशी भाजपा के रामवीर सिंह ठाकुर ने सपा के मोहम्मद रिजवान को 143192 वोट से हरा कर उनकी जमानत जब्त करवा दी है. सवाल ये है कि आखिर कैसे मुस्लिम बहुल इलाके से एकमात्र गैरमुस्लिम प्रत्याशी जीत गया.

आसान नहीं रही कभी बीजेपी की राह
कुंदरकी लंबे समय से बीजेपी के लिए एक चुनौती भरी सीट रही है. वह अब तक केवल एक ही बार यहां से विधानसभा चुनाव जीती है. उसे यह जीत 1993 में नसीब हुई थी. वहीं पिछले तीन बार से सपा के हाजी रिजवान चुनाव जीतते आ रहे है और इस बार भी उन्हें सपा से एक बार फिर टिकट मिला था, लेकिन नतीजों ने उनकी उम्मीदों पर पूरी तरह से पानी फेर दिया.

मुस्लिम बहुलता का असर?
इस चुनाव में कुल 12 उम्मीदवार मैदान में थे जिनमें से केवल रामवीर सिंह ठाकुर ही गैरमुस्लिम उम्मीदवार हैं.  ऐसे में साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस सीट पर मुस्लिम वोट को कैसे और कितनी अहमियत दी जाती हैं. आलम ये था कि चुनाव प्रचार के दौरान खुद रामवीर ठाकुर भी जालीदार टोपी और अरबी रुमाल पहनकर वोट मांगते हुए दिखे थे.

मुस्लिम मतदाताओं का गणित
इससे पहले हम चुनाव में भाजपा की जीत के सामान्य कारणों के बारे में कुछ सोचें पहले एम फैक्टर को समझना ठीक होगा. कुंदरकी में कुंदरकी में कुल मतदाताओं की संख्या 3,83,673 है. इनका 60 फिसदी,यहां के मस्लिम वोटरों की संख्या है जो कि करीब 2 लाख 40 हजार के आसपास की है. कुल मुस्लिम मतदाताओं में से 40 फीसदी के आसपास तुर्क मुस्लिम हैं जिनकी संख्या 88 हजार के आसपास बताई जाती हैं. बाकी अन्य मुस्लिम वोटरों में करीब 40 हजार राजपूत मुसलमान हैं.

तुर्क मुस्लिम वोटों में विभाजन!
साफ है कि यहां तुर्क मुस्लिम वोटर ही निर्णायक जो कि पिछले कई चुनावों में उम्मीदवारों और विजेताओं को देख कर साफ दिखता है. लेकिन इस बार का गणित कुछ हटकर हो गया. इस बार सपा, बसपा और AIMIM तीनों ने ही तुर्क मुस्लिम उम्मीदवार खड़े कर दिए. इससे कुछ हद तक को तुर्क मुस्लिम वोट बंटना तय हो गया था.

भाजपा उम्मीदवार की रणनीति
वहीं भाजपा के रामवीर ठाकुर ने भी मुस्लिमों को खूब रिझाया और कई विश्लेषक बताते हैं कि भाजपा ने राजपूत मुस्लिमों को घेरा था. उन्होंने एक देश और एक डीएनए को नारा लेकर घर-घर जाने की बात की. पार्टी की कई मुस्लिम प्रचारकों ने लोगों को यह बताया कि रामवीर सिंह का डीएनए और मुस्लिम राजपूत का डीएनए तक एक ही है. दोनों ही ठाकुर समुदाय से हैं. और इसके अलावा कुल वोट के 40 फीसदी गैर मुस्लिम वोट भाजपा के पक्ष में जाने से हालात बदलना तय था.

लेकिन एक बड़ा फैक्टर लागातार तीन बार विधायक रहे सपा के हाजी रिजवान से नाखुशी भी हो सकती है, गौर करने वाली बात ये है कि इस बार रिजवान के वोटों में भारी गिरावट देखने को मिली  और रामवीर ठाकुर एक बड़े अंतर की जीत हासिल करने में सफल रहे.