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आधुनिक शिक्षा का जनक – स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल आज शिक्षा के क्षेत्र में देशभर में अपनी अलग पहचान बना

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रायपुर – स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल आज छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में अपनी पहचान बना चुके हैं. स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल का नाम महान संत और शिक्षा के पुजारी स्वामी आत्मानंद के नाम पर रखा गया है. स्वामी आत्मानंद जी महान सामाजिक परिवर्तन के जनक और नेताओं में से एक रहे हैं. स्वामी जी ने अपना पूरा जीवन मानव सेवा और शिक्षा के क्षेत्र को समर्पित कर दिया. अपने विचारों के जरिए स्वामी जी ने शिक्षा की वो मशाल जलाई जो सदियों तक लोगों को ज्ञान की रोशनी देती रहेगी. स्वामी आत्मानंद जी को बचपन में लोग तुलेंद्र के नाम से पुकारते थे.

कौन हैं स्वामी आत्मानंद जी

स्वामी आत्मानंद जी समाज में शिक्षा का परिवर्तन लाने वाले संत के रुप में जाने जाते हैं. स्वामी जी का जन्म 6 अक्टूबर 1929 को रायपुर के बरबंदा गांव में हुआ. स्वामी जी के पिता धनीराम वर्मा स्कूल में शिक्षक रहे. माता भग्यवती देवी एक गृहणी थीं. परिवार शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ा था, लिहाजा स्वामी जी को भी पढ़ने लिखने का और लोगों की सेवा का शौक रहा. स्वामी जी के पिता अक्सर गांधी जी के सेवाआश्रम में जाया करते रहे. पिता के साथ तुलेंद्र भी कई बार सेवाआश्रम गए.

भजन गाने में मिली थी महारत

स्वामी जी बचपन से ही भजन बहुत अच्छा गाते थे. खुद गांधी जी भी उनके भजन और उनकी वाणी की तारीफ सेवाआश्रम में कर चुके थे. साल 1949 में तुलेन्द्र ने बीएससी की परीक्षा बड़े ही अच्छे अंकों के साथ पास की. साल 1951 में स्वामी जी ने एम.एससी (गणित) में प्रथम स्थान प्राप्त किया और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में आगे की पढ़ाई के लिए चले गए. जल्द अपने लगन के दम पर स्वामी जी ने सिविल सेवा की परीक्षा भी पास कर ली. पर अंतिम चरण की चयन प्रक्रिया में वो शामिल नहीं हुए. पढ़ाई के दौरान ही उनकी रुची समाज सेवा और शिक्षा के प्रसार को लेकर बढ़ने लगी.

सिविल सेवा की परीक्षा की पास

 सिविल सेवा की परीक्षा पास कर स्वामी जी परीक्षा की अंतिम चयन प्रक्रिया में शामिल नहीं हुए. बाद में स्वामी जी की रुची समाज सेवा को लेकर बढ़ने लगी. पुणे के धनटोली में जाकर एक आश्रम में वो रहने लगे. वहीं आश्रम में रहने के दौरान उन्होने संन्यास ले लिया. वक्त बीतने के साथ साथ उनका तुलेंद्र चैतन्य जी बन गए और संत रुप में जीवन बिताने लगे. माना जाता है स्वामी जी ने साल 1960 को चैतन्यजी ने संन्यास लिया. बाद में लोग उन्हे स्वामी आत्मानंद जी के नाम से पुकारने लगे. स्वामी जी की समाज सेवा को देखते हुए राज्य सरकार ने उनको आश्रम के लिए जमीन भी दी.

राज्य सरकार ने दी आश्रम के लिए जमीन

जनवरी 1961 में राज्य सरकार ने उन्हें आश्रम निर्माण के लिए 93,098 वर्ग फीट जमीन दी. 13 अप्रैल 1962 को इस आश्रम का उद्घाटन हुआ. रायपुर में आज हम जिस खूबसूरत स्वामी विवेकानंद आश्रम को देख रहे हैं, वह उनकी कड़ी मेहनत का ही नतीजा है. स्वामी आत्मानंद जी छत्तीसगढ़ के लोगों की निस्वार्थ भाव से हमेशा सेवा करते रहे. जो भी पैसा उनके पस होता वो सेवा भाव से जरुरतमंदों के बीच बांट दिया करते. छत्तीसगढ़ आने वाले लोगों को भोजन कराते, उनके रहने की व्यवस्था कराते. शिक्षा के लिए आए लोगों की मदद करते.

आधुनिक शिक्षा के जनक बने स्वामी आत्मानंद जी

राज्य सरकार के विशेष अनुरोध पर स्वामी जी ने नारायणपुर में आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा के स्कूल का शुभारंभ किया. युवा सशक्तिकरण और नैतिक शिक्षा के लिए उनके किए गए कामों की आज भी तारीफ होती है. स्वामी जी ने समाज के दबे कुचले लोगों के उत्थान के लिए अपना सारा समय और संसाधन लगा दिया. स्वामी जी को विश्वास था कि ”शिक्षा बड़े पैमाने पर सामाजिक परिवर्तन लाने का एक शक्तिशाली साधन है.”

शिक्षा को बताया बुनियादी जरुरत

स्वामी जी ने शिक्षा को बढ़ावा दिया और सुनिश्चित किया कि बच्चों और युवाओं को अपने पुस्तकालय में अच्छी किताबें, पत्रिकाएं मिल सकें. बुजुर्गों और बीमारों की सेवा के लिए उन्होंने एक अस्पताल खोला ताकि लोगों को हर तरह का बुनियादी इलाज मुफ्त मिल सके. स्वामी आत्मानंद जी एक इंसान नहीं बल्कि अपने आप में एक संस्था थे. शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनके योगदान को कभी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. स्वामी आत्मानंद के नाम से आज छत्तीसगढ़ में जितने भी स्कूल चल रहे हैं उनमें इन्ही बुनियादी बातों को ध्यान में रखा गया है.