पटना – 15 नवंबर की सुबह चित्रगुप्त पूजा और रात विश्व कप में भारत की जीत के नाम रही। 16 नवंबर राहत का दिन है। 17 नवंबर से कामकाज शुरू होगा, क्योंकि लोक आस्था के महापर्व छठ के लिए ‘नहाय खाय’ या ‘कद्दू भात’ का दिन है। छठ की असल तैयारी का दिन शुक्रवार को ही रहेगा। इधर कद्दू-भात बनाने की तैयारी होगी और उधर प्रसाद तैयार करने के लिए गेहूं-चावल धोकर सुखाने-पिसाने का काम होगा। जो बिहार को ठीक से नहीं जानते, उनके लिए छठ को समझना थोड़ा मुश्किल है। देश-दुनिया के लोग छठ के बारे में जानना चाह रहे कि आखिर इसका इतना महत्व क्यों है? क्यों मनाया जाता है? सूर्योपासना का पर्व है और छठी मइया भी कहते हैं, क्यों? नहाय खाय से पहले ज्योतिष-कर्मकांड विशेषज्ञ दे रहे हर सवाल का जवाब !
यह लोक आस्था का महापर्व है। मतलब, यह बिहार और पूर्वांचल के लोगों की आस्था का प्रतीक है। आस्था पर न तो सवाल किया जा सकता है और न ही इसका कोई जवाब हो सकता है। जहां तक महत्व का सवाल है तो यह प्रकृति को चलाने वाले सूर्यदेव की उपासना का पर्व है। यह देवी कात्यायनी से आशीर्वाद मांगने का पर्व है। छठ दिखाता है कि जिसका अंत है, उसका उदय भी होगा।
वास्तविक रूप से इस सवाल का जवाब कोई नहीं दे सकता। यह बिहार के सनातन हिंदू धर्मावलंबियों के घर-घर में होने वाला पर्व है। जो अपने घर में नहीं करते, वह दूसरों के घर में जाकर करते हैं। जो दूसरों के घर पर नहीं जाते, वह घाट पर जाकर अर्घ्य देते हैं। कोई मनोकामना के साथ करता है, कोई पूरा होने पर करता है तो बहुत सारे लोग यूं ही करते हैं आस्था के कारण। मनोकामना छठी मइया पूरी करती हैं और आस्था सूर्यदेव के प्रति दिखाते हैं।
सूर्यदेव तो ठीक, छठी मइया कौन हैं?
सूर्यदेव तो इस प्रकृति के ऊर्जा स्रोत हैं। छठी मइया देवी कात्यायनी हैं। यह सूर्यदेव की बहन हैं। नवरात्र में भी हम देवी कात्यायनी की पूजा षष्ठी को करते हैं, मतलत नवरात्र के छठे दिन। सनातन हिंदू धर्म में जन्म के छठे दिन भी देवी कात्यायनी की ही पूजा होती है। इन्हें संतान प्राप्ति के लिए भी प्रसन्न किया जाता है। संतान के चिरंजीवी, स्वस्थ और अच्छे जीवन के लिए देवी कात्यायनी को प्रसन्न किया जाता है। छठी मइया यही हैं। इसलिए, यह समझना मुश्किल नहीं। शेष, छठ में सूर्यदेव की पूजा तो घाट पर होती है, खरना पूजा पहले छठी मइया के लिए ही होती है।
छठ में सबसे ज्यादा महत्व किसका है?
किसी एक बात का ज्यादा या किसी का कम महत्व नहीं है। लेकिन, सबसे ज्यादा ध्यान शुद्धता और सात्विकता का रखना पड़ता है। कार्तिक मास शुरू होते ही लहसुन-प्याज खाना अमूमन बंद हो जाता है। धनतेरस या दीपावली से ज्यादातर लोग सेंधा नमक खाना शुरू करते हैं। यह एक तरह से शुद्धता का माहौल बनाने का प्रयास होता है। छठ के लिए अनिवार्य शुद्धता का मानक पूरा करने के लिए पूर्ण सात्विक होना पड़ता। नहाय खाय से छठ व्रत की शुरुआत होती है। मन-कर्म और वचन से शुद्ध होना पड़ता है। नहाय खाय का मतलब तामसी प्रवृत्तियों की सफाई है। शारीरिक रिश्तों में दूरी रखनी होती है। कम और सुपाच्य भोजन ग्रहण करना होता है ताकि शरीर का भीतरी हिस्सा भी साफ हो जाए। नहाय खाय में अरवा चावल का भात और चने की दाल के साथ कद्दू डालकर बने दलकद्दू को हर कोई खाता है। यह पूजा के लिए अलग रखे बर्तन में बनता है और यथासंभव मिट्टी के चूल्हे पर लकड़ी की आग पर। यह भोजन शुद्ध घी में ही बनता है।
व्रती के लिए सबसे कठिन क्या है?
नहाय खाय के साथ ही व्रती की परीक्षा शुरू होती है। नहाय खाय में शुद्ध-सात्विक भोजना मिला, लेकिन उसमें सेंधा नमक रहेगा। खरना के दिन, मतलब सूर्यादय से शाम में पूजा होने तक जल भी ग्रहण नहीं करना है। खरना पूजा 18 नवंबर को है। सूर्यास्त के बाद शाम में भोजन ग्रहण करने से पहले एकाग्रता से छठी मैया का पूजन किया जाता है। छठी मैया का विधिवत पूजन यानी दीप प्रज्वलन, पुष्प अर्पण, सिंदूर अर्पण इत्यादि क्रम से पूजन किया जाता है। इसके बाद मीठा भोजन ग्रहण करना है। मुख्यतः खीर, घी लगी रोटी अथवा घी में तली पूड़ी एवं फल ग्रहण किया जाता है। इस दिन व्रती यही सब भोजन करते हैं। पूजा के समय उसी कमरे में खाने के साथ जो पानी पी सके, उसके बाद सुबह के अंतिम अर्घ्य के बाद ही अन्न-जल ग्रहण का विकल्प होता है। मतलब, 18 नवंबर को एक बार शाम में मीठा खाना और पानी। फिर, सीधे 20 नवंबर को अर्घ्य देने तक निर्जला।