बिलासपुर जिले की कोटा विधानसभा सीट छत्तीसगढ़ के सियासी इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। हर बार की तरह इस बार भी यह सीट वीआईपी हाई प्रोफाइल बनी हुई है।
बिलासपुर – जिले की कोटा विधानसभा सीट छत्तीसगढ़ के सियासी इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। हर बार की तरह इस बार भी यह सीट वीआईपी हाई प्रोफाइल बनी हुई है। साल 2023 के चुनाव में कोटा से भाजपा प्रत्याशी प्रबल प्रताप सिंह जूदेव के सामने कांग्रेस प्रत्याशी अटल श्रीवास्तव हैं। यही से वर्तमान विधायक और जेसीसीजे के संस्थापक अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी भी चुनाव मैदान में हैं। प्रबल प्रताप सिंह जूदेव बीजेपी के दिग्गज नेता रहे दिलीप सिंह जुदेव के बेटे हैं। इस वजह से कोटा में इस बार चुनावी घमासान है। यहां पर त्रिकोणीय मुकाबला है। कोटा सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है। बीजेपी यहां से कमल खिलाने के लिए जद्दोजहद कर रही है। प्रबल प्रताप सिंह के सामने कोटा से कमल खिलाने की चुनौती है, तो रेणु जोगी के सामने चौथी बार इस सीट को बचाए रखने की जद्दोजहद है। वहीं अटल श्रीवास्तव की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।
कोटा विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1965 को हुई थी। इस सीट से कांग्रेस जीतती आ रही है। यह छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पत्नी डॉ. रेणु जोगी की सीट हैं। आजादी के बाद जब से कोटा विधानसभा अस्तित्व में आया तब से यहां कांग्रेस का ही कब्जा रहा है। इस रिकॉर्ड को पहली बार पिछले विधानसभा चुनाव कांग्रेस पार्टी से निकलीं रेणु जोगी ने तोड़ा और कोटा विधानसभा पर पहली बार किसी अन्य दल ने कब्जा किया।
बीजेपी की इतिहास बदलने की जंग
बीजेपी ने इस बार कोटा से प्रबल प्रताप सिंह जूदेव को मौका दिया है ताकि चुनावी मुकाबला जोगी बनाम जूदेव रहे। हालांकि यहां पर त्रिकोणीय मुकाबला रहेगा, लेकिन बीजेपी दो ध्रुवीय मुकाबले में कांग्रेस डैमेज करना चाहती है पर कांग्रेस की ताकत उसका इतिहास और उनके कैडर वोटर्स हैं।
विधानसभा चुनाव 2018 का परिणाम
विधानसभा चुनाव 2018 के परिणाम की बात करें, तो पिछली बार जेसीसीजे प्रत्याशी रेणु जोगी को सर्वाधिक 48,800 वोट मिले थे। वोटों का प्रतिशत 32.77 रहा। 45,774 वोट के साथ दूसरे नंबर पर बीजेपी के काशीराम साहू को संतोष करना पड़ा। कांग्रेस से 30,803 मतों के साथ विभोर सिंह तीसरे नंबर पर थे।
स्थानीय मुद्दे
कोटा विधानसभा क्षेत्र में विकास की दर बहुत धीमी रही है। पुरानी विधानसभा सीट होने के बावजूद इस क्षेत्र में विकास नहीं हुआ है। इस क्षेत्र में निजी विश्वविद्यालय के अलावा कई स्कूल और कॉलेज हैं। क्षेत्र के ज्यादातर लोग कृषि पर निर्भर हैं, जो कि 80 फीसदी आबादी की आय का मुख्य स्रोत है। क्षेत्र में कोयला खदान, पॉवर प्लांट और चावल मिल जैसे उद्योगों की मौजूदगी ने रोजगार के नए अवसर बनाएं है। इस क्षेत्र में अरपा भैंसाझार प्रोजेक्ट को सबसे पहले 6 जून 2012 को मंजूरी मिली थी, जो अभी तक पूरा नहीं हो सका। उस वक्त इसकी लागत लगभग 606 करोड़ थी, चार साल बाद जिसकी लागत लगभग 1,141 करोड़ हो गई। इस प्रोजेक्ट से लगभग एक लाख किसानों को पानी देने का दावा किया गया था। किसानों को यहां मिलने वाले मुआवजे और भूमि अधिग्रहण के मुद्दों को लेकर सरकार से बहस होती रहती है।au