पटना की विपक्षी एकता वाली बैठक के दो दिन बाद वाम नेता ने PDA का नाम फाइनल होने की बात कही। घोषणा नहीं हुई थी। बेंगलुरु में यह घोषणा क्यों मुश्किल है, यह विपक्षी एकता की मुहिम शुरू करने वाले नीतीश कुमार भी समझ रहे।
पटना – 23 जून को जब पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देशभर से भाजपा विरोधी दलों को जुटाकर बैठक की तो घोषित 18 की जगह 15 घटक दल आए। इनमें से अपनी बात कहने के लिए कई दल मीडिया के सामने नहीं भी आए। आम आदमी पार्टी ने तो पहले ही मुंह मोड़ लिया। इसी चक्कर में मीडिया के सामने वामदल बोलते-बोलते भी विपक्षी एकता के नए नाम की घोषणा नहीं करा सके। नीतीश के बेहतरीन संयोजन की चर्चा सभी ने की, लेकिन संयोजक के रूप में उनके नाम की प्रतीक्षित और संभावित घोषणा नहीं हो सकी। बैठक के बाद एक वाम नेता ने पटना में ही देशभक्त लोकतांत्रिक गठबंधन का नाम फाइनल होने की बात कही। लेकिन, क्या यह इतना आसान नहीं? कौन इसके पक्ष में होगा? संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का अस्तित्व मिटाने की बात आएगी तो नीतीश कुमार और लालू प्रसाद किस खेमे में होंगे? इन सवालों के साथ विपक्षी एकता का प्रयास शुरू करने वाले नीतीश कुमार और इसके लिए महत्वपूर्ण नेताओं को बुलाने वाले लालू प्रसाद यादव बेंगलुरु जा रहे हैं।
PDA किसकी पसंद और क्यों चाह रहे यह नाम
देशभक्त लोकतांत्रिक गठबंधन (patriotic democratic alliance) का नाम शिमला में फाइनल होना था। पटना की बैठक एक तारीख टलने पर हुई थी। शिमला में घोषित 10-11 जुलाई की तारीख बेकार गई। फिर बेंगलुरु की 13-14 की तारीख बेकार गई। अब 17-18 को बैठक बेंगलुरु में हो रही है। पटना की बैठक में विपक्षी एकता के किसी गठबंधन का नाम घोषित नहीं हुआ। बैठक के दो दिन बाद पटना में भारतीय कॉम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी. राजा ने बताया कि भाजपा-विरोधी दलों की अगली बैठक में देशभक्त लोकतांत्रिक गठबंधन (PDA) के नाम पर मुहर लग जाएगी। ‘अमर उजाला’ ने इस खबर के साथ यह भी विश्लेषण सबसे पहले सामने लाया कि राष्ट्रभक्त या राष्ट्रवाद जैसे शब्दों पर भाजपा का एकाधिकार मानते हुए उसकी काट के लिए ‘देशभक्त’ शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा है। विपक्षी एकता की बैठक में पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने Patriotic शब्द पर जोर दिया था। डी. राजा ने लोकतंत्र पर मंडराते खतरे के आसपास ही बात रखी थी। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने भारत को धर्मनिरपेक्ष जनतंत्र के गणराज्य बताया था। भाकपा (माले) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने भी लोकतंत्र की बातें की। बाद में डी. राजा ने नाम ही सामने ला दिया।
यूपीए खत्म करने के पक्ष में होंगे लालू-नीतीश या नहीं
पटना से राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद, डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव, जदयू से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पार्टी अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को विपक्षी एकता की बैठक में रहना है। बाकी जाएं तो भी शायद बैठक में नहीं रहेंगे। इनमें लालू और नीतीश निर्णायक हैं। दोनों पार्टियों के पुराने जानकार बताते हैं कि संयोजक के मुद्दे पर इन दोनों के बीच बात नहीं हो रही है, क्योंकि नीतीश दावेदार हैं और लालू यहां उनके साथ ही हैं। यह बात दूसरे नेताओं को करनी है। रही बात यूपीए और पीडीए की तो दोनों ही दलों के निर्णायक नेताओं ने एक ही स्टैंड तय किया है कि विपक्षी एकता की राह में कोई रोड़ा नहीं आने देंगे।
UPA पर कांग्रेस करेगी समझौता?
सोनिया के सामने रहते यूपीए खत्म करना मुश्किल
अगर कांग्रेस ज्यादा असहमत नहीं होकर यूपीए को खत्म कर पीडीए के लिए राजी हो जाती है तो उसे राजी कराएंगे। अगर कांग्रेस अड़ जाती है तो बाकी दलों को यूपीए के बैनर तले ही विपक्षी एकता की कोशिशों को आगे बढ़ाने के लिए राजी कराएंगे। लालू-नीतीश ही नहीं, बिहार कांग्रेस के कुछ पुराने नेताओं का भी मानना है कि यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी बैठक में रहेंगी तो उनके सामने यूपीए को खत्म करने के लिए कांग्रेस तैयार नहीं होगी। ऐसे में इस बात पर बेंगलुरु में भी पटना के आप वाले स्टैंड की तरह गरमागरमी से भी इनकार किसी को नहीं।