आम तौर पर जब किसी की मौत होती है तो उसकी शवयात्रा दिन में निकाली जाती है. खासकर हिंदू धर्म में तो ये बेहद जरुरी नियम है. किन्नर समाज भी हिंदू धर्म को ही मानता है.
लेकिन बात जब शवयात्रा की आती है तब वो रात का समय चुनते हैं. दरअसल, ये समाज अपने शवयात्रा को आम लोगों की नजर से दूर रखना चाहता है. इसलिए जब किसी किन्नर की मौत होती है तो उसकी शवयात्रा को रात में ही निकाला जाता है.
बात जब शवयात्रा की कर रहे हैं तो आपको बता दें कि किन्नरों की शवयात्रा में किसी और समाज के लोगों का जाना मना है. इस समाज का नियम है कि इनकी शवयात्रा में सिर्फ इनकी ही बिरादरी के लोग शामिल हो सकते हैं. और किसी भी समाज को इसकी अनुमति नहीं है.
किन्नर की मौत के बाद उसकी बॉडी को जलाया नहीं जाता. वैसे तो किन्नर समाज हिंदू धर्म को मानता है. साथ ही हिन्दुओं के हर नियम मानता है. लेकिन बात जब शव की आती है तो वो उसे जलाने की जगह दफना देते हैं.
किसी किन्नर की मौत हो जाए, तो उसके शवयात्रा में कोई भी रोता नहीं है. इसमें आंसू निकालना मना होता है. दरअसल, इन लोगों का मानना है कि किन्नर में जन्म पापियों का होता है. जब किसी किन्नर की मौत हो जाती है तो उसे इस नर्क जैसे संसार से मुक्ति मिलने की ख़ुशी मनाई जाती है. इस वजह से किसी के भी रोने की मनाही होती है.
किन्नर समाज वैसे तो दूसरे लोगों को तरक्की और खुश रहने की दुआएं देते हैं. लेकिन अपने लिए ये लोग सिर्फ एक ही दुआ मांगते हैं. दुनिया का हर किन्नर भगवान से यही दुआ मांगता है कि अगले जन्म वो फिर से किन्नर ना बनें.
किन्नरों की मौत के बाद उसकी बॉडी को जूते-चप्पल से पीटा जाता है. कहा जाता है कि इससे उनके पाप को कम किया जाता है.