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400 साल पुरानी बावली में भगवान बजरंग बली के होने का दावा, पानी निकालने का काम जारी…

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रायपुर – बावली वाले हनुमान मंदिर स्थित प्राकट्य बावली की साफ-सफाई का काम किया जा रहा है. बावली का पूरा पानी बाहर निकाला जा रहा है. यह बावली लगभग 400 साल पुरानी है. जैसा कि बावली और बावली में उपस्थित हुनमान जी महराज का इतिहास है कि बावली के अंदर भगवान हनुमान की एक मूर्ति आज भी है.

400 साल पुरानी बावली की गहराई और कुछ अनोखे दृश्य भी मिले है. शुक्रवार को बावली का पूरा पानी बाहर नहीं निकाला जा सका, इसलिए यह काम शनिवार को भी जारी रहेगा. जैसे ही आसपास के लोगों को पता चला लोगों का हुजूम बावली को देखने उमड़ पड़ा. वार्ड के पार्षद जितेंद्र अग्रवाल के द्वारा बावली का पानी खाली करवाने का काम किया जा रहा है, ताकि कोई ऐतिहासिक चीजें मिल सके और हनुमान जी की प्रतिमा होने की बात कही गई थी शायद उनके दर्शन हो जाए. इसी के साथ ही इस मंदिर को टूरिज्म में एक पहचान मिल जाए.

क्या है इतिहास

पुरानी बस्ती में नागरीदास मठ और जैतूसाव मठ के बीच भीतर गली में सैकड़ों साल पुरानी एक बावली है. इस बावली की खासियत यह है कि चाहे कितनी भी भीषण गर्मी पड़ी हो, लेकिन आज तक यह बावली नहीं सूखी. कहा जाता है कि इसी बावली से हनुमान की तीन प्रतिमाएं निकली हैं।

राजधानी के अलग-अलग इलाकों में विपरीत दिशाओं में इन प्रतिमाओं को प्रतिष्ठापित किया गया है. एक प्रतिमा बावली के बगल स्थित मंदिर में, दूसरी यहां से तीन किलोमीटर दूर दूधाधारी मठ में और तीसरी लगभग पांच किलोमीटर दूर गुढ़ियारी मच्छी तालाब के किनारे बने विशाल मंदिर में प्रतिष्ठापित है. तीनों मंदिरों में हनुमान जयंती पर दर्शन करने के लिए हजारों भक्तों का तांता लगा रहता है.

बावली से निकली पहली प्रतिमा बावली के बगल में स्थापित की गई. बाद में यहां भव्य मंदिर का निर्माण किया गया. चूंकि यह प्रतिमा बावली के बगल में स्थित है, इसलिए यह बावली वाले हनुमान मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. मंदिर के पुजारी, पाठक परिवार द्वारा सालों से यहां पूजा-अर्चना की जा रही है. मंदिर में प्रतिदिन सैकड़ों भक्त मन्नत मांगने पहुंचते हैं. हर मंगलवार और शनिवार को दर्शन करने भक्तों का हुजूम उमड़ता है. यहां के पुजारी और भक्तगण बताते हैं कि सच्चे दिल से मन्नत मांगने वालों की मनोकामना अवश्य पूरी होती है.

500 साल पुराने पूर्वाभिमुख हनुमान

मंदिर के पुजारी पं.मोहन पाठक बताते हैं कि, उनके दादा-परदादा के जमाने से मंदिर में पूजा की जा रही है. उन्होंने अपने बुजुर्गों से सुना है कि 500 साल पहले घने जंगल में बनी बावली के भीतर ग्रामीणों को हनुमानजी की प्रतिमाएं दिखाई दी थी. ग्रामीणों ने तीनों प्रतिमाओं को निकालकर बावली के किनारे स्थित पेड़ के नीचे स्थापित करवाया. इस प्रतिमा का मुख पूर्व दिशा की ओर है.

गुढ़ियारी में दक्षिणमुखी हनुमान

गुढ़ियारी इलाके में रहने वालों को जब प्रतिमा निकलने की जानकारी हुई तो एक प्रतिमा वे गुढ़ियारी ले गए. वहां मच्छी तालाब के समीप प्रतिमा स्थापित की गई. यहां प्रतिमा का मुख दक्षिण दिशा की ओर होने से यह दक्षिणमुखी हनुमान के नाम से प्रसिद्ध है.

दूध पीने वाले महंत के नाम से पड़ा दूधाधारी मठ

बताया जाता है कि, तीसरी प्रतिमा मठपारा इलाके के मठ में स्थापित की गई. जब दूधाधारी मंदिर का निर्माण किया जा रहा था तब वहां निर्माण के समय दूध की धारा निकली थी, जिसके तर्ज पर मंदिर को दूधाधारी मठ के नाम पर रखा गया. इसी के साथ ही यहां के महंत हनुमानजी की पूजा करके दूध का ही आहार लेते थे. इसी वजह से मठ का नाम दूधाधारी मठ पड़ा. तीनों मंदिर चमत्कारी माने जाते हैं. अब तीनों ही जगह पर विशाल मंदिर बन चुका है।