करीब-करीब दो साल पुराने दहेज प्रताड़ना मामले में ग्वालियर हाई कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ एफआईआर रद्द करा दी. इसके साथ-साथ हाई कोर्ट ने कहा कि छोटे-मोटे विवाद को दहेज प्रताड़ना बताकर पूरे परिवार को फंसाना कानून का दुरुपयोग है. हाई कोर्ट ने पुलिस से भी कहा कि इन मामलों में विवेचना ठीक से करें.
ग्वालियर – दहेज प्रताड़ना के एक मामले को लेकर ग्वालियर हाई कोर्ट ने सख्ती दिखाई है. हाई कोर्ट का कहना है कि छोटे-मोटे विवाद को दहेज प्रताड़ना बताकर पूरे परिवार को फंसाना कानून का दुरुपयोग है. यह फैसला देते हुए हाई कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना मामले में हुई एफआईआर रद्द कर दी. दरअसल, सवा दो साल से दहेज प्रताड़ना का केस झेल रहे एक बहू के चचिया सास-ससुर, उनकी बेटी और भतीजे को हाई कोर्ट ने बड़ी राहत दी है. जस्टिस दीपक अग्रवाल ने इन चारों आरोपियों की याचिका को स्वीकार कर लिया. सुनवाई के बाद जस्टिस अग्रवाल ने न केवल एफआईआर, बल्कि पूरी कार्रवाई निरस्त करने का आदेश दिया.
एडवोकेट बृजेश त्यागी ने बताया कि यह मामला भिंड के देहात थाना का है. करीब दो साल पहले मेनका शर्मा पुलिस में दहेज प्रताड़ना की शिकायत की थी. उसकी शिकायत पर पुलिस ने कार्रवाई की थी. पुलिस ने 16 जनवरी 2021 को ससुरालवालों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज किया. इस केस में सुनील शर्मा, सविता शर्मा, वर्षा शर्मा और विकास शर्मा का नाम भी शामिल था.
वकील को कोर्ट को बताए तथ्य
त्यागी ने बताया कि इन चारों आरोपियों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की. उन्होंने हाई कोर्ट से एफआईआर निरस्त करने की मांग की. त्यागी ने कोर्ट को बताया कि शिकायतकर्ता मेनका और अंशुमान की शादी 1 मई 2014 को हुई थी. उस समय वर्षा नाबालिग थी. जबकि, विकास ग्वालियर के निजी इंजीनियरिंग कॉलेज में अध्ययनरत था. 2017 में ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए हैदराबाद चला गया. चचिया सास-ससुर भी मेनका के साथ नहीं रहते थे. इन सारे तथ्यों पर गौर करने के बाद कोर्ट ने सभी को राहत देते हुए एफआईआर निरस्त करने का आदेश दिया.
पुलिस को हाई कोर्ट ने दी नसीहत
गौरतलब है कि ग्वालियर हाई कोर्ट का यह फैसला है मप्र के ऐसे तमाम केसों में नजीर बनेगा, जिनमें छोटे-मोटे मामलों में दहेज एक्ट की एफआईआर दर्ज हुई है. एक अनुमान के मुताबिक, पूरे प्रदेश के कुल केसों में से करीब एक लाख केस दहेज प्रताड़ना के हैं. इन सभी पर सुनवाई जारी है. दूसरी ओर, हाई कोर्ट ने पुलिस को भी नसीहत दी. उसने पुलिस से कहा कि दहेज प्रताड़ना मामले में पूरी विवेचना करने के बाद ही एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए.