Home छत्तीसगढ़ एक सांसद की निरर्हता…

एक सांसद की निरर्हता…

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ऐश्वर्य पुरोहित

गत 23 मार्च को सूरत की एक अदालत ने मानहानि के एक मामले में वायनाड संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के सदस्य राहुल गांधी को दोषी पाते हुए उन्हें दो साल की सजा सुनायी है। तदुपरान्त 24 मार्च 2023 को लोकसभा सचिवालय की एक अधिसूचना द्वारा उन्हें लोकसभा की सदस्यता के अयोग्य घोषित कर दिया और तरह लोकसभा में उनकी सीट रिक्त हो गई।

इसके बाद से ही देशभर में संवैधानिकता और असंवैधानिकता पर बड़ी-बड़ी बातें शुरु हो गईं। कहीं-कहीं तो बात इतनी बिगड़ी कि कांग्रेस और भाजपा के कार्यकर्ताओं के बीच हाथापाई और पथराव तक हो गया। एक ओर कांग्रेसियों का कहना है कि सरकार ने राहुल गांधी की आवाज को दबाने के लिए ऐसा किया है, वहीं दूसरी ओर भाजपाइयों का कहना है कि यह उनके (राहुल गांधी के) कर्मों का ही फल है। इन दोनों के अलावा एक तीसरा पक्ष भी है जो यह कहता दिख रहा है कि मानाकि राहुल गांधी दोषी पाए गए हैं लेकिन सरकार ने उन्हें अयोग्य घोषित करने में थोड़ी हड़बड़ी कर दी।

ऐसे में ये सवाल उठते हैं कि क्या वास्तव में लोकतंत्र की हत्या हुई है या फिर राहुल गांधी को उनके कर्मों की सजा मिली है या फिर सरकार ने उन्हें अयोग्य घोषित करने में क्या सही में थोड़ी आतुरता दिखा दी? इन प्रश्नों का सटीक उत्तर पाना कठिन नहीं है और न ही इसके लिए सूरत अदालत के पूरे निर्णय पर गौर करने की आवश्यकता है। अभी हमारे लिए केवल यह जानना आवश्यक है कि अदालत ने उन्हें भारतीय दण्ड संहिता की धारा 504 के तहत दोषी पाया है और उन्हें 2 साल की सजा सुनाई है। राहुल गांधी के पास अदालत के फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देने का विकल्प भी अभी खुला हुआ है।

पर अदालत के इस फैसले में संवैधानिकता या असंवैधानिकता का यदि कोई प्रश्न होगा भी तो ऊपरी अदालत ही उस पर निर्णय कर सकती है। अतएव यहाँ मूल विवाद उन्हें (राहुल गांधी को) लोकसभा की सदस्यता से वंचित किये जाने का है। तो इसे समझने के लिए हमें भारत के संविधान के अनुच्छेद 101, 102, 190 व 191 पर गौर करना होगा जो संसद सदस्यों की अयोग्यता और इसकारण से सदन में उनके स्थान रिक्त करने हेतु प्रावधान करते है। संविधान के अनुच्छेद 101 के खण्ड (3) के उपखण्ड (क) के अनुसार यदि संसद के किसी सदस्य को अनुच्छेद 102(1) व 102(2) के अधीन अयोग्य घोषित कर दिया जाता है तो उसका स्थान रिक्त हो जाएगा, वहीं संविधान के अनुच्छेद 102 के खण्ड(1) के उपखण्ड(ङ) के अनुसार, “कोई व्यक्ति संसद के किसी सदन का सदस्य चुने जाने के लिए और उसका सदस्य बने रहने के लिए निरर्ह होगा यदि वह संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार निरर्हित कर दिया हो। (A person shall be disqualified for being chosen as, and for being, a member of either House of Parliament if he is so disqualified by or under any law made by parliament.)”

यह प्रावधान भारत की संसद को ऐसा कोई कानून बनाने की शक्ति देता है, जो संसद सदस्यों के लिए अनुच्छेद 102 के खण्ड (1) के उपखण्डों (क) से (घ) तक वर्णित अयोग्यताओं के अतिरक्त भी अन्य अयोग्यताएँ प्रवर्तित कर सकता हो। संविधान प्रदत्त इसी शक्ति का उपयोग करते हुए भारत की संसद ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 मे कतिपय अपराधों के लिए दोषसिद्धि पर अयोग्यता के अन्तर्गत ऐसे प्रावधान किए हैं जिससे यदि कोई व्यक्ति किसी न्यायालय द्वारा धारा 8 की उपधारा (1) एवं (2) से भिन्न किसी मामले में दोषी पाया जाता है और उसे दो साल से अन्यून (अर्थात् दो साल या उससे अधिक अवधि की) सजा मिलती है तो वह सदन का सदस्य चुने जाने या उस सदन का सदस्य बने रहने के योग्य नहीं रह जाता। इसी धारा में आगे अयोग्यता की अवधि भी बतायी गयी है जिसके अनुसार, कोई व्यक्ति जो [उपधारा (1) या उपधारा (2) में निर्दिष्ट किसी अपराध से भिन्न] किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है और दो वर्ष से अन्यून के कारावास से दंडादिष्ट किया गया है, ऐसी दोषिसिद्धि की तारीख से निरर्हित होगा और उसे छोड़े जाने से छह वर्ष की अतिरिक्त कालावधि के लिए निरर्हित बना रहेगा। (A person convicted of any offence and sentenced to imprisonment for not less than two years [other than any offence referred to in sub-section (1) or sub-section (2)] shall be disqualified from the date of such conviction and shall continue to be disqualified for a further period of six years since his release.])

अब चूँकि न्यायालय ने राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई है तो इसलिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 की उपधारा (3) के चलते वे सदन के सदस्य बने रहने के लिए अयोग्य हो गए हैं, अतः लोकसभा में उनका स्थान रिक्त हो गया और अब अगले आठ साल तक वे कोई चुनाव भी नहीं लड़ सकेंगे। लेकिन अब भी मुख्य प्रश्न तो रह ही गया है, जो विवाद की मूल जड़ है और वह यह कि आख़िर सरकार को उन्हें अयोग्य घोषित करने की इतनी हड़बड़ी क्या थी जबकि अभी ऊपरी अदालत का दरवाजा खटखटाया जा सकता है?
यह बात थोड़ी तार्किक भी लगती है। लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम की जिस धारा 8 का उल्लेख ऊपर किया गया है, उसकी उपधारा 4 भी कुछ ऐसा ही प्रावधान करती है। इस उपधारा के अनुसार जबतक दोषसिद्धि को तीन मास न बीत गए हों तब तक यह अयोग्यता प्रभवशील नहीं होगी और यदि इस बीच ऊपरी अदालत में अपील कर दी जाए तो जबतक उस अपील का निपटारा नहीं हो जाता तबतक उपर्युक्त कोई भी अयोग्यता लागू नहीं होगी। अतः एकबारगी तो यह लगता है कि सरकार का यह कृत्य निश्चित ही गैर-कानूनी है।

लेकिन जरा ठहरिए, वास्तव में यह प्रवाधान ही राजनेताओं का रक्षाकवच था, इसी का इस्तेमाल करते हुए कई राजनेता दोषसिद्धि के बावजूद कानून के कर्ता-धर्ता बने बैठे रहते थे। लेकिन 10 जुलाई 2013 को लिली थॉमस वि. भारत संघ एवं अन्य [2013] 10 SCC 1130 प्रकरण में एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 की इस उपधारा 4 को संविधान के अनुच्छेद 102 (1) व अनुच्छेद 191 (1) की उल्लंघनकारी धारा बताया और इसे अभिखण्डित कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने यह पाया कि, “जैसे ही कोई व्यक्ति, जो संसद के किसी सदन या फिर किसी राज्य विधान मण्डल के किसी सदन का सदस्य था, संविधान के अनुच्छेद 102(1)(ङ) व 191(1)(ङ) के द्वारा या इनके अधीन किसी विधि द्वारा अयोग्य हो जाता है, तो सदन में उसका स्थान उसका संविधान के अनुच्छेद 101(3)(क) व 190(3)(क) के प्रभाव से स्वतः ही रिक्त हो जाता है तथा संसद लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 की उपधारा (4) की तरह ऐसा कोई प्रावधान नहीं कर सकती जो वह तिथि बताता हो कि किसी सदस्य की अयोग्यता कब लागू होगी और इस तरह उसकी जगह को संविधान के अनुच्छेद 102(1)(ङ) व 191(1)(ङ) के अधीन निरर्हता के कारण रिक्त होने से बचाता हो। (once a person who was a member of either House of Parliament or House of the State Legislature becomes disqualified by or under any law made by Parliament under Articles 102(1)(e) and 191(1)(e) of the Constitution, his seat automatically falls vacant by virtue of Articles 101 (3)(a) and 190(3)(a) of the Constitution and Parliament cannot make a provision as in sub-section (4) of Section 8 of the Act to defer the date on which the disqualification of a sitting member will have effect and prevent his seat becoming vacant on account of the disqualification under Article 102(1 )(e) or Article 191 (1 )(e) of the Constitution.)”

इस निर्णय में संविधान के अनुच्छेद 102 की व्याख्या करते हुए सर्वोच्च अदालत का कहना था कि कोई भी सदस्य जो इस अनुच्छेद के अधीन अयोग्य घोषित होता है उसका स्थान उसी दिन से स्वतः ही रिक्त होगा जिस दिन से वह अयोग्य पाया जाएगा। इसके लिए राष्ट्रपति या राज्यपाल के निर्णय की प्रतीक्षा नहीं की जानी चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के बाद से ही यदि कोई सांसद या विधायक किसी अपराध के लिए दोषसिद्धि के चलते अयोग्य घोषित हो जाता है तो उसकी सदस्यता तत्क्षण समाप्त हो जाती है, चाहे उसने अदालत के फैसले के विरुद्ध ऊपरी अदालत में अपील ही क्यों न की हो।

इन सब बातों से यह तो साफ़ है कि राहुल गांधी की संसद सदस्यता समाप्त करने और उन्हें 8 साल तक चुनाव लड़ने से रोकने का यह निर्णय कोई सरकारी निर्णय नहीं है अपितु अदालत द्वारा दोषी पाए जाते ही वे संविधान के अनुच्छेद 102(1)(ङ) के तहत स्वतः ही अयोग्य हो गए हैं और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(3) के द्वारा अगले आठ सालों तक चुनाव लड़ने से वंचित कर दिए गए हैं।

इस प्रकार तीनों प्रश्नों का उत्तर हमें मिल जाता है कि एक आपराधिक मामले में दोषी पाए जाने के कारण ही राहुल गांघी को अपनी संसद सदस्यता से हाथ धोना पड़ा है। इसमें कुछ भी असंवैधानिक नहीं है और सरकार इस मामले में कुछ कर भी नहीं सकती क्योंकि यद्यपि लोकसभा सचिवालय की ओर से दोषसिद्धि के दूसरे दिन अधिसूचना जारी की गई हो लेकिन राहुल गांधी तो इसे एक दिन पहले स्वतः ही अयोग्य हो चुके थे। हाँ, यदि अदालत के फैसले से असन्तुष्टि हो तो ऊपरी अदालतों में उसे चुनौती दे सकते हैं, लेकिन यह भी उनकी सदस्यता को बहाल नहीं कर पाएगा। बाकी राजनीतिक बयानबाजियाँ चलती रहें, आरोप-प्रत्यारोप चलते रहें क्योंकि भारतीय राजनीति का आनन्द इसी में निहित है।