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हाईकोर्ट तक पहुंचा आरक्षण विधेयक का मामला, राज्यपाल के खिलाफ दायर हुई याचिका, हस्ताक्षर नहीं करने को बताया गया संविधान का उल्लंघन

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आरक्षण संशोधन विधेयक बिल पर राज्यपाल नहीं कर रही हस्ताक्षर 

बिलासपुर – छत्तीसगढ़ विधानसभा में आरक्षण संशोधन विधेयक बिल को पारित हुए लगभग दो महीने हो गए है, लेकिन अभी भी ये विधेयक राजभवन में अटका पड़ा है। राज्यपाल इस विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं कर रही है। इस पर जारी रार थमने का नाम नहीं ले रहा है। राज्य सरकार और विपक्ष के बीच राज्यपाल के हस्ताक्षर नहीं करने पर जमकर बयानबाजी हो रही है। अब मामला हाईकोर्ट तक पहुंच गया है। आरक्षण बिल रोकने पर अधिवक्ता हिमांग सलूजा ने राज्यपाल के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिकाकर्ता अधिवक्ता हिमांग सलूजा ने बिल रोकने को संविधान का उल्लंघन बताया है।

हाईकोर्ट में प्रस्तुत की गई याचिका में बताया गया है कि हाईकोर्ट ने प्रदेश में पहले से लागू 58 प्रतिशत आरक्षण को असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया था। जिसके बाद छतीसगढ़ सरकार ने प्रदेश में जनसंख्या व अन्य आधारों के आधार पर प्रदेश में आरक्षण का प्रतिशत 76 परसेंट कर दिया। जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए दिये जाने वाला 4 प्रतिशत आरक्षण भी शामिल हैं। नियमानुसार विधानसभा से आरक्षण बिल पास होने के बाद यह हस्ताक्षर होने के लिए राज्यपाल के पास गया। पर राज्यपाल ने उसमे साइन नहीं किया।

याचिका में कहा गया है कि राज्यपाल की भूमिका में न होकर एक राजनैतिक पार्टी के सदस्य की भूमिका में है। शायद इसलिए ही बिल पास नही कर रहीं हैं। जबकि संविधान के अनुसार यदि विधानसभा बिल पास कर दे तो राज्यपाल को तय समय मे उसे स्वीकृति देनी होती है। राज्यपाल सिर्फ एक बार ही विधानसभा को बिल को पुनर्विचार के लिए लौटा सकती हैं। और यदि विधानसभा उसमे किसी भी तरह के संसोधन के साथ या बिना संसोधन के पुनः राज्यपाल को भेजे तो उन्हें तय समय मे स्वीकृति देनी ही पड़ती है। पर राज्यपाल संविधान का उल्लंघन कर रही है। जिस वजह से प्रदेश में आरक्षण की स्थिति का कोई पता ही नही है।