नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति पर दखल दिया है। अदालत ने बुधवार को सुनवाई के दौरान चुनाव आयुक्त के तौर पर अरूण गोयल की नियुक्ति संबंधी फाइल मांगी है। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त पद पर कैसे नियुक्ति की गई है। अदालत ने इसका रिकॉर्ड भी मांगा है। अदालत ने कहा कि सुनवाई शुरू होने के तीन दिन के भीतर नियुक्ति हो गई। हम ये जाननता चाहते हैं कि नियुक्ति के संदर्भ में क्या प्रक्रिया अपनाई गई है। अगर ये नियमानुसार किया गया है तो इसमें परेशान होने वाली कोई बात नहीं है।
कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से नियुक्ति से संबंधित फाइलें लाने को कहा है। अदालत ने कहा कि जब सुनवाई चल रही थी तब नियुक्ति न की जाती तो ज्यादा उचित होता। पीठ ने कहा कि वह सिर्फ तंत्र को समझना चाहती है और देखना चाहती है कि कुछ हंकी पैंकी तो नहीं हुई है।
गौरतलब है कि याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने संविधान पीठ को बताया था कि गुरुवार को उन्होंने ये मुद्दा उठाया था। इसके बाद एक सरकारी अफसर को वीआरएस देकर चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया गया। बावजूद इसके कि पहले ही उन्होंने इसे लेकर अर्जी दाखिल की थी।
आज ही संभाला है पदभार
भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी अरुण गोयल ने सोमवार को चुनाव आयुक्त का पदभार संभाला है। इससे पहले उन्हें शनिवार को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था। उन्होंने शुक्रवार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी। गोयल को 31 दिसंबर 2022 को 60 साल की आयु में सेवानिवृत्त होना था। सरकार ने एक विज्ञप्ति के माध्यम से गोयल की नियुक्ति की जानकारी दी थी।
मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए परामर्श प्रक्रिया में सीजेआई को शामिल किया जाए
सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए परामर्श प्रक्रिया में सीजेआई को शामिल करने की बात कही है। ईसी और सीईसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा करने से चुनाव आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित होगी। सुनवाई के दौरान अदालत ने यह भी कहा कि वर्तमान में जो व्यवस्था है उसके तहत अगर केंद्र में कोई भी सत्ताधारी दल खुद को सत्ता में बनाए रखना चाहता है तो वह इस पद पर ‘यस मैन’ नियुक्त कर सकता है।
केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने तर्क दिया कि 1991 के एक अधिनियम में यह तय किया गया है कि चुनाव आयोग अपने सदस्यों के वेतन और कार्यकाल के मामले में स्वतंत्र रहता है। इसमें ऐसा कोई ट्रिगर पॉइंट नहीं है जहां अदालत के हस्तक्षेप की जरूरत हो। सरकार ने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) की नियुक्ति के लिए वर्तमान में चुनाव आयुक्तों के बीच वरिष्ठता देखी जाती है। जिन्हें क्रमशः केंद्र और राज्य स्तर के सचिव या मुख्य सचिव स्तर के अधिकारियों द्वारा नियुक्त किया जाता है।
सरकार के तर्कों पर न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि संस्थान की स्वतंत्रता को उस सीमा तक सुनिश्चित किया जाना चाहिए जिसके लिए प्रवेश स्तर पर नियुक्ति को स्कैन किया जाना चाहिए। केंद्र में प्रत्येक सत्तारूढ़ राजनीतिक दल खुद को सत्ता में बनाए रखना चाहता है। अब, हम जो करना चाहते हैं वह सीईसी की नियुक्ति के लिए परामर्श प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करना है। इस प्रक्रिया में भारत के मुख्य न्यायाधीश को शामिल करने से आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित होगी। इस पीठ में जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रवि कुमार भी शामिल हैं।