राजनांदगांव – 3 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में भगवान शिव-पार्वती के विवाह की रस्में निभाई जाती हैं। राजनांदगांव शहर में बुधवार को धूमधाम से गौरा-गौरी का विसर्जन किया गया। गौरा-गौरी का विसर्जन दीपावली के दूसरे दिन होता है, लेकिन मंगलवार को सूर्य ग्रहण होने के कारण बुधवार को तीसरे दिन इसका विसर्जन किया जा रहा है।
राजनांदगांव में विसर्जन के लिए निकाली गई यात्रा में भारी संख्या में महिलाओं और बच्चे समेत हर उम्र के लोग शामिल हुए। महिलाएं नाचते-गाते हुए गौरा-गौरी को लेकर विसर्जन के लिए पहुंचीं। छत्तीसगढ़ में गौरा-गौरी उत्सव का एक अलग महत्व है।
हर साल कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की अमावस्या यानी दीपावली के दिन गौरा-गौरी की शादी कराई जाती है। मान्यता है कि गौरा-गौरी की शादी कराने पर समाज और घर-परिवार में समृद्धि आती है। सभी संकट दूर होते हैं। रातभर लोग जसगीत गाते हैं और अगले दिन विसर्जन यात्रा निकालते हैं।
भगवान शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना और उनके विवाह की रस्में निभाई जाती हैं। भक्त बड़ी संख्या में खुद बाराती बनकर माता पार्वती और शिव जी के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं। पवित्र स्थानों की मिट्टी लाकर शिव और पार्वती मां की मूर्ति बनाई जाती है। वहीं बुधवार को गोवर्धन पूजा भी है। इस मौके पर आज प्रतिमाओं को नदी-तालाब में विसर्जित किया जा रहा है।
आदिवासी समाज का विशेष पर्व है गौरा-गौरी
दिवाली की रात दो अलग-अलग घरों में गौरा और गौरी की विधिवत शादी की रस्मों को पूरा किया जाता है। गौरा यानी शिव और गौरी यानी पार्वती के घर पर मंडप छाते हैं। फिर शाम को दोनों पक्ष की महिलाएं विवाह गीत गाते हुए चूर माटी के लिए जाती हैं। इस दौरान सुवासा और सुवासीन भी रहती हैं। चूर माटी लेकर वापस आकर मड़वा स्थल पर मिट्टी की पूजा की जाती है। इसके बाद तेल हल्दी चढ़ाया जाता है।
इसके बाद शिवजी बारात लेकर गौरी के घर आते हैं। वहां दूल्हे और सभी बारातियों का स्वागत होता है। फिर विवाह की बाकी रस्में पूरी की जाती हैं। रातभर लोग भजन-कीर्तन और जसगीत गाते हैं।
फिर अगले दिन प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। गौरा-गौरी पूजन के दिन लोग हाथ पर सोंटे की मार भी खाते हैं। मान्यता है कि गौरा-गौरी पूजा के मौके पर सोंटे से मार खाने से विघ्न-बाधाएं टलती हैं और घर-समाज में खुशहाली आती है।