प.अरविन्द मिश्रा – मां आदिशक्ति की उपासना के पावन पर्व शारदीय नवरात्रि की आज महानवमी तिथि है और महानवमी पर कंजक पूजन के साथ ही नवरात्रि का समापन हो जाएगा। इस दिन मां सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है। वैसे तो नवरात्रि के पूरे नौ दिनों को बेहद खास माना गया है, लेकिन अष्टमी और नवमी तिथि का विशेष महत्व होता है। ज्यादातर लोग नवमी तिथि को मां के नौ स्वरुपों की प्रतीक नौं कन्याओं का पूजन करते हैं और उन्हें भोजन करवाते हैं। तो चलिए जानते हैं मां सिद्धिदात्री की पूजन विधि, मंत्र, आरती और कन्या पूजन।
कन्या पूजन का महत्व
नवरात्रि व्रत के समापन पर कन्या पूजन का विशेष महत्व माना गया है। मान्यता है कि नौं कन्याओं के पूजन के बाद ही व्रत पूर्ण माने जाते हैं। दुर्गा सप्तशती में भी कन्या पूजन का महत्व विस्तार से बताया गया है। नवरात्रि के दिनों में कन्याओं को अपार शक्ति मां जगदंबा का स्वरूप मानकर आदर-सत्कार करने एवं भोजन कराने से घर में सुख-समृद्धि व मां दुर्गा की कृपा बनी रहती है।
कितने वर्ष की कन्याओं का करें पूजन
महनवमी के दिन 2 वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की कन्याओं के पूजन का प्रावधान माना गया है। दो वर्ष की कन्या को कौमारी, तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या कल्याणी, पांच वर्ष की कन्या रोहिणी, छह वर्ष की कन्या चण्डिका, सात से आठ वर्ष की कन्या शांभवी और नौ वर्ष की कन्य दुर्गा स्वरूप कहलाती है। इस तरह से नौं कन्याओं के पूजन का फल भी अलग-अलग प्राप्त होता है।
मां सिद्धिदात्री बीज मंत्र
ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:
मां सिद्धिदात्री स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
प्रार्थना मंत्र
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
इस तरह से करें कन्या पूजन
नवमी तिथि पर प्रातः सबसे पहले घर की साफ-सफाई करने के बाद मां सिद्धिदात्री की पूजा करें और मंत्र उच्चारण के साथ आरती आदि करें। इस बात का ध्यान रखें कि कन्याओं को पहले ही आमंत्रित करना आवश्यक होता है। नवमी को नौ कन्याओं के साथ एक लड़का (जिसे लांगूर भी कहा जाता है ) भी बिठाएं। कन्याओं के घर में पधारने पर आदरपूर्वक उनको आसन पर बैठाएं। इसके बाद शुद्ध जल से उनके पांव पखारें और रोली से तिलक करें। तत्पश्चात सभी कन्याओं को प्रेमपूर्वक हलवा, पूरी, चना, खीर आदि भोजन करवाएं और अंत में पैर छूकर आशीर्वाद लें। सभी कन्याओं को विदा करें और माता रानी के फिर से पधारने का आग्रह करें।