Home धर्म - ज्योतिष शिव कलाओं में दक्ष हैं, भेद मुक्त हैं, वे महायोगी, आदियोगी हैं..!

शिव कलाओं में दक्ष हैं, भेद मुक्त हैं, वे महायोगी, आदियोगी हैं..!

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शिव निर्विकार हैं, उनकी बांहें खुली हुई हैं, जिसमें जीव जगत के सभी प्राणियों के लिए जगह है। वे कैलाशपति हैं, प्रकृति में रची- बसी अनुभूति हैं। शिव तमाम तरह के वैभव से मुक्त हैं, नदी-पहाड़-झरना, पेड़-पालव आदि के सहचर हैं।

मन कभी-कभी आध्यात्मिक हो जाता है तो निकल पड़ता है अनंत की यात्रा पर अपने आराध्य की खोज में। सारे ब्रह्मांड में घूमता है। जाकर वहां रुक सा जाता है जहां सफेद और बर्फीली पहाड़ियां हैं, खुला आसमान है, कंदराएँ हैं, शिलाएं हैं, जहां किसी आदियोगी के होने की संभावना प्रबल है।

ऐसा महायोगी जो रात के चेहरे पर भभूत मल देता है, श्मशान को खेल का मैदान समझता है और देह से मुक्त हुई आत्माओं- प्रेतात्माओं को साथी खिलाड़ी। जिसकी जटाओं में नदियां हैं। जिसने अपने भाल पर चंद्रमा को टिका रखा है। जहां प्रकृति के सारे विरोधी, कमजोर और वंचित साम्य भाव में होते हैं। जहां  बाघ और बकरी एक ही घाट पर पानी पीते है

बर्फीली पहाड़ियों के शिलाओं पर ध्यान मुद्रा में बैठे शिव के यहां कोई दरबार नहीं लगता, सभी एकमेव स्थिति में रहते हैं, यहां तक कि विरोधी भी। शिव किसी बंधी बधाई मान्यताओं की डोर थामे नहीं चलते, बल्कि उन सभी का उल्लंघन करते हुए एक नई दुनिया रचते हैं। श्मशान में शिव प्रेतों के साथी हैं, जली हुई चिताओं की राख उनके लिए होली का रंग है जो वे खुद के और पिशाचों के चेहरे पर मल देते हैं, जंगल में वे विषैले सांप- बिच्छुओं के अगुआ हैं।

नीलकंठ गरल पीकर भी इतने सरल हैं कि सर्प को गले में लपेट रखा है। शिव निष्कपट हैं इसलिए क्रोधी भी हैं। लेकिन उनका क्रोध अन्याय और विषमता के विरुद्ध है क्योंकि वे समता भाव से भरे हुए हैं। छल-छद्म रहित हृदय में क्रोध अपनी स्वाभाविक और आवश्यक मात्रा में उसी रूप में रहता है जितनी कि प्रसन्नता।

असहायों और बेजुबानों की तो शरणस्थली हैं, उनके पालक हैं, सहयात्री हैं, क्योंकि वे आरोपण के भाव से मुक्त हैं। –
शिव के यहां माया नहीं है, संचय नहीं है फिर भी उनका भरा पूरा परिवार है। शिव बेजुबानों के सखा हैं, कमजोरों, वंचितों और निरीह जीवों को साथ लेकर चलते हैं। शिव समदर्शी हैं, उपेक्षा और वर्चस्व के भाव से परे। शिव समता और साथी भाव के जन्मदाता है। वे इन भावों से इस कदर भरे हुए हैं कि प्रेम में अर्धनारीश्वर हो जाते हैं, यह उनके प्रेम की पराकाष्ठा ही है, ऐसा होना ही उनके वैराग्य की चरम अवस्था है।

शिव हर तरह की कलाओं में दक्ष हैं, भेद मुक्त हैं

शिव हर तरह की कलाओं में दक्ष हैं, भेदमुक्त हैं, एक तरफ ज्ञानी हैं-ध्यानी हैं, योगी हैं तो दूसरी तरफ तांडव नृत्य में सिद्धस्थ हैं। शिव घोर तिमिर में प्रकाश की किरण हैं। उनके यहां कोई सोपानक्रम नहीं है। वे सखा भाव से भरे हुए हैं, इसीलिए आदि से अनादि हैं, अनंत हैं।

असहायों और बेजुबानों की तो शरणस्थली हैं, उनके पालक हैं, सहयात्री हैं, क्योंकि वे आरोपण के भाव से मुक्त हैं। आज जब ताकतवर अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाओं में लिप्त होकर दुनिया को युद्ध की आग झोंक देना चाहते हैं तो जरूरत इस बात है कि लोगों में शिवत्व का जागरण हो।

महाशिवरात्रि के इस पावन अवसर पर शिव लोगों के हृदय में मित्र भाव का जागरण करें और लोग हथियार छोड़ एक-दूसरे की तरफ हाथ बढ़ाएं। प्रकृति, मनुष्य, स्त्री-पुरुष और समस्त संसार के प्राणियों में प्रेम, भाईचारा और सहोदर भाव जगे। अमर उजाला से साभार