2017 में बस्तर क्षेत्र के सुकमा जिले के बुर्कापाल गांव के पास नक्सली हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 25 जवान शहीद हो गए थे। शुक्रवार को अदालत के आदेश के बाद 121 आरोपियों को मामले से बरी कर दिया गया।
रायपुर – छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले की एक अदालत साल 2017 के बुरकापाल नक्सली हमले के मामले में हाल ही में 121 आदिवासियों को बरी किया। इनमें से आठ अभी भी जेल में हैं, क्योंकि वे अन्य मामलों में भी आरोपी हैं। पुलिस ने यह जानकारी सोमवार को दी।
एक मानवाधिकार कार्यकर्ता ने दावा किया कि बुर्कापाल मामला राज्य के बस्तर क्षेत्र में आदिवासियों के साथ हुए ‘गंभीर अन्याय’ का एक उदाहरण है।
2017 में बस्तर क्षेत्र के सुकमा जिले के बुर्कापाल गांव के पास नक्सली हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 25 जवान शहीद हो गए थे।
अदालत ने मामले के 121 आरोपियों को रिहा किया
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) मामलों के विशेष न्यायाधीश दीपक कुमार देशलरे ने शुक्रवार को यह देखते हुए 121 आरोपियों को बरी कर दिया था कि अभियोजन, अपराध में उनकी संलिप्तता और नक्सलियों के साथ संबंध साबित करने में विफल रहा।
पुलिस महानिदेशक (बस्तर रेंज) सुंदरराज.पी ने कहा कि अदालत के आदेश के बाद 113 आरोपियों को शनिवार को रिहा कर दिया गया जिनमें से 110 जगदलपुर केंद्रीय जेल और तीन दंतेवाड़ा जिला जेल में बंद हैं। उन्होंने कहा कि शेष आठ, अन्य मामलों में भी आरोपी हैं और इसलिए उन्हें रिहा नहीं किया गया है।
अधिकारी ने कहा कि फैसले के दस्तावेज और कानूनी संभावनाओं की जांच के बाद मामले में आगे की कार्रवाई के बारे में फैसला किया जाएगा।
नक्सली हमले में 25 जवानों की हुई थी मौत
नक्सलियों ने 24 अप्रैल, 2017 को सुकमा में बुरकापाल के पास सीआरपीएफ की एख टीम पर घाल लगाकर हमला किया था, जिसमें अर्धसैनिक बल की 74वीं बटालियन के 25 जवानों की मौत हो गई थी।
इनमें से अधिकांश को 2017 में गिरफ्तार किया गया था जबकि कुछ 2018 और 2019 में गिरफ्तार किया गया था। उन पर भारतीय दंड संहिता, शस्त्र अधिनियम, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, छत्तीसगढ़ विशेष सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।
शादी के बाद से पत्नी को नहीं देखा
113 आदिवासियों के जेल से बाहर आने केबाद उनमें से कुछ ने कहा कि उनके परिवार बर्बाद हो गए क्योंकि वे अकेले कमाने वाले थे। जगरगुंडा गांव के रहने वाले हेमला आयुतु ने कहा, “हमने जो अपराध नहीं किया, उसके लिए हमने पांच साल जेल में बिताए। घटना से कुछ दिन पहले मेरी शादी हुई थी जिसके बाद मुझे गिरफ्तार कर लिया गया था। मैंने तब से अपनी पत्नी को नहीं देखा है।”
मेरे चाचा डोडी मंगलू (42 वर्षीय) को भी इसी मामले में गिरफ्तार किया गया था, वो जेल में ही मारे गए। उन्होंने दावा किया कि मांगने के बाद भी जेल प्राधिकरण ने उन्हें उनसे (डोडी मंगलू) संबंधित कोई दस्तावेज नहीं दिया। मंगलू इस मामले में 121 आरोपियों के अलावा था।
आदिवासी को बेचने पड़े अपने खेत और बेल
मामले में बरी किए गए एक अन्य आदिवासी ने कहा कि उसके परिवार ने अदालत की सुनवाई के खर्च के लिए बुरकापाल गांव में अपने खेत और बैल बेच दिए। व्यक्ति ने कहा कि वह शादीशुदा है और उसके कोई बच्चे नहीं हैं।
बुरकापाल मामला आदिवासियों के साथ गंभीर अन्याय का उदाहरण: भाटिया
बचाव पक्ष के वकीलों में से एक मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया ने दावा किया कि बुरकापाल मामला बस्तर क्षेत्र में आदिवासियों के साथ हुए गंभीर अन्याय का एक उदाहरण है। उन्होंने कहा कि इन आदिवासियों को आखिरकार न्याय मिल गया है, लेकिन उन्हें एक अपराध के लिए इतने साल जेल में क्यों बिताने पड़े?
बेला भाटिया ने पूछा, उन्हें मुआवजा कौन देगा? उनके परिवार बर्बाद हो गए हैं और अधिकांश गिरफ्तार आदिवासियों के परिजन जगदलपुर और दंतेवाड़ा की जेलों में भी उनसे मिलने नहीं गए क्योंकि उनके पास पैसे नहीं थे।” अमर उजाला से साभार